"अशांत मन"
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pragyat_01 71w
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अगर मन क़भी अशांत हो,दिल मे एक बेचैनी सी हो,
विशेष रूप से वर्तमान और भविष्य के मध्य की ऊहापोह को लेकर,
तो सही मायनों में कहीं घूमने निकल जाना चाहिए, स्वछंद वातावरण में स्वछंद विचारों के साथ,और आखिर में ऐसे मौके मिल ही जाते हैं घूमने हेतु, उन मौकों को आपको तराशने की आवश्यकता नहीं पड़ती,वे स्वयं आपके पास चले आते हैं,बहाना चाहे कोई भी हो....
बाहर,सर्द मौसम इस वर्ष की अपनी अंतिम साँसें
गिन रहा है,फिजाओं में हल्की गुलाबी चटक धूप मई की
दोपहरी का एहसास करा रही है,बसंत ऋतु दस्तक दे
चुकी है कोमल पत्तियां एवं नई कोपलें बरबस ही ध्यान
आकर्षित करती हैं।।
वाकई में बदलाव ही प्रकृति का शाश्वत नियम है,नई
कोंपलों को स्थान देने हेतु,पुरानी पत्तियों को अपने जीवन का त्याग करना ही पड़ता है,खुशनुमा माहौल है,आम के पेड़ बौरों से श्रृंगार कर चुके हैं,उसकी खूबसूरती किसी भी महिला के श्रृंगार को लजा सकती है।।
तो आज मैं भी अजीज मित्र संग निकल गया फाफामऊ (प्रयागराज)की ओर, जिस ओर क़भी मैं चन्द्रशेखर सेतु के ऊपर से निकलता था।।
क़भी नीचे नहीं जाना हुआ,लेकिन मन हमेशा करता था कि इस गंगा-यमुना दोआब की भूमि को जरा पास से देखूं,गंगा नदी पर अंग्रेजों के समय की बनी अद्भुत सेतु की नींव को नजदीक से देखूं क्या मंजर रहा होगा उस दौर का जब औद्योगिक क्रांति ने विश्व पटल पर अपने कदम बढ़ाए होंगे,
मशीनीकरण के युग ने धीरे धीरे विश्व जगत में अपनी पैठ बनाई,और आज 21वीं सदी में मनुष्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण से
कहीं आगे जा चुका है।।
इन्हीं सब को सोचते विचारते घूमते हुए आज एक सुखद दिन बीता,और अक्सा खयाल आया कि फोटोखींचक यंत्र से एक आद तस्वीरें भी निकाल ली जाएं लेकिन हमारे मित्र फोटोग्राफी के शौकीन तो नहीं पर आज फोटो कुछ यूं निकाल दी।।
PC-Rohit
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Naye vatavaran me nayi sufurti man ko tazza kar deti hai.
Aur photo ek dum mast aayi hai ...
Dost ne aachi photo keechi hai.