ज़िन्दगी की कली
खिलने को बेताब ज़िन्दगी की कली,
नन्हीं सी सुकोमल सी परी आ मिली।
अधखुली पलको से जहां को देखती,
रुबरु होने को रेशमी किरणो से चली।
निर्छल भावों से भरी है मनभावनी सी,
फूलों के बागीचे मे मुस्कान ले खिली।
अलग-अलग विचारों से होगा सामना,
भूल से कदम जो बहके चिंगारी जली।
झुलसना,मुरझाना नियति या किस्मत,
सुलझे कैसे ये पहेली जो अश्कों ढली।
रखना संजो कर इन्हें प्यारे वनमाली,
बेटियां होती बाबुल अंगना की कली।
©archanatiwari_tanuja
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आंखों में लेकर
आंखों में लेकर ख्वाब मिलें,
हमसे होके कभी बेताब मिलें।
राह में कितने काफ़िले दिखे,
पर न कभी वो माहताब मिलें।
अरमां उमडते रहे दिल में ही,
के कभी बनके वो आब मिलें।
राह-ए-सफ़र है लम्बा कितना,
उल्फ़तों भरी कोई शबाब मिलें।
इक बार मिले जिगर को राहत,
बन के ऐसी वो हँसी ताब मिले।।
©archanatiwari_tanuja -
ज़िन्दगी का हुनर
ताउम्र हमें ज़िन्दगी जीने का हुनर न आया,
ऐ खुदा तलाशते रहे तुझे तू नज़र न आया।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे चर्च शीश नवाया है,
जाने कहां-कहां ढूंढ़ा पर तेरा दर न आया।
पाँव मे छाले पड़े देख ले इक बार तूभी तो,
जो हाल पे मेरी रब तेरा दिल भर न आया।
गर खतावार हूँ तो खता का इल्म करा दे,
मर जायगें चौखट पेही रहम गर न आया।
रौशन कर अंधेरों को दुआ कुबूल हो जाये,
तनुजा अब हमें तो रखना सबर न आया।।
©archanatiwari_tanuja -
लम्हा-लम्हा
लम्हा-लम्हा जिंदगी शाम सी ढ़ल रही है,
आजमाईश की तपिश से पिघल रही है।
आशा और निराशा आते है बारी-बारी,
जीवन की लौ भी धीरे-धीरे जल रही है।
भला-बुरा कुछ भी नहीं अपने हाथ यारों,
बस ईश्वर के भरोसे पर साँसे चल रहीं है।
सफर जिस्त का तन्हा नहीं होता आसां,
फिर भी ये तन्हाइयां न हमें खल रही है।
उमर गुजारी सारी खिदमतगारी मे हमनें,
ये तनुजा खुद को अंगारों मे बदल रही है।
©archanatiwari_tanuja -
कमाल हैं
अकेले रहने का नशा बेमिसाल है,
जो लोग भी हमें मिले वो कमाल हैं।
जिन्हें अपना समझते रहे अबतक,
वही बने आज जी का जंजाल है।
अपनेपन का दिखावा करते रहते,
ओढ़ के बैठे ये भेड़िये की खाल हैं।
बेगुनाह हो कर भी हमें सज़ा मिली,
क्या था कुसूर ज़हेन मे ये सवाल है?
हर दोष को नजरअंदाज है किया,
पर वो बुनते रहे फरेब का जाल है।
©archanatiwari_tanuja -
शिक्षक
शिक्षक ही होते है ज्ञान, बुद्धि, विद्या के दाता,
जनमानस को राह दिखाते बन भाग्य विधाता।
ठाम कर उगली हमे कलम पकड़ना सिखाया,
स्वर वयंजन की माला गुथ सुंदर हार बनवाया।
जब कभी मै हुई निराश और कमजोर लक्ष्य से,
मात-पिता सम नेह और प्यार का जोड़ा नाता।
सृष्टि के कण-कण से साक्षात्कार करते हो सदा,
देश-दुनिया का हाल शिक्षा के माध्यम से बताते।
उज्वल भविष्य हो सके आज पर ही नीव धरते,
जो कुछ भी हमें मिला है उसके तुम ही हो दाता।
जब कभी हो जाती भूल हमसे अज्ञानता वश,
बन मार्गदर्शक बन ज्ञान की सच्ची राह दिखाते।
जो तुम न आते जीवन मे हमारे ऐ गुरुदेव जी,
सही गलत का बोध हमें तुम बिन कौन कराता।
©archanatiwari_tanuja -
अधूरे रिश्ते
निशा बिल्कुल खामोश और निराशा के भाव छिपाती हुई बैठी थी आँसू बार-बार पलकों को भिगा रहे थे और वह किसी प्रकार की वेदना का अनुभव करते हुए जैसे कराह रही थी मानो घुट-घुट कर जी रही थी।समझौते का विवाह संबंध ढ़ोती जा रही थी अब तक सिर्फ इस इंतजार मे कि उसके बच्चे बड़े हो कर उसके बलिदान को जरुर समझेंगे परंतु ऐसा नहीं था।
बाल्यकाल मे विवाह हुआ तथा किशोरावस्था समाप्त होने से पहले गृहस्थ आश्रम की जिम्मेदारियां डाल दी गई।प्रथम दिवस से ही ससुराल वालों का व्यवहार संतोष जनक नहीं था पति का भी यही हाल था उसके लिए निशा संभोग की वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं थी प्रेम की आस लिए पत्नी धर्म का पालन करती रहती थी।बहुत से अत्याचार सास,ससुर,
जेठ,जेठानी,ननद के द्वारा सहती हुई समय बदलने की प्रतीक्षा करती रही।
पति की नौकरी निशा के पिता ने लगवा दी इस उम्मीद पर कि दामाद तब तो बेटी को सुख पूर्वक रखेगा पर ऐसा न था शंकालू स्वभाव का शेखर किसी न किसी बहाने उसे मारता पीटता और चरित्र हीन होने का आरोप लगाता रहता था जब की वह स्वयं चरित्रहीन था पराई स्त्रियों पर उसकी कुद्रिष्ट रहती थी।ऐसे ही बाइस वर्ष बीत गये इस इंतजार मे कि कभी तो सुख का छड़ उसके भी जीवन मे आयेगा।आज निशा के बच्चे बाहर चले गये है पढ़ने के लिए और निशा के विरोध करने पर शेखर के अनैतिक संबंधों को लेकर विवाद हुआ शेखर ने पराई स्त्री के लिए निशा को मारा पीटा और घर से निकल जाने को कहा जिससे वह घर छोड़ चली जाय या फिर आत्महत्या कर ले और शेखर अपनी मन चाही जीवनशैली जी सके फांसी लगा कर मरने की धमकी देकर शेखर ने बच्चों को भी अपने पक्ष मे कर लिया कि वह उनकी जरुरते पूरी नहीं करेगा यदि बच्चे माँ की तरफ रहे।
आज निशा अपना सर्वस्व त्याग कर मायके मे अपने माता पिता के साथ है जिस रिश्ते मे अपना कहने को कुछ बचा ही नही उस रिश्ते का बोझ भला बेचारी कब तक सहती त्याग, तपस्या और समर्पण का जो सिला उसे मिला है उन अधूरे रिश्तों की टीस सहती हुई अपने बच्चों के प्यार को तड़पती रहती है।।
©archanatiwari_tanuja -
मिले हो ऐसे
तुम हमसे मिले हो ऐसे,
कोई अजनबी हो जैसे।
पर पहले सी बात न थी,
इज़हार करें भी तो कैसे?
बहारें द्वार से लौट गई है,
हर मौसम पतझड़ जैसे।
पुरजोर कोशिश की थी,
साथ रहें दिया बाती जैसे।
न था मंजूर किस्मत को,
हम नदीं के किनारों जैसे।
इक तरफा रिश्ता निभाना,
दो धारी तलवार हो जैसे।।
©archanatiwari_tanuja -
थोड़ी सी मोहलत
थोड़ी सी मोहलत मिले ज़िंदगी,
कर लूं मै रब की थोड़ी बंदगी।
बे-फ़िज़ूल रहा जिस्त का सफर
बुझी न ख़्वाहिशों की तिश्नगी।
जुल्म पे जुबां खोलना गुनाह है!
अपनो की चाहत हुई आवारगी,
बदनियती का आलम छाया है,
पाक रिश्ते मे आज घुली गंदगी।
खुशियां दिखा छलती रही सदा,
झेलते रहे हम तो यूंही बेचारगी।
साथ होके भी तन्हा सफ़र किया,
लानत है तुझपे बे-रहम ज़िन्दगी।।
©archanatiwari_tanuja -
archanatiwari_tanuja 50w
कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व की बहुत बहुत बधाई
परमात्मा आप सभी को प्रसन्न रखें
जय श्री कृष्णा
29/08/2021श्रीकृष्ण लीला
रात का सन्नाटा भादव की कारी अँधियारी,
संकट हरने को आये जगत के पालन हारी।
द्रवित हृदय की सुन कर करुणा भरी पुकार,
धन्य हुआ जग कारागार मे जन्मे संकट हारी।
कान्हा की सावली सलोनी मोहक छवि प्यारी,
देख दो नैना चपल नटखट लगे कितनी न्यारी।
पूतना राक्षसी ने कराया विषपान किया उद्धार,
मोर मुकुट,गल वैजंतीमाल रुप पैजाऊं बलिहारी।।
त्रिणावत आया छल से करने श्याम तेरा विनाश,
मन मोहन की इक ठोकर से हुआ उसका नाश।
अगासुर बलवान प्रतिशोध भ्राता का लेने आया,
कर के प्रहार मुष्टि का मिटाई गोकुल की त्रास।।
गोवर्धन गिरधारी की महिमा का मै करु बखान,
इन्द्र को हुआ स्वयं की शक्ति का जब अभिमान।
एक उंगली पर गोवर्धन को धार सबकी रक्षा की,
कालिया मर्दन की सुंदर लीला जाने सारा जहान।।
दुष्ट कंस के अत्याचारों से त्राहि मची चारो ओर,
हा-हाकर ,मृत्यु,के तांडव का फैला हर तरफ शोर।
संहार किया पापी का बोझ था जो धरती पे भारी,
हम पर भी कर दो मनमोहन अपनी दया की कोर।।
©archanatiwari_tanuja
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deepajoshidhawan 49w
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
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#hindiwritersगुरु-शिष्य
तात मात व गुरुवर में , नहीं राखिये भेद।
दिशा द्योतक बाण सभी, लक्ष्य को जायें वेध।।
प्रथम सफलता का चरण , है अनुशासन जान।
तन कठोर पाषाण गुरु , मन है रस की खान।।
मुझ पानी की बूंद को , मोती दिया बनाय ।
जो भी उन्नति करता हूँ , करता शीश नवाय।।
अज्ञानी अरु मूढ़मती , मुझ सम कोउ न और।
मुझ को हर पल राखिये , इन चरणों की ठौर।।
हाथ पकड़ मेरा कभी , चलना किए सिखाय।
सपने जो देखे सभी , रख दिए सच बनाय।।
धन देख सब बिसर गये , कैसी जग की रीत।
सतगुरु आप सिखाइये, सब जन से सम प्रीत।।
नाव तुम केवट तुम ही , तुम ही खेवनहार।
गुरु के पावन चरण में , नमन है बारम्बार।।
©deepajoshidhawan -
मिट्टी
मिट्टी से बना, मिट्टी में ही मिल जाएगा,
जिस अहंकार के साथ जी रहा है, ये हवा बन उड़ जाएगा,,
गीले शिकवे मिटा लिया करो वक्त रहते अपनो से,
क्योंकि कौन अपना है,कौन पराया ये तुझे अंतिम क्षणों में नजर आएगा।।।।
©_akrr_ -
✍✍
शाम का दीदार करने बैठ जाते आज पंछी,
भोर का दीदार आया याद तो वह रुक गए थे।
प्रेम पूंजी कल्पना में खो गए कुछ साथ होकर,
जो अभी है साथ वह सत्कार बनकर झुक गए थे।
©rahat_samrat -
shriradhey_apt 50w
वो जो तलाश कभी मुझ तक ख़त्म हुआ करती थी,
वहाँ पहुँच कर कहा जाता है, मंजिल अभी दूर है !!
©shriradhey_apt -
vaish_02 51w
सूर्योदय से पूर्व , सूर्यास्त के पश्चात
हर रोज मेरे मन में एक दीया जलता हैं
हैरानी वाली बात ये हैं
के प्रति दिन उसका उजाला केवल और केवल बढ़ता हैं
मैं आँगन में अठखेलियाँ करती झूम रही थी
के अचानक ही बहती हवाओं ने मेरे झुमकों को चूम लिया
झुँन झुँन करते झुमकों के स्वर ने
मेरे चंचल ह्रदय को ऐसे हर लिया
के मैं मह़ज घर बनाने के ख़याल से ही निकली थी
तूम मिले और मैंने पूरा शहर कर लिया
सर्दी में ठिठुरता एक पन्ना
दूजे पन्ने के भीतर लिपट गया
हाँ मेरा किस्सा कुछ बिखरा बिखरा सा हैं
तूझ से मिलते ही सिमट गया
दातों के बीच होठ़ों को
मैं आज भी दबोचती हूँ
तू सोच में नही मेरे , मेरी सोच तूझ में हैं
मैं हर पहर तूझ को ही सोचती हूँ
आखिरी ख़त कहते कहते , आखिरी पन्ना आ गया
तू मानें या ना मानें
तू मुझ में भी बसता हैं और मैं तूझ में ही बसती हूँ /
©Vaishnavi ♥️ -
vaish_02 51w
बंजर सी जमीन पें सनकती धूप में
मैं अकेली सिसकीयाँ लेते हुए आगे आगे जा रही थी
के तब ही जोर से बिजली कड़की और झट़ से किस्मत चमकी
मुझ पें प्रेम की ऐसी बरसात हुयी
के कुछ सोचने-समझने का समय ही नही मिला
मैं अपनेआप ही भिगती गयी
जिदंगी से ना कोई शिकवा रहा ना कोई गिला
तेरी ठंड़ी ठंड़ी बाहोमें जो नरम नरम एहसास हो रहा था
कसम से अगल-बगल अंदर-बाहर सबकुछ खाँसम-खाँस हो रहा था
तेरे मेरे अलावा इस रुत का आनंद वक्त भी उठा़ रहा था
आंगन में खुर्सी पें बैठ़े बैठ़े चाय की चुस्कीयाँ लगा रहा था
के अचानक ही थमा थमा ऐ समा पल में बिखर गया
हट गया बाद़लो का साया और आसमाँ निखर गया
अब पलकों पें गिरी ओस की बुंदे मंद मंद मुस्कुरा रही हैं
आँखों से टपकती अश्कों की माला अपने प्रेम को विरह से सजा़ रही हैं
मिलना बिछ़डना तो लगा रहेगा ताऊम्र
जो गुजरने के बाद भी जिंदा रहेगी वो मोह़ब्बत मुझे लगातार पुकार रही हैं /
©Vaishnavi ♥️ -
angel_sneha 52w
❤️
मंजिल दूर पर सफर बहुत हैं
छोटी सी जिंदगी की फ़िकर बहुत हैं
खा जाती कब की ए दुनियां हमें
लेकिन माँ की दुआओं का असर बहुत हैं ....... !!
©angel_sneha -
dil_k_ahsaas 51w
सिमट कर रह जाते हैं कुछ ख्वाब जब उड़ान भरने वाले पंँखों को कतर दिया जाता है
सिमट कर रह जाते है कुछ अरमान जिनके पनपने वाली जमीन को बंजर कर दिया जाता है।
दिल के एहसास। रेखा खन्ना
©dil_k_ahsaas -
बारिश ️
ज़िन्दगी में कई रंग एक रंग एक एहसास है बारिश
ज़ब तक नही थी मोहब्बत दिल को उनसे
तब तक बारिश से अनजान थी ज़िन्दगी
वो आए ज़िन्दगी में - बारिश से मोहब्बत हो गई
कितना खूबसूरत मिलन दो दिलों का - वो
बरसात की सबनम सीखा गई ,,,,,
याद है वो पहली बारिश - जिसमे दिल रुबा मोरनी बनकर झूम रही थी संग मुझे भी नचा रही थी
आ रही थी दिल से अवाज़ बरसता रहे आसमा ऐसे ही आख़री सांस तक
वो पल वो लम्हा सुकून की ज़िन्दगी - ज़िन्दगी में लिख रहा था
क्या होती है बारिश - हमदम हमसफर के साथ
वो मिलन फलक और जमीं का एहसास दिला रहा था
कहते किसे मोहब्बत वो इश्क़ दो दिलों में जगा रहा था
वो पहली मोहब्बत पहली बारिश ज़िन्दगी में एक रंग नया खिला रहा था
कैसे में भुल जाऊं मेरी ज़िन्दगी की पहली बारिश को
आज तन्हा हूँ पर तन्हा नही - बारिशो की हर इक बून्द में उसका एहसास है - ये बारिश ही मेरी मोहब्बत की पहचान है.... !
©goldenwrites_jakir -
बारिश
बादलों को इज़ाजत दो बरस जाने की
कब तक आंखे दर्द सहे गम भुलाने की
एक दिन खत्म ही करो बरसात आंखों की
और इंतजार करो बस सब कुछ भुलाने की
बादलों का क्या है आज धूप है कल छांव है
बरसात की बूंदों का एक अलग ही पड़ाव है
©aka_ra_143
