"प्रेमातिरेक"
भाग - ७
मैं आदि-अंत सा दूर-दूर,
तुम समरेखा मूल-मिलाप की,
मैं ओर-छोर की जिल्द हुआ,
तुम पन्ना पूर्ण किताब की।
मैं हार-जीत में उलझा हूँ,
तुम कर्त्ता नित्य क्रिया की हो,
मैं सबके मन को चुभता हूँ,
तुम सबकी प्रेम प्रिया सी हो।
मैं चिड़ियाघर की संज्ञा हूँ,
तुम विश्लेषण हो मधुवन का,
मैं इत-उत बिखरा गंध हुआ,
तुम इत्र सुगंधित तन-मन का।
मैं दो तरफ़ा इक रस्ता हूँ,
तुम पगडंडी बीच गुजरती हो,
मैं दाएँ-बाएँ में सिमट गया,
तुम मार्ग समापन करती हो।
मैं काली मिट्टी खेतों का,
तुम शिखर विराजी मुलतानी,
मैं नित नजरों में कुचला हूँ,
तुम साख़ शिरोमणि सुल्तानी।
मैं एक की घात हजार तो क्या,
तुम सौ का वर्ग बहुत ठहरी,
मैं बात गणित की कमतर हूँ,
तुम शून्य की बात बहुत गहरी।
मैं एक रंग का भँवरा हूँ,
तुम रंग-बिरंगी तितली हो,
मैं काला बादल धुंध हुआ,
तुम एक चमकती बिजली हो।
मैं जिन जन का हूँ कृपापात्र,
तुम उन सब जन की नायक हो,
मैं जिस विधना का मारा हूँ,
तुम उसकी ख़ास विधायक हो।
मैं इक शीशे की बोतल हूँ,
तुम उसमें गंगाजल जैसी,
मैं तुमको भर के पावन हूँ,
तुम खुद भी कल की कल जैसी।
मैं जितना तुम पर मरता हूँ,
तुम उससे ज़्यादा ख़ास सखी,
मैं हृदय चीर के दिखला दूँ,
तुम मानो गर विश्वास सखी।
प्रखर कुशवाहा 'Dear'
#prematirek
9 posts-
prakhar_kushwaha_dear 15w
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आप सभी को Dear Kushwaha के नमस्कार!
लीजिए पेश-ए-ख़िदमत है, "प्रेमातिरेक भाग-७"
सभी भाग पढ़ने के इच्छुक हैशटैग प्रेमातिरेक #prematirek पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं... या cmnt कर बता दें, मैं टैग कर दूंगा.
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"पढ़ने से पहले मैं बताना चाहूँगा कि रचना पढ़ते वक्त शीर्षक "प्रेमातिरेक" को ध्यान में रखें। शीर्षक कवि की अपनी अमूर्त प्रेयसी के प्रति अगाध प्रेम को प्रदर्शित करता है जिसके चलते कवि खुद को तुच्छ और अपनी सखी को उच्च दर्ज़ा प्रदान कर रहा है ना कि समस्त पुरुष जाति को महिला जाति से निम्न दिखाने का प्रयास कर रहा है।
अगर प्रेयसी कवि के भावों से अवगत होगी तो तुच्छ और उच्च का कोई महत्व नहीं रह जाता,, रह जाता है तो बस 'प्रेम'..."
बहुत-बहुत धन्यवाद!76 120 26prakhar_kushwaha_dear 15w
Hlw everyone...
It's pleasure to announce... The 7th part of my poetry series "Prematirek" has coming soon..
So get ready to enjoy a huge and lovely differences between a couple..
Bang Bang...
अगर आप पहले के 6th पार्ट पढ़ना चाहें तो click on हैशटैग प्रेमातिरेक #prematirek
या cmnt में बता दें,, मैं टैग कर दूंगा..प्रेमातिरेक
Coming soon...
भाग - ७
मैं काली मिट्टी खेतों का,
तुम शिखर विराजी मुलतानी,
मैं नित नजरों में कुचला हूँ,
तुम साख़ शिरोमणि सुल्तानी।
प्रखर कुशवाहा 'Dear'31 13 6- prakhar_kushwaha_dear @happy81 ,, achchha.. thank u so much..
- prakhar_kushwaha_dear @happy81 ,, कैसी हो हैप्पी..?
- mamtapoet Bahut khoobsurat
- happy81 @prakhar_kushwaha_dear as always beautiful cheerful happy
- prakhar_kushwaha_dear @happy81 ,,, yaaahh,, very good.. must go on..
prakhar_kushwaha_dear 57w
#prematirek
जल्द ला रहे हैं आपके लिए,,
"प्रेमातिरेक भाग - ६"
पिछले भाग पढ़ने के इच्छुक दोस्त बता दें, मैं टैग कर दूंगा..."प्रेमातिरेक"
भाग - ६
मैं पाद-चिन्ह सा कुचला हूँ,
तुम आभा हो मुख-मंडल की।
मैं पानी सा बेस्वाद हुआ,
तुम खुशबू जैसे संदल की।
प्रखर कुशवाहा 'Dear'47 20 14- radhika_1234569 wow so lovely
- vipin_vn मुझे प्रेमातिरेक के पूरे भाग पढ़ने है
- prakhar_kushwaha_dear @vipin_vn ,,, जी आभार आपका श्रेष्ठ,, बिल्कुल,, मेरा सौभाग्य,, टैग करता हूँ...
- greenpeace767 Lovely
- mamtapoet Beautiful
prakhar_kushwaha_dear 57w
#prematirek
आप सभी को Dear Kushwaha के नमस्कार!
लीजिए पेश-ए-ख़िदमत है, "प्रेमातिरेक भाग-६"
सभी भाग पढ़ने के इच्छुक cmnt कर बता दें, मैं टैग कर दूंगा.
पढ़ने से पहले मैं बताना चाहूँगा कि रचना पढ़ते वक्त शीर्षक "प्रेमातिरेक" को ध्यान में रखें। शीर्षक कवि की अपनी अमूर्त प्रेयसी के प्रति अगाध प्रेम को प्रदर्शित करता है जिसके चलते कवि खुद को तुच्छ और अपनी सखी को उच्च दर्ज़ा प्रदान कर रहा है ना कि समस्त पुरुष जाति को महिला जाति से निम्न दिखाने का प्रयास कर रहा है।
अगर प्रेयसी कवि के भावों से अवगत होगी तो तुच्छ और उच्च का कोई महत्व नहीं रह जाता,, रह जाता है तो बस "प्रेम"...
बहुत-बहुत धन्यवाद!"प्रेमातिरेक"
भाग - ६
मैं आसमान का अंत छोर,
तुम वसुधा केंद्र समूची हो।
मैं खाड़ी, दर्रा, गर्त हुआ,
तुम हर चोटी से ऊंची हो।
मैं कलयुग का अवतारी हूँ,
तुम रानी द्वापर वासी हो।
मैं मन का हारा प्राणी हूँ,
तुम काम,क्रोध,मद नासी हो।
मैं तन से-मन से काला हूँ,
तुम सुंदरतम इक सज्जा हो,
मैं बेमतलब का उपहासी,
तुम फटे चीर की लज्जा हो।
मैं टिम-टिम करता तारा हूँ,
तुम दुग्ध-मेखला लगती हो,
मैं झूठी बात अकेला हूँ,
तुम सत्य काफ़िला लगती हो।
मैं पाद-चिन्ह सा कुचला हूँ,
तुम आभा हो मुख-मंडल की।
मैं पानी सा बेस्वाद हुआ,
तुम खुशबू जैसे संदल की।
मैं काली रात अमावस की,
तुम पूनम वाली रात सखी।
मैं उमस बढाता बादल हूँ,
तुम रिमझिम सी बरसात सखी।
मैं अब का ढलता सूरज हूँ,
तुम कल की उगती लाली हो,
मैं जस-तस जीवन छोड़ चला,
तुम आदि-अंत रखवाली हो।
मैं निष्ठुर-निर्मम लोहा हूँ,
तुम नर्म मृदा की काया हो,
मैं तेज-तपन और कड़ी धूप,
तुम साथ निभाती छाया हो।
मैं पथ भूला इक राही हूँ,
तुम संबल देती ढाल सखी।
मैं शहरों वाला बलवा हूँ,
तुम गांवों की चौपाल सखी।
मैं प्रेम लुटाता गमला हूँ,
तुम मुझमें सिंचित तरुवर हो।
मैं 'डिअर' तुम्हें हरियाली दूँ,
तुम जब भी झर के निर्झर हो।
प्रखर कुशवाहा 'Dear'57 45 22- mamtapoet Main nishthur nirmam loha........
- prakhar_kushwaha_dear @angel_sneha part - 6
-
angel_sneha
Mai Kalyug ka abtari hun
Tum rani dwapar wasi ho
@prakhar_kushwaha_dear - prakhar_kushwaha_dear @angel_sneha ,,, जी शुक्रिया धन्यवाद...♥️♥️♥️
-
angel_sneha
@prakhar_kushwaha_dear
Welcome
prakhar_kushwaha_dear 93w
#prematirek
आप सभी को प्रखर कुशवाहा के नमस्कार!
पढ़ने से पहले मैं बताना चाहूँगा कि रचना पढ़ते वक्त शीर्षक "प्रेमातिरेक" को ध्यान में रखें ,, शीर्षक कवि की अपनी अमूर्त प्रेयसी के प्रति अगाध प्रेम को प्रदर्शित करता है। जिसके चलते कवि ख़ुद को तुच्छ और अपनी सखी को उच्च दर्जा प्रदान कर रहा है ना कि समस्त पुरुष जाति को महिला जाति से निम्न दिखाने का प्रयास कर रहा है।
अगर प्रेयसी कवि के भावों से अवगत होगी तो तुच्छ और उच्च का कोई महत्व नहीं रह जाता,, रह जाता है तो सिर्फ़ "प्रेम"।
बहुत बहुत धन्यवाद!
पेश-ए-ख़िदमत है "प्रेमातिरेक" भाग-२
भाग-१
भाग-३
भाग-४
भाग-५ भी पोस्ट किए जा चुके हैं,, पसंद आने पर #prematirek को सर्च कर जरूर पढ़ें या बता दें तो मैं टैग कर दूंगा..."प्रेमातिरेक"
भाग-२
मैं छोटी मात्रा मुक्तक की,
तुम शब्द समागम ग़ज़लों का।
मैं मुरझाया सा आलोचक हूँ,
तुम तीख़ा फूल हो जुमलों का।।
मैं तुमसे जिंदा दरिया हूँ,
तुम सरिता शिव के शीश बसी।
मैं ग्वाले-गइयाँ धोता हूँ,
तुम करती निर्मल शेष फ़नी।।
मैं विचलित मन की भाषा हूँ,
तुम दृढ़ संकल्पित आशा हो।
मैं संक्षेप वाक्य चौपतिया का,
तुम पुस्तक की परिभाषा हो।।
मैं घर का छोटा कोना हूँ,
तुम भोजन वाला कक्ष सखी।
मैं धूमिल-धूसित धराशायी,
तुम नए व्यंजन सी स्वच्छ सखी।।
मैं बर्बरता हूँ ज़ालिम की,
तुम मरहम जैसी दिखती हो।
मैं कलुषित हृदय विराज रहा,
तुम ऋषि कुटियों में बसती हो।।
मैं सूखी घास हूँ बंज़र का,
तुम फसलों सा लहराती हो
मैं मेड़-मेड़ का द्वंदयुद्ध,
तुम समझौता करवाती हो।।
मैं अपने घर में गुमसुम हूँ,
तुम देश-विदेश की चर्चा हो।
मैं दो कौड़ी के व्यय जैसा,
तुम सबसे महंगा ख़र्चा हो।।
मैं सागर के पानी जैसा,
तुम मोती मछली प्यारी हो।
मैं तुमको जीवन देता हूँ,
तुम फ़िरभी जान हमारी हो।।
प्रखर कुशवाहा 'Dear'85 43 29- rahat_samrat Waah✍
- prakhar_kushwaha_dear @rahat_samrat ,, thanks rahat...☺
- prakhar_kushwaha_dear @vipin_vn part 2
- prakhar_kushwaha_dear @krishnaprem_kp part 2
- prakhar_kushwaha_dear @mahek7 part 2
prakhar_kushwaha_dear 99w
#prematirek
आप सभी को प्रखर कुशवाहा के नमस्कार!
पेश-ए-ख़िदमद है..."प्रेमातिरेक भाग-५"
आप सभी ने मेरी इस श्रृंखला को बेहद प्यार दे सफ़ल बनाया है,,
आप सभी का मैं दिल से आभारी हूँ,,
बहुत बहुत शुक्रिया, बहुत-बहुत धन्यवाद आप सभी का।।
सभी भाग पढ़ने के इच्छुक, मुझे cmnt करके बता सकते हैं।
मैं आपको tag कर दूंगा।
पढ़ने से पहले मैं बताना चाहूँगा कि रचना पढ़ते वक्त शीर्षक "प्रेमातिरेक" को ध्यान में रखें ,, शीर्षक कवि की अपनी अमूर्त प्रेयसी के प्रति अगाध प्रेम को प्रदर्शित करता है। जिसके चलते कवि ख़ुद को तुच्छ और अपनी सखी को उच्च दर्जा प्रदान कर रहा है ना कि समस्त पुरुष जाति को महिला जाति से निम्न दिखाने का प्रयास कर रहा है।
अगर प्रेयसी कवि के भावों से अवगत होगी तो तुच्छ और उच्च का कोई महत्व नहीं रह जाता,, रह जाता है तो सिर्फ़ "प्रेम"।
बहुत बहुत धन्यवाद!"प्रेमातिरेक"
भाग - ५
मैं राजनीति सा बड़बोला,
तुम संविधान की ख़ामोशी।
मैं दल-बदलू एक नेता हूँ,
तुम न्याय बांटती संतोषी।।
मैं बेईमानी की रिश्वत हूँ,
तुम दौलत ख़ून-पसीने की।
मैं खोटा सिक्का क़िस्मत का,
तुम मंज़िल एक नगीने की।।
मैं जला-भुना सा बैठा हूँ,
तुम राहत की बरनाल सखी।
मैं क्रोधवश ज्यों गर्म हुआ,
तुम पैरासिटामॉल सखी।।
मैं माचिस की डिबिया जैसा,
तुम घी के दिए सी लगती हो।
मैं आग लगाना जानू बस,
तुम जलकर ख़ूब महकती हो।।
मैं घेरा हूँ इक खाल ढका,
तुम आती-जाती सांस सखी।
मैं बेसुध सा जज़्बाती हूँ,
तुम ज़िंदा इक अहसास सखी।।
मैं वक्र धनुष सा मुड़ा-तुड़ा,
तुम सीधी तीर निशाने की।
मैं पथिक, पंगु, पराजित हूँ,
तुम मंज़िल हार ना जाने की।।
मैं गुज़रा एक ज़माना हूँ,
तुम नई दुनिया सी लगती हो।
मैं भूला-बिसरा वरक़ हुआ,
तुम हर हर्फ़ों में दिखती हो।।
मैं घर में लगता पोछा हूँ,
तुम महलों की कालीन सखी।
मैं तंग जेब से रहता हूँ,
तुम घेवर की शौक़ीन सखी।।
मैं सूना सा तालाब बचा,
तुम नदियों वाला संगम हो।
मैं नतमस्तक हुई पताका हूँ,
तुम लहराता सा परचम हो।।
मैं कुछ ना 'डिअर' तुम्हारा हूँ,
तुम सबकुछ यार हमारी हो।
मैं लिपटूं तुमसे लौ जैसा,
तुम मोम सी पिघल हमारी हो।।
प्रखर कुशवाहा 'Dear'84 81 36- prakhar_kushwaha_dear @alkatripathi ,,,,☺☺☺ शुक्रिया दीदू... धन्यवाद...
- saurabh_yadav Shaaandar
- prakhar_kushwaha_dear @saurabh_yadav ,,, dhanyavad bhai.. abhar..
- prakhar_kushwaha_dear @vipin_vn part 5
- prakhar_kushwaha_dear @krishnaprem_kp part 5
prakhar_kushwaha_dear 102w
#prematirek
आप सभी को प्रखर कुशवाहा के नमस्कार!
लीजिए पेश-ए-ख़िदमत है "प्रेमातिरेक भाग-४"
आप सभी ने मेरी इस श्रृंखला को बेहद प्यार दे सफ़ल बनाया है,,
आप सभी का मैं दिल से आभारी हूँ,,
बहुत बहुत शुक्रिया आप सभी का।।
सभी भाग पढ़ने के इच्छुक, मुझे cmnt करके बता सकते हैं।
मैं आपको tag कर दूंगा।
पढ़ने से पहले मैं बताना चाहूँगा कि रचना पढ़ते वक्त शीर्षक "प्रेमातिरेक" को ध्यान में रखें ,, शीर्षक कवि की अपनी अमूर्त प्रेयसी के प्रति अगाध प्रेम को प्रदर्शित करता है। जिसके चलते कवि ख़ुद को तुच्छ और अपनी सखी को उच्च दर्जा प्रदान कर रहा है ना कि समस्त पुरुष जाति को महिला जाति से निम्न दिखाने का प्रयास कर रहा है।
अगर प्रेयसी कवि के भावों से अवगत होगी तो तुच्छ और उच्च का कोई महत्व नहीं रह जाता,, रह जाता है तो सिर्फ़ "प्रेम"।
बहुत बहुत धन्यवाद!"प्रेमातिरेक"
भाग - ४
मैं पैरों की पायल जैसा,
तुम गले सुशोभित माला हो।
मैं लिपटा चिथड़ा सर्दी का,
तुम करती गर्म दुशाला हो।।
मैं पिक्चर हॉल का हल्ला हूँ,
तुम शांतचित्त सत्संगों का।
मैं ख़ुद में आतमघाती हूँ,
तुम निपटारा हो दंगों का।।
मैं हिंदी वाला क ख ग,
तुम इंग्लिश की ए बी सी डी।
मैं झिलमिल करता गाना हूँ,
तुम फ़िल्म कोई लगती थ्री डी।।
मैं देशीपन का कुर्ता हूँ,
तुम फैशन वाला टॉप सखी।
मैं गाँव गढ़ा इक धब्बा हूँ,
तुम शहरों वाली छाप सखी।।
मैं चापलूस मुन्ना भाई,
तुम सीधी-सरल सी गाँधी हो।
मैं चक्रवात हूँ रंजिश का,
तुम सत्य-अहिंसा आँधी हो।।
मैं कांटों वाली झाड़ी हूँ,
तुम एक सुगंधित फुलवारी।
मैं कड़वा मिर्च-करेला हूँ,
तुम एक रसीली तरकारी।।
मैं फ़ोन पुराना मॉडल हूँ,
तुम अब की टच स्क्रीन सखी।
मैं दिखता सादा-फ़ीका हूँ,
तुम लगती हो रंगीन सखी।।
मैं बाह्य-पटल की मिथ्या हूँ,
तुम समरसता अंतर्मन की।
मैं तन में लिपटी मिट्टी हूँ,
तुम सुंदरता हो उबटन की।।
मैं बातें हूँ बेशर्मों की,
तुम लाज़-हया का दरवाज़ा।
मैं घर-घर होती चुगली हूँ,
तुम श्रद्धापूरित अंदाज़ा।।
मैं इक टूटा सा तारा हूँ,
तुम पूरी हुई मुराद सखी।
मैं अदना सा इक लेखक हूँ,
तुम मेरे सब ज़ज़्बात सखी।।
प्रखर कुशवाहा 'Dear'131 107 49- prakhar_kushwaha_dear @alkatripathi ,,☺ok
- prakhar_kushwaha_dear @vipin_vn part 4
- prakhar_kushwaha_dear @krishnaprem_kp part 4
- mohini7 main aasman tum jamin sakhi..❤️
- prakhar_kushwaha_dear @mohini7 ,, mai jamin tum asman sakhi..
prakhar_kushwaha_dear 102w
#dearsdare #prematirek
आप सभी को प्रखर कुशवाहा के नमस्कार!
आज मैं अपनी कविता "प्रेमातिरेक" का तीसरा भाग आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ,, उम्मीद है आप इसे भी उतना ही प्यार देंगे जितना भाग एक और दो को दिया था...
रचना पसन्द आने पर भाग-१ व भाग-२ पढ़ना ना भूलें,,
इच्छुक लोग cmnt करके बता सकते हैं,, मैं tag कर दूँगा।
बहुत बहुत धन्यवाद!"प्रेमातिरेक"
भाग - ३
मैं मई-जून की गर्मी हूँ,
तुम ठंडा मौसम सावन का।
मैं पतझड़ जैसा निर्झर हूँ,
तुम माह बसन्ती छावन का।।
मैं दुखती आँख किसानों की,
तुम मन मर्ज़ी की बारिश हो।
मैं कौड़ी-कौड़ी रोता हूँ,
तुम लाख टके की वारिस हो।।
मैं कर्कश व्याख्या कौए की,
तुम कोयल की परिभाषा हो।
मैं जन-जन का ठुकराया हूँ,
तुम जन-जन की अभिलाषा हो।।
मैं बेढंगा सा रैप गढ़ा,
तुम शीतल-संगम भजनों का।
मैं मयखानों में बजता हूँ,
तुम पावन सरगम स्वजनों का।।
मैं सस्ती सूखी रोटी हूँ,
तुम महंगा छप्पन भोग सखी।
मैं हर शय का पछतावा हूँ,
तुम फलदायक संयोग सखी।।
मैं जुगनू-जुगनू जलता हूँ,
तुम सूर्य पताका फहराती।
मैं धरती-धरती फ़िरता हूँ,
तुम आसमान में लहराती।।
मैं नफ़रत वाला रस्ता हूँ,
तुम स्नेह लुटाती गलियाँ हो।
मैं एक कलंकित कस्बा हूँ,
तुम मर्यादित सी दुनिया हो।।
मैं ज़हर भरा एक प्याला हूँ,
तुम बहती धारा अमृत की।
मैं गृह विनाशी छाया हूँ,
तुम छुटकारा हो शापित की।।
मैं दीपक होकर फ़ीका हूँ,
तुम दीप्तिमान एक मुखड़ा हो।
मैं चूर-चूर एक शीशा हूँ,
तुम चाँद का कोई टुकड़ा हो।।
मैं कंकड़,मनका,मूंगा हूँ,
तुम हीरा-पन्ना मंहगी हो।
मैं साँप ढका एक चंदन हूँ,
तुम रत्न जड़ी कोई टहनी हो।।
प्रखर कुशवाहा 'Dear'107 81 32- prakhar_kushwaha_dear @panchhiiii ,,, thank u so much ji.☺
- prakhar_kushwaha_dear @vipin_vn part 3
- prakhar_kushwaha_dear @mahek7 part 3
-
mohini7
mujhe yaad aaya ki
main parvat vala shiv hoon..
tum parvati rani mahlo ki..❤️ - prakhar_kushwaha_dear @mohini7 ,,, nhi mai khud ko shiv kaise kah skta hu,, meri sakhi ucch hai...
prakhar_kushwaha_dear 109w
#prematirek
आप सभी को प्रखर कुशवाहा के नमस्कार!
पढ़ने से पहले मैं बताना चाहूँगा कि रचना पढ़ते वक्त शीर्षक "प्रेमातिरेक" को ध्यान में रखें ,, शीर्षक कवि की अपनी अमूर्त प्रेयसी के प्रति अगाध प्रेम को प्रदर्शित करता है। जिसके चलते कवि ख़ुद को तुच्छ और अपनी सखी को उच्च दर्जा प्रदान कर रहा है ना कि समस्त पुरुष जाति को महिला जाति से निम्न दिखाने का प्रयास कर रहा है।
अगर प्रेयसी कवि के भावों से अवगत होगी तो तुच्छ और उच्च का कोई महत्व नहीं रह जाता,, रह जाता है तो सिर्फ़ "प्रेम"।
इस श्रृंखला के ७ भाग उपलब्ध हैं,, पसंद आने पर #prematirek पर क्लिक करके जरूर पढ़ें या बता दें तो मैं टैग कर दूंगा।
बहुत बहुत धन्यवाद!"प्रेमातिरेक"
भाग -१
मैं कोयले की कालिख़ जैसा,
तुम चंद्रप्रभा सी उजली हो।
मैं पलकों वाला पहरा हूँ,
तुम प्यारी-प्यारी पुतली हो।।
मैं युद्ध विराम का उल्लंघन,
तुम शांति समर्थक दूत सखी।
मैं पाकिस्तानी गोला बारी,
तुम प्रमाण प्रदर्शित सुबूत सखी।।
मैं चावल की ठुकराई कनकी,
तुम सदाबहार साबूदाना।
मैं लिबलिब करता गुड़ जैसा,
तुम वैक्सीन किए चीनी दाना।।
मैं बेचारा हास्य-व्यंग्य,
तुम ओजश्विनी कविता हो।
मैं कीचड़ वाला पोखर हूँ,
तुम निर्मल बहती सरिता हो।।
तुम मुख्य लाइन अख़बारों की,
मैं वशीकरण वाला पन्ना।
विद्वान समझते-पढ़ते तुमको,
मैं मनचले मनस्वी का अन्ना।।
मैं गंदी-गंदी गाली हूँ,
तुम प्रेम प्रदाता बात सखी।
मैं खुल्लमखुल्ला झोंका हूँ,
तुम बलखाती सी वात सखी।।
मैं बाहर बैठा मंगता हूँ,
तुम अंदर पुजती माता हो।
कोई और मिला मुझसा तुमको,
गुणगान तेरे जो गाता हो?
प्रखर कुशवाहा 'Dear'138 156 45- mahek7
-
mohini7
"tum mukhya line akhbaro ki..
main vashikaran vala panna hoon"...❤️ - prakhar_kushwaha_dear @mohini7 ,,, shukriya shukriya.. bahut dhanyawad..
- prakhar_kushwaha_dear @anamika_tiwari_mn,, here is part 1
- prakhar_kushwaha_dear @mahek7 ,, why did u delete ur all posts kirti..?
Sorry,, sorry... @its_tom_here sorry bro...