ग़ज़ल:-१०
वज़्न-: २१२२ १२१२ २२/११२
दिल लगा बैठे हम तो पत्थर से,
क्या शिकायत करें सितमगर से।१।
सख़्त लहज़ा दिखा रहे हैं वो,
कितना टूटा है झन्फ अंदर से।२।
हर किसी को न इश़्क हासिल है,
उन्स मिलता बड़े मुकद्दर से।३।
अब ज़मीं पे कदम न ठहरे है,
बात करता है वो तो अंबर से।४।
है गुमा उनको अपनी हस्ती पे,
अक्ल आयेगी उन्हें ठोकर से।५।
तन्हा मंज़िल तलाश लेंगे हम,
क्या गरज है किसी रहबर से।६।
चालबाजी से काम लेते हैं,
वार करते हैं वो तो खंज़र से।७।
जब तलब इश़्क की जगे तनुजा,
प्यास बुझती नहीं समंदर से।८।
अर्चना तिवारी तनुजा ✍️✍️
©archanatiwari