फौजी और वर्दी
मेरा सपना था बचपन से फौज में जाने का
कुछ उम्मीदें वर्दी से मिल गई थी......
फौज में जाने से मुझे रोक भी कोन लेता
सपथ तो मैंने पहले ही खाई हुई थी....
पर फौजी बनना इतना आसान तो नहीं
कुछ शौक तो मेरे भी छूटे होंगे...
इतना तो रब किसी पर मेहरबान नहीं
कुछ सपने तो मेरे भी टूटे होंगे.....
जब पूछा मुझसे किसी ने वेतन,
तो मेडल मैंने भी गिनाए...
जब लगे थे सेना पर रेप के आरोप,
तो आंसू मैंने भी गिराए.....
चोट मुझे तब भी लगी,
जब किसी ने मुझसे मेरा धर्म पूछा....
मैं मानता था बस भारत को धर्म,
क्या मैंने ऐसा भी कभी सोचा....
हां, मेरी ज़िन्दगी में भी रही एक लड़की,
अरे! मैं तो दिल से फौजी था... प्यार मुझे भी हुआ.....
किये उसने मुझसे शादी तक के वादे,
उनके टूटने पर दर्द मुझे भी हुआ.......
जब टूट जाना हार थी हर लम्हे की,
विकल्प था हर बार हार मानने का,
टूटकर गिरना.. फिर खड़ा हो जाना,
ये आदत नहीं मेरा हौसला था.........................
फिर भी घुटने ना टिका पाया कोई,
मुझ पर लगने वाला हर आरोप, मेरे आगे खोखला था......
तोड़ना तो काम है वक़्त का,
उसको दिये जवाब हमें इंसान बनाते हैं...
किसी में थोड़ी उम्मीद रहती हैं,
वरना, सब पहले ही राह छोड़ जाते हैं.....
कुछ ऐसे भी है , जो चलते रहते हैं,
पर वक़्त आने पर वो भी आंख मोड़ जाते हैं.....
लेकिन जो दिल, टूटने पर भी देश को चाहे,
ऐसे दिल अक्सर छाप छोड़ जाते हैं.....
©shardul_rajput_04