#समय,साथ
समय पर साथ किसी ने कभी दिया नहीं ।।
वैसे आगे पीछे लोगों की सौगातें आती गई ।।
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❤️Truth Is God And God Is Truth ❤️
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#नुकसान
बहुत बड़े नुकसान से अच्छा है,,,
अपना छोटा नुकसान किया जाए ।।
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#झुक कर
अमन बहुत बार जिंदगी में,,,
थोड़ा झुक कर चलना ही सही रहता है ।।
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#अहसान
अहसान नहीं मांगा था,,,साथ मांगा था ।।
पराया नहीं,,, मैंने तुमको अपना माना था ।।
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#अकड़
अपनी अकड़ को अपने पास रखो ।।
मुझसे खुद की अकड़ नहीं संभाली जाती ।।
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#प्रदेश
प्रदेश को प्रदेश ही रहने दीजिए ।।
मत इन्हें अलग देश कीजिए ।।
नफ़रत घृणा से जो भर दिए है आपने ।।
ऐसे कामों से कभी तो परहेज़ कीजिए ।।
और यूं कब तक खून की नदियां बहाओगे ।।
कभी तो अमन की बरसात कीजिए ।।
अपने फायदे के लिए यूं हवा में जहर घोल देना ।।
कभी तो प्यार का प्याला पीजिए ।।
और एकजुट होकर रहे देश अपना ।।
कभी तो ऐसा प्रयास कीजिए ।।
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#खाली पन्ना
ना कोई शाम है ना कोई यादों का शहर ।।
ना मैं अधूरा हूं हां मैं एक खाली पन्ना हूं ।।
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#दिखाए
जो दिखाए तुम्हें अपना,,,और मुसीबत में साथ खड़ा ना हो ।।
हो सके जितना,,,उससे दूरी बनाकर रखो ।।
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#Dr.B.R.अंबेडकर जी
जय भारत जय भीम ।।
( जीवन परिचय )
( बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर जी )
बात चली है उस दौर की,,,जिसे पढ़कर रूह भी कांपती है ।।
बाबा साहब जी का नाम सुनकर,,,एक आग,एक उमंग जागती है ।।
वो जन्मा महू मध्य प्रांत में,,,1891, चौदह अप्रैल में ।।
6 दिसंबर 1956 को,,,कर गए प्रस्थान इस जहां से ।।
पिता का नाम था,,,राम जी सकपाल,,,माता थी भीमाबाई जी ।।
15 साल में शादी हो गई,,,पत्नी थी रमाबाई जी ।।
भिवा,भीम आंबड़वेकर के नाम से जाना जाता,,,
आंबेडकर नाम दिया,,,कृष्णा केशव ने ।।
दूसरी पत्नी शारदा कबीर,,,सविता आंबेडकर नाम चुना फिर खुद उन्होंने ।।
1907 में 10वीं पास,,,मुंबई यूनिवर्सिटी से B.A पास ।।
कोलंबिया से M.A,PHD,ALD की,,,लंदन (इंग्लैंड) से इकोनॉमिक्स,MSC,DSC की ।।
हर औरत को समझा जाता,,,मर्द के पांव की जूती ।।
जब तक चाहा तब तक डाली,,,नई लाकर,पुरानी फैंकी ।।
कभी सत्ती प्रथा,,,कभी झूठे आरोप लगाकर उनको,,,
जिंदा ही जलाया ।।
चार दिवारी में कैद रही,,,चूल्हे चौंके तक सीमित रही,,,
फिर भी किसी ने तरस ना खाया ।।
छुआछूत का दौर था,,,अधिकार नहीं था कुछ भी ।।
सर्वोत्तम कहलाते थे वे सब,,,बेशक अक्ल से हो तुच्छ ही ।।
गुलामी से भी बद्तर माना,,,उसने छुआछूत को ।।
असमानता का विरोध किया,,,इसलिए जला दिया उसने मनुस्मृति को ।। ( 25/12/1927 )
तथागत गौतम बुद्ध जी,संत कबीर जी,महात्मा ज्योतिराव फुले जी,,,
आंबेडकर जी के गुरु तीन थे ।।
ज्ञान,स्वाभिमान और शील,,,तीन ही उनके देवता थे ।।
बहुत प्रयास किए उन्होंने,,,इस धर्म में समानता लाने के लिए ।।
धर्म परिवर्तन जरूरी हो गया,,,क्योंकि हर प्रयास विफल हो गए ।।
11 भाषाओं का ज्ञान था उनको,,,32 डिग्रियां हासिल की ।।
वकील,प्रोफेसर,राजनीतिज्ञ,,,महात्मा गांधी की भी जान बचाई ।।
बाबा साहब जी ने विरोध किया,,,खत्म किया इस प्रथा को ।।
कानून मंत्री बने वो,,,संविधान दिया इस सत्ता को ।।
©alonestar1 -
#मंजिल
छोड़ दी है पढ़ाई मैंने,,,अब कुछ और ही करना है ।।
खुद ही रास्ता तैयार कर,,,अमन खुद ही मंजिल बनना है ।।
©alonestar1
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कभी शिकायतों का दौर भी ख़ूबसूरत हुआ करता था
जी हाँ..........................वो बचपन हुआ करता था
©alkatripathi79 -
शिकायत
जी भर करती शिकायत,
तुम ग़र पास होते.........
कभी मुझको मनाते,
कभी ख़ुद नाराज़ होते
कभी भरते बाँहो में
कभी अपनी दास्तां कहते
कभी चुम कर मेरे माथे को,,
मेरे आंसुओं को अपना कहते
जी भर करती शिकायत,
तुम ग़र पास होते.........
कभी शिकायतें गौर से सुनते
कभी हँस कर टाल देते
कभी झूठी कसमें खाते
कभी सच्चे वादे करते
फिर मुझसे दूर ना जाने की
तुम पक्के इरादे करते
जी भर करती शिकायत,
तुम ग़र पास होते.........
©alkatripathi79 -
alkatripathi79 3w
मैं मज़दूर हूँ
ना लगता हूर हूँ, ना रहता मगरूर हूँ...
क्यूंकि, मैं इक़ मज़दूर हूँ
बचपना मैंने देखा नहीं
जवानी को कभी समझा नहीं
बुढ़ापा से क्या रिश्ता मेरा
मैं बस मज़बूर हूँ
मैं मज़दूर हूँ
कितनी ईटे ढोए मैंने,
घर ख़ुद का ना बना पाया
कितने अनाज उगाए मैंने,
पेट ख़ुद का ना भर पाया
मेरे सपने ना उड़ान भरे
मैं चाहतों से रहता दूर हूँ
मैं इक़ मज़दूर हूँमैं मज़दूर हूँ
ना लगता हूर हूँ, ना रहता मगरूर हूँ...
क्यूंकि, मैं इक़ मज़दूर हूँ
बचपना मैंने देखा नहीं
जवानी को कभी समझा नहीं
बुढ़ापा से क्या रिश्ता मेरा
मैं रहता मज़बूर हूँ
मैं इक़ मज़दूर हूँ
कितनी ईटे ढोए मैंने,
घर ख़ुद का ना बना पाया
कितने अनाज उगाए मैंने,
पेट ख़ुद का ना भर पाया
मेरे सपने ना उड़ान भरे
मैं चाहतों से रहता दूर हूँ
मैं इक़ मज़दूर हूँ
©alkatripathi79 -
अपने लगते है अब चाँद सितारें हमकों,
जमी पे अब कुछ ख़ास रहा नही हमारा।।
©_do_lafj_ -
स्याही आज लाल है
कलम की कराह से
कितने वर्ष बीत गए
दर्द उकेरते थक गए
जितनी खुशियाँ थी बटोरी
वो भी आज दत्तक निकले
मरहम को पोंछ कर देखा
घाव आज भी ताजे निकले
©alkatripathi79 -
alkatripathi79 6w
#rachanaprati165
@anonymous_145
मेरा भ्रम.... मैं जीवित हूँ
मेरा भ्रम.... मैं ख़ुश हूँभ्रम
भ्रान्ति भ्रान्ति के भ्रम पालूँ
पालूँ मैं मन अपने मिथ्या
जब भ्रम हीं मुझे जिंदा रखें
ना चाहूँ सत्य की छैयाँ
©alkatripathi79 -
alkatripathi79 5w
#rachanaprati166
@soonam @anusugandh @bad_writer
कहा जाता है खूबसूरती तो देखने वाले की नज़रों में होती है....ख़ूबसूरती
है ख़ूबसूरती तेरी आँखों में,
जिसने “मुझे " ख़ूबसूरत बनाया।
है खूबसूरती तेरी बातों में,
जिसने “मुझे" सुनहरे शब्दों से सजाया।
है ख़ूबसूरती तेरी सोच में,
जिसने ख़ूबसूरती का मतलब समझाया।
...................................................
मैं हूँ ख़ूबसूरत, बेहद ख़ूबसूरत
तुम्हारी, सिर्फ तुम्हारी नज़रों से...
©alkatripathi79 -
जो छूट गया उसका मलाल न कर
जो है सामने उससे सवाल न कर
मिलेगा सुःख भी, तू सब्र तो रख
जो आए दुःख तो बवाल न कर
©alkatripathi79 -
ग़र करते हो प्यार तो जताया करो
मेरे नखरो को बिना थके उठाया करो
मेरे शिकवे शिकायत है बड़े काम की
इन्हें मेरे ज़ुल्फो की तरह सुलझाया करो
कोई और ना कर बैठे इश्क़ तुमसे
बस सामने मेरे हीं, तुम मुस्कुराया करो
नज़र लग जाएगी इश्क़ को हमारे
तुम सबको ना सबकुछ बताया करो
ख़्वाब में भी बिछड़ना ना है कुबूल मुझे
पूरी रात मेरे आँखों को तुम जगाया करो
ग़र करते हो प्यार तो जताया करो
मेरे नखरो को बिना थके उठाया करो
©alkatripathi79 -
झरोखा
काश मैं किसी कवि के कमरे का झरोखा होती
वो जब भी मुझसे तारों को देख ख़्वाब बुनता,,
उसे शब्दों में पिरोता,
मैं उसके आँखों की कशिश को देखती
वो जब भी मुझपर बैठी तितलियों को देखता,,
और उसके रंगों को अपने पन्नों पर सजाता,,
मैं इंद्राधनुष सा सजा उसका चेहरा देखती
वो घंटो मेरे पास बैठता,
अपनी भावनाओं मुझसे छिपा ना पाता
मैं तब उसकी साथी बनती,,उसकी गवाह
उसके आँसूओं की हर बूंद को ख़ुद में सोख़ लेती
काश मैं किसी कवि के कमरे का झरोखा होती
वो मुझसे मिलने को बेताब रहता,,
मुझपर अपनी कुहनी टिका कर,,
शब्दों के जाल बुनता...
मेरे पास आकर उसे सुकून मिलता..
घंटो बिना थके मेरे पास बैठता
मैं उसकी कितनी बातों की अकेली राज़दार होती
काश मैं किसी कवि के कमरे का झरोखा होती..
©alkatripathi79
