नमी
drusha
Dr.Usha
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drusha 25w
मुर्दो की बस्तियाँ ,,,,,,,,,,,,,,
मआतम मनाती हस्तियाँ,,,,,,,,,,
खोफ का माहोल है,,,,,,,,,,,,,
रोती सिसकती जिंदगियाँ,,,,,,,,,,,, -
drusha 32w
बेफ़िकर रहती हू,,,,,,,,,,,,
कैसे कहूँ तुझमे रहती हू,,,,,,,,,,,
©drusha -
drusha 34w
कुछ बदला नहीं दिल अब तलक तेरा तलबगार है,,,,,
खामोशीयाँ बस मेरा आखिरी हथियार है,,,,,,,,,,,
जज्बातों का सैलाब चरम पर पहुँचकर थम गया,,,,,,
शायद वक़्त- ए -हालात की यही दरकार है,,,,,,,,,,,,
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drusha 40w
जब बिखरी हु अदतं,,,,,,,,,,,,,,,
निखरी हू बेइंतेहा ,,,,,,,,,,,,,,,
इन लकीरों मे उलज़ी,,,,,,,,,,,
सिसकी हु बेइंतेहा,,,,,,,,,,,,,,,,,Hashu
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drusha 45w
तुम आदतं मेरे साथ रहते हो,,,,
कैसे हो, क्या हो, ,,,,,,,,,,,,,,,,,
गुफ्तगु हो, या खामोश रहते हो,,,,,,,,,,,,
करीब हो दूर हो, कोई फ़ास्ला अब नहीं,,,,,,,,,,,,
तुम मेरे हर अहसास मे साथ रहते हो,,,,,,,,,,,,
मेरी पेसानी पर सिलबटो जैसे,,,,,,,,,,,,
चेहरे पर मुस्कान जैसे,,,,,,,,,,,,,,,,,
मै कभी तन्हा रही भी नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,,
सर पर आसमा से रहते हो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जिदगी मे अरमां जैसे,,,,,,,,,,
मेरी जाँ और ईमान जैसे हो,,,,,,,,,
अब जुदाई का कोई मजर नहीं,,,,,,,,,,,
इतना समाये हो मुझमे तुम,,,,,,,,,,,,
जैसे भी हो अजीज रहते हो,,,,,,,,,,,,
जिक्र क्यू करूँ मेरी जरूरत हो तुम,,,,,,,,,,,
जब याद करूँ मेरे हमराज होते हो,,,,,,,,,,,,,
जुदाइयाँ कभी थी ही नहीं ,,,,,,,,,,,,,,,
कुछ तेरी हद थी कुछ मजबूरियाँ थी मेरी,,,,,,,,,,,,,,,,
तुझे तकलीफ़ न हो सोचती हुँ यही,,,,,,,,,,,,,,,,
तेरा हर फेसला कुबुल् है मुझे,,,,,,,,,,,,,,
तेरी ख़ुशी मे छुपी मेरी ख़ुशी हो,,,,,,,,,,,,,,,
जुदा हो इस तरह हम मिले नहीं,,,,,,,,,,,,,,,
दर्द का दर्द से रिश्ता था ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इससे जियादा चाहा ही नहीं,,,,,,,,,,
निर्लोभी रिश्ते है आसानी से टूटते नहीं,,,,,,,,,,,,,,
तकलीफ़ों के अहसास की फसल पर ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
लहलहाते कीमती रिश्ते है हमारे पास,,,,,, ,,,,,,,,,,,,
जिंदगी देगे, कभी हम जुदा होंगे नहीं,,,,,,,,,,,
कभी खलिश आ जाती है खता हो जाती है,,,,,,,,,,,,,,
इंसान है कोई ख़ुदा तो नहीं,,,,,,,,,,,,,,,
जिसे याद आख नम कर जाए ,,,,,,,,,,,,,,,,,
वो मामूली रिश्ते होते नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,
फ़िर क्या शिकवा तूने कुछ कहा या कहा नहीं,,,,,,,,,,,,,
हा कभी बेपरवाह हुए भी नहीं,,,,,,,,,,,,,,
तू आज भी मेरा खुदा है,,,,,,,,,,,,,,,,,
मैने दर बदला ही नहीं,,,,,,,,,,,,,गुफ्तगु
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drusha 48w
शोत्र है प्रेम , सुखा नहीं सकते,,,,,,,,,,,,,,
चाहकर भी पनपा नहीं सकते,,,,,,,,,,,,,,
अविरल गंगा सा रूप है इसका,,,,,,,,,,,,,,
चाहकर अवरोद् कर नहीं सकते,,,,,,,,,,,,
मैली होकर भी पतित पावन है,,,,,,,,,,,,,
प्रेम छूकर मैला कर नहीं सकते,,,,,,,,,,,,,
युं ही नहीं इतराती इठलाती है,,,,,,,,,,,,,,,,
पापी छवि धूमिल कर नहीं सकते,,,,,,,,,,,,,,,,,
ऐसा प्रवाह महसूस किया है इसका ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
नजदीक हो विवाद कर नहीं सकते,,,,,,,,,,,,,,
अहसास की ज़मी अपनी अपनी है,,,,,,,,,,,,,,,,
ये नमी आप कम कर नहीं सकते,,,,,,,,,,,,,,
पूजनीय है रहेगी सदियों तक गंगा ,,,,,,,,,,,,,,
आस्था है आप गलत कर नहीं सकते,,,,,,,,,,,,,,
मर्यादा और समर्पण से बहती हू बिंदास,,,,,,,,,,,,,,,,,
मुझे आहत कर युं खत्म कर नहीं सकते,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कुछ ऐसा ही है प्रेम मेरा और उसका ,,,,,,,,,,,,,,,,
कोशिश कर तबाह कर नहीं सकते,,,,,,,,,,,,,,,,,H
मेरी जुबानी
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drusha 51w
कैसे यकी करूँ अब आप नहीं है,,,,,,,,,,,,,,
ख्यालात है, हकीकत ए खास नहीं है,,,,,,,,,,,,
आपकी रूह बसी है हम सभी मे,,,,,,,,,,,,,,,,,
अहसास वही है जिस्म से पास नहीं है,,,,,,,,,,,,,,,
आपके होसले तहजीब से रूबरू है,,,,,,,,,,,,,,,,
आपका दिया आसमां है आप नहीं है,,,,,,,,,,,,,,
जब तलाशते है बजूद अपना अपना,,,,,,,,,,,,,,,,
सभी मे आपका अक्स है आप नहीं है,,,,,,,,,,,,,,
रूप बदला, सूरत भी बदल गई गोया,,,,,,,,,,,,,,,
वनस्थली मे खुशबु है, आपकी आप नहीं है,,,,,,,,,,,,,
नाम नहीं विचारों, संस्कारों का पाठ है आपका जीवन,,,,,,,,,,,,,
हम सभी मे आपकी परछाई है आप नहीं है,,,,,,,,,,,,,,,
सोचती हुँ बेशुमार रहमत है आपकी हमपर,,,,,,,,,,,,
कैसे मन को समझl पाऊ की आप नहीं है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,पथ
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drusha 51w
प्रीत की रीत न जाने मनवा,,,,,,,,,,,,,,
इक आँख रोए दूजी भी रोए,,,,,,,,,,,,,,,
चैन कहा मन पाए रे मनवा,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बिछड़ कल पर बरसो लागे,,,,,,,,,,,
नैना दिन रैन तके पथ मनवा,,,,,,,,,,,,
भाषा नैनो की पड़ न पावे ,,,,,,,,,,,,,,,,
ठगा हुआँ सा मेरा मनवा,,,,,,,,,,,,,,,,
प्रीत कहा ऐसी कर पावे,,,,,,,,,,,,,,,,,
धरती गगन मगन हो मनवा,,,,,,,,,,,,,,,,
दिन और रैन वैरी हो पावे,,,,,,,,,,,,,,,,
रोए- रोए कजरा बहे मनवा,,,,,,,,,,,,,,,,,
कर्मं गति की जो कोई पावे,,,,,,,,,,, ,,,,
हरि हरे सबहै पीर मोरे मनवा,,,,,,,,,,,,,,,मनवा
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drusha 52w
मुहब्बत तेरे बगैर अच्छे थे ,,,,,,,,,,,,,
जब की जताना पड़ता है,,,,,,,,,,,,,
अजब किरदार है मुहब्बत????????
ऐतबार हर लम्हा कराना पड़ता है,,,,,,,,,,,,,,,
युं तुमसे जियादा ,,,,,,,,,,,,,,,,
किसी से ताल्लुक नहीं,,,,,,,,,,,,,
ख़ास हो हर दफ़ा,,,,,,,,,,,,,,,,
बताना पढ़ता है,,,,,,,,,,,,,,,,,
कब तू दिल मे,,,,,,,,,,,,,,,,
आ बसा ख़मोशी से,,,,,,,,,,,,,,,,
मुहब्बत को जहाँ से,,,,,,,,,,,,,
छुपाना पड़ता है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मामला अच्छे लगने,,,,,,,,,,,,,,
से शुरू हुआँ ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सबसे अच्छे हो,,,,,,,,,,,,
यकीं दिलाना पड़ता है,,,,,,,,,,,,,सबसे अच्छे
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drusha 52w
तेरे रंग मे रंग गई मै फ़िर बदल गई,,,,,,,,,,
जिस राह तू गया मै उधर निकल गई,,,,,,,,,,,,
कुछ पाने का जुनूँ था कुछ देने का सुकूँ,,,,,,,,,,,,,,
इसी जददो जहद मे उमर निकल गई,,,,,,,,,,,,,,,
बेनाम सा रिश्ता है दिल से अज़ीज है ,,,,,,,,,,,,,,,,,
दखल ना करूँ ख़ामोश निकल गई,,,,,,,,,,,,,
तकलीफ़ सताती है शामो ओ सुबहः तेरी,,,,,,,,,,,,,,,
लब सी लिए थे मगर सिसकी निकल गई,,,,,,,,,,,,,,,
कीमती है सभी सामां -ओ- हसरते,,,,,,,,,,,,,,
तेरे चाह मे दिल की आरजू निकल गई,,,,,,,,,,,,D
रंग
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pushpinder_1 29w
रखी जो अपनी बात सिरफिरों के हुजूम में
हुए गुनहगार हम ही सिरफिरों के हुजूम में
कोई बे-अक्ल होता अक्ल वालों की भीड़ में
मिल कर उजाड़ा चमन सिरफिरों के हुजूम ने
बिन मुद्दे, मुद्दों की फिक्र करना एक हुनर है
ये भी खूब कमाल देखा सिरफिरों के हुजूम में
अपने दामन पे आंच न आये इसलिए सभी ने
खुद को शुमार कर लिया सिरफिरों के हुजूम में
©pushpinder_1 -
pushpinder_1 26w
आदतें जल्द साथ नहीं छोड़तीं
फिर चाहे वो सही हों या गलत
रह रह कर फन उठा ही लेती हैं
पता नहीं चलता कब डस लेती हैं
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pushpinder_1 26w
जैसी सुनी थी बचपन में वैसी तो नहीं है
ये दुनिया कहीं से खिलोने जैसी नहीं है
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pushpinder_1 27w
दर्द-ए-दिल की दवा करें तो क्या करें
तेरे बग़ैर हम करें भी तो क्या करें
ज़माने की बेतरतीब तरीकों से परेशान
कोई हमें ही आँख दिखाए तो क्या करें
जिनका दीन-ओ-ईमान से रिश्ता ही नहीं
वो ही गर सज़ा सुनाने लगे तो क्या करें
इस शहर में सच की कोई कीमत नहीं
झूठ पढ़ कर सब जवां हुए तो क्या करें
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पत्थरों के बीच सुखी ज़मीन पर
हौसला है वजूद अपना कायम रखने का
सीखा नहीं घबरा के रुक जाना कभी
इरादा है और उठने का इसी ज़मीन पर
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pushpinder_1 28w
तारों को ज़मी पर लाया गया है आज
दीवाली को खूब सजाया गया है आज
जगमगाते दियों की भीनी भीनी रोशनी
रात को खूब रोशन किया गया है आज
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pushpinder_1 29w
बहुत दिन हुए न वो बोले न हम
एहतराम इस क़दर करते रहे हम
फिक्र थी ज़ुबाँ न थी न अल्फ़ाज़ ही
ठीक हो जाएगा बस सोचते रहे हम
एहतिमाम कुछ होगा और वसीला भी
बिखरते हुए भी यही सोचते रहे हम
कुछ कहते गर तो अच्छा होता शायद
यूं ही घुट घुट के हर रोज़ जीते रहे हम
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उक्ता सा गया हूँ उन्ही चेहरों को देख कर
झूठे रिवाज़ों के झूठे सौदागरों को देख कर
उनकी बुलंदियों का गुरूर मिल कर गया मुझे
और हम ख़ामोश रहे उनकी शख्सियत देख कर
उन्हें तस्सली हुई शायद मेरी नाकाबलियत पर
मुस्कुरा कर एहतराम किया था मुझे देख कर
अजनबियत में सुकूं है जो जान पहचान में नहीं
समझ के बस यही जाना हूँ दुनिया को देख कर
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कारवां ही तो था.....क्या हुआ जो छूट गया है
फिर मिल जाएंगे नए हमसफ़र रास्ता ही तो है
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pushpinder_1 29w
कुछ गवा के कुछ पाया हमने
जो पाया क्या सही पाया हमने
जहां मंज़िल पहुंच कर ठहर जाती है
क्या उस मुकाम को पाया हमने
सिलसिले मेरी रुसवाई के आम हैं
ख़ुद को छुपा के क्या पाया हमने
समझदार समझने में नाकाबिल रहे
नालायकी से बस यही पाया हमने
अफसोस करने से हासिल क्या होगा
वक़्त कुछ इस क़दर गवाया हमने
आरज़ू है के कोई आरज़ू बाकी न रहे
ये सोच फ़कीरी को अपनाया हमने
बस चंद लोग ही तो थे मेरे अपने
उन्हें भी ग़ैरों की तरह भुलाया हमने
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