जिक्र जिसका भी होगा मेरे बाद ही होगा।
रकीब भी तेरे इश्क़ में बर्बाद ही होगा।।
तेरे बदन पर उंगलियों के निशां बेशक ना मिले।
एहसास मेरी छुअन का तो तुम्हें याद ही होगा।।
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करने को बेवफाई कोई इश्क़ नहीं करता।
ना गलत हर किसी के इरादे होते हैं।।
मोहब्बत में और कोई वजीफ़ा नहीं मिलता "अल्फ़ाज़"।
इनाम इश्क़ का बस मेहबूब के झूठे वादे होते हैं।।
©alfaaz__dil__se9 0 1अपने लिए चैन की और मेरी नींद हराम करने में।
मेरी मुश्किलें बढ़ाई अपना सफर आसान करने में।।
बस वादा नहीं तोड़ा उसने मेरा नाम जाहिर करके।
बाकी कोई कमी नहीं छोड़ी मुझे बदनाम करने में।।
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मेरी खामियाँ गिनाती है वो जिससे भी बात करती है।
मुझसे ही नहीं करती बाकी वो सबसे बात करती है।।
बाँहों में रकीब की ढूँढती है, एहसास मेरी छुअन का।
वैसे वो "अल्फ़ाज़" को भुल जाने की बात करती है।।
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जंग-ए-इश्क़ में सब हार जाने के बाद भी।
भुला देने को याद करता हूँ उसको आज भी।।
वक़्त गुज़र जाने के बाद माँगा था उसने साथ मेरा।
मगर गुज़र चुका था वक़्त के साथ "अल्फाज" भी।।
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इज़हार ना करते,राज ही ग़र रखते राज को।
अनसुना काश कर देते धड़कन की आवाज़ को।।
कुछ उससे इश्क़ बना मेरी जान का दुश्मन।
कुछ मरने का शौक भी था "अल्फाज" को।।
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मैनें पानी भी पिया तो शराब बताते हैं।
मुझे वो बेवफ़ा, बगैरत ख़राब बताते हैं।।
ना गैर हो सके ना हुआ हाल-ए-दिल बयां उनसे।
और खुद को वो खुली किताब बताते हैं।।
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आगाज से या इश्क़ मेरे के अंजाम से।
रखना काम भी सीख गया हूँ मेरे काम से।।
जानते हैं शहर में तुझे मेरे नाम से जैसे।
यूँ मुझको भी कोई जानता है क्या तेरे नाम से??
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मुझे अपना इश्क़ बता रहा है वो,
मेरे सामने भी तो नहीं आ रहा है वो।
शिकवे है पीठ पीछे सामने जिक्र भी नहीं।
मुझे भी और खुद दोनों को जला रहा है वो।।
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गोरे रंग का मिजाज रास नहीं आता, लोग कहते हैं थोड़ा अजीब हूँ।
मैं कड़क चाय का शौकीन हूं, और रंग भी वैसे ही का मुरीद हूँ।।
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rakeshkh
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धन्यवाद
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बिना उसके एक पल भी बिताना लगता जैसे साल है।
उसका यूँ देखना, देखकर मुस्कुराना हर अदा कमाल है।।
कोई भी नहीं बच सका तो "अल्फाज" की क्या मजाल।
ये जुल्फें, सिर्फ जुल्फें नहीं हैं उसकी, शिकारी का जाल है।।
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ना जाने कैसा रिश्ता है, तुझसे बंधा हूँ में किस डोर से।
मुझे उस इश्क़ से भी इश्क़ है जो है तुझे किसी और से।।
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बस इतना सा है हुज़ूर, डर "अल्फ़ाज़" के जेहन में।
हम तेरे मारे हैं कहीं तेरे मारे हुए ना हो जाए।।
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बेवफाई जो कोई इश्क़ में करे तो दुआ बस इतनी करो।
जिन्दगी में भी सुकून ना मिले और मौत भी उसे आसान ना आए।।
साथ ताउम्र निभा सकता हूँ वादा झूठा नहीं करता "अल्फ़ाज़"।
खुदा के घर से बस मेरी मौत का फरमान ना आए।।
मैं खुदा बना लूँ उसे या पूजा मूरत बना कर करुँ उसकी।
बस मेरे और मेरी इबादत के बीच कोई इंसान ना आए।।
उसे दुनिया से भी छीन लाना भी कोई मुश्किल काम नहीं।
शर्त बस इतनी मेरी के बीच में भगवान ना आए।।
शिद्दत से इश्क़ किया है मुकम्मल भी कर ही लेंगे।
बस बीच में उसके और मेरे घरवालों का सम्मान ना आए।।
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rashmioberoi
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मुर्दों के शरीर में जान ढूँढ़ता फिरता हूँ।
कलयुग के रावणों में राम ढूँढ़ता फिरता हूँ।।
मिलने की उम्मीद नहीं फिर भी खोज में हूँ।
मैं इंसानों की बस्ती में इंसान ढूँढ़ता फिरता हूँ।।
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मुसाफिर इश्क़ की राहों के बस इश्क़ से वाकिफ़ हैं।
इश्क़ में बेवफाई से बड़ा, उन्हें कोई गम नहीं लगता।।
यूँ सुनी लगती है शाम महबूब से मुलाकात के बाद।
बिना गुलाब के कोई बाग जैसे गुलशन नहीं लगता।।
सर्दी,गर्मी,पतझड़,बसंत सब आते जाते रहते हैं।
बिना उसके कोई मौसम भी अब मौसम नहीं लगता।।
बाहों में रकीब के जब से आए वो रात गुजारकर।
उनके आगोश में अब वो अपनापन नहीं लगता।।
बदनाम करता है अक्सर उसे याद करने के बहाने से।।
गर ऐसा ना करे तो "अल्फ़ाज़" का भी मन नहीं लगता।।
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wordsofpragya
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alfaaz__dil__se 113w
मुझे अपनी रूह का अक्स बताने वाले।
बर्बाद करने वाले वही थे अपना बनाने वाले।।
खता एक ही थी पर भूलने देते ही नहीं कभी।
हर कदम पर मेरे गलतियाँ गिनाते है जमाने वाले।
©alfaaz__dil__se9 0 1alfaaz__dil__se 115w
मुश्किलों में मुस्कुराने का हुनर कमाल रखा है।
हौंसले ने उसके सबको हैरत में ड़ाल रखा है।
किसी को भारी लगता है बस्ता किताबों का।
किसी के कन्धों ने पूरा घर सम्भाल रखा है।।
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मोहब्बत मेरी सबको कुछ इसलिए भी समझ नहीं आती।
इश्क़ की भी हद नहीं,और उससे नफरत भी बेइन्तहां है।।
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ख्वाहिशें, आत्मसम्मान सबकी शहादत दी थी।
दोस्त हमनें इश्क़ नहीं किया इबादत की थी।।
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