Bachchi
जरूरतें पूरी नहीं हुईं मेरी
मैंने मेरे हीं ख़्वाहिशों को दफना दिया,
हालातों से कुछ यूँ समझौता हुआ मेरा
उम्र से पहले हीं 'बच्ची' को बड़ा बना दिया।
खिलौने की किमत ऊँची थी
मैंने 'चाहत कलम की है ' बता दिया,
सपनों से कुछ यूँ इश्क़ हुआ मुझे
मैंने किताबों से दिल लगा लिया।
चाहत तो थी मुझे भी मासूम रहने की
पर वक़्त ने मुझे समझदार बना दिया,
नादानियाँ करने की वज़ह नहीं थी मेरे पास
वक़्त ने मुझे बेवजह ही जिम्मेदार बना दिया।
मेरे संघर्षों को देखकर अक्सर
उसने आँखों से आँसू छलका दिया,
'प्रेरणादायी कहानी लिखूँगी, माँ! '
ये कहकर मैंने उसको हँसा दिया।
जरूरतें पूरी नहीं हुईं मेरी
मैंने मेरे हीं ख़्वाहिशों को दफना दिया,
हालातों से कुछ यूँ समझौता हुआ मेरा
उम्र से पहले हीं 'बच्ची' को बड़ा बना दिया।
©masoom_bachchi
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