चाटुकारिता
चाटुकारो से घिरे हुए जो,
जन सरोकार कहां चुनते हैं।
मिलते हो जिन्हें प्रायोजित ताली,
जनता की चीख कहां सुनते हैं।।
मिथ्या भाषण की माया में
हम जिनको चुन लेते हैं।
चुनाव होने से पहले जो
नत चरणों में हो लेते हैं।
वही जीत जाएं जब खुद को
ईश समझ वो लेते हैं।
बिना चढ़ावे के फिर
कोई फरियाद कहां सुनते हैं।
मिलते हो जिन्हें प्रायोजित ताली
जनता की चीख कहां सुनते हैं।
जब त्राहिमाम करती है जनता,
तब वह विदेश में होते हैं।
जब दंगों में मरती है जनता,
तब वह चैन से सोते हैं।
रोटी से लेकर रक्षा तक,
हर सौदे में दलाली होते हैं।
जनता जिनको चुन लेते हैं,
वो उनकी फरियाद कहां सुनते हैं।
मिलते हो जिन्हें प्रायोजित ताली,
जनता की चीख कहाँ सुनते हैं।
चाटुकारो से घिरे हुए जो,
जन सरोकार कहां चुनते हैं।
मिलते हो जिन्हें प्रायोजित ताली,
जनता की चीख कहां सुनते हैं।।
अनिल सिंह
©bokaro_poet
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