बस यूँ ही
तम तमी अँखियों में बीत गई ,
तुम बेवज़ा फिर याद आ गई ।
हम टूट गए थे बा वज़ तुम पर
तुम तम सी बेवफ़ा यामिनी हो गई।
बा वज़ / सभ्यता के साथ
बेवज़ा/ बगैर बनावटी ढंग के
©73mishrasanju
26 /10/2021 4:00 am
#uzlets
194 posts-
73mishrasanju 41w
Photo By Eric Mller on Unsplash38 7 1473mishrasanju 52w
तकिया
मैंने बदल दिया है
वह तकिया जिस पर सर रखकर हम सोते थे
सपने देखते थे
बहुत दिनों तक मेरी नींद सोख लेता था वह तकिया
सपने बुलबुले हो गए
अपने जाने कहां खो गए
धुल धुल कर भी ना गई तुम्हारी खुशबू
उस तकिए से
मेरा रतजगा बुलाती रही हर रात
बिस्तर के हर तरफ से उतरता रहा, चढ़ता रहा पैर ,पेट ,कांधे सब सो गए ,सोते रहे
सिवाय एक मन के ,
जो प्रेत सा उड़ता रहा रात भर जागता रहा या पीता रहा अश्क ,मन मेरा ,अब
मैंने वह तकिया बदल दिया है ।
संजय मिश्रा
15/8/2021
©73mishrasanju
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- dil_k_ahsaas Beautiful
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73mishrasanju 62w
जागृत स्वप्न
दिनभर की थकन से पस्त हुआ
बिस्तर पर आकर बैठा था
आँखे बोझिल होती जाती थी
जैसे तैसे सिरहाना सर को टिकाया था
सरगोश नींद की हुई शुरू
तभी शरारत करके अचानक
मन ने सपनों को जगा दिया
सोने पर तो सभी देखते
तुम देखो जगती आँखों से ख़्वाब
गहन नींद में गाहेबगाहे आये
सपनों की तुलना से अधिक सजग होंगे
नींद बेचारी अचकचाई सी
ये गई कि वो गई
देखने सपने शुरू किये
बढ़ते ही गए बढ़ते ही गए
कुछ छूटा कुछ पकड़ा
कुछ बांधा कुछ छोड़ा
कुछ लिया सहेज लिया सदा के लिए
कुछ छोड़ दिए बस गिरह लगा
ताना बाना भूली बिसरी
खट्टी मीठी यादों की
डोर पकड़ बढ़ता ही गया
सपनों की विस्तृत ये चादर
जितनी समेटी उतनी ही
फैलती गई जिद्दन बच्ची सी
कुछ रंग बिरंगे से सपने थे
कुछ काले और सफेद भी थे
कुछ स्वप्नों पर थी राख जमी
कुछ दहके हुए लावे भी थे
कुछ बर्फ से सर्द कठिन थे
कुछ रंग बहारों के भी थे
कुछ बीत चुके सपने भी थे
कुछ नए सँजोये से भी थे
सपनों की आपा धापी में
गुजर तीसरा प्रहर गया
नींद कहीं पथराई सी
इंतजार करती होगी
मैं सोच रहा आँखे खोले
कल सुबह हकीकत क्या होगी
सब प्यारे सपने पलकों में भर
आँखों को कसकर भींच लिया
अब नींद रूठ कर बैठी है
आती भी नहीं बुलाने से
संजय मिश्रा
3/6/2021
©73mishrasanju
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- 73mishrasanju @lazybongness धन्यवाद
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- sakshi_trivedi
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73mishrasanju 67w
जलती चिताओं की अनल अब ,
दावानल वलय सी लगती है ।
चमकती बेफिक्र ज़िंदगी अब ,
धुँआ धुँआ , राख सी लगती है ।
संजय मिश्रा - 1/5 / 2021
©73mishrasanju
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स्वप्नद्रष्टा
मै एक अचेतन स्वप्नदृष्टा
देखता हूँ अलस भोर में अँधकार से निकल भागने को आतुर सूर्य की छटपटाहट
दोपहर को खुले आसमान में रार मचाते धरा को दह्काते सूर्य को
और सांझ के साँवरे सलोने उच्च भाल पर बिंदी से जड़े शालीन सूर्य को
मैं महसूस करता हूँ सुदूर प्रांतों से लंबा रास्ता
तय करके आईं अद्भुत गुलाबी हवाओं को
देखता हूँ मै विस्मय से मुंह खोले से नवपल्लवित नर्म पौधों को
देख पाता हूँ चाँद के देर से आने पर भयभीत हिरणी सी बेसुध होती और खिल उठती चांदनी को
हां मै हूँ एक अचेतन स्वप्नदृष्टा
संजय मिश्रा 26/04/2019
©73mishrasanju
If you like, please tag your friends50 5 20- rani_shri
- 73mishrasanju @rani_shri धन्यवाद
- ravindra_upadhyay_gunjan Wahh
- sanjeevshukla_ वाह्ह्हह्ह्ह्ह
- lovenotes_from_carolyn Adbhut sapane!
73mishrasanju 76w
जीवन बोध
स्मृति के वे चिह्न उभरते हैं कुछ उजले कुछ धुंधले-धुंधले।
जीवन के बीते क्षण भी अब कुछ लगते है बदले-बदले।
जीवन की तो अबाध गति है, है इसमें अर्द्धविराम कहाँ
हारा और थका निरीह जीव ले सके तनिक विश्राम जहाँ
लगता है पूर्ण विराम किन्तु शाश्वत गति है वो आत्मा की
ज्यों लहर उठी और शान्त हुई हम आज चले कुछ चल निकले।
स्मृति के वे चिह्न उभरते हैं ... ...
छिपते भोरहरी तारे का, सन्ध्या में दीप सहारे का
फिर चित्र खींच लाया है मन, सरिता के शान्त किनारे का
थी मनश्क्षितिज डूब रही, आवेगोत्पीड़ित उर नौका
मोहक आँखों का जाल लिये, आये जब तुम पहले-पहले।
स्मृति के वे चिह्न उभरते हैं ... ...
मन की अतृप्त इच्छाओं में, यौवन की अभिलाषाओं में
हम नीड़ बनाते फिरते थे, तारों में और उल्काओं में
फिर आँधी एक चली ऐसी, प्रासाद हृदय का छिन्न हुआ
अब उस अतीत के खंडहर में, फिरते हैं हम पगले-पगले।
स्मृति के वे चिह्न उभरते हैं ... ...
अज्ञात
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-
madhursankhla_21prerna
Beautiful...
Very good afternoon - 73mishrasanju @madhursankhla_21prerna Good afternoon .
-
madhursankhla_21prerna
Thank you for reading my posts...
Thank you for reposting also...
Thanks a lot...
73mishrasanju 94w
ये दिल अपना न जाने क्यूँ
यूँ ही बस टूट जाता है
मनाते हैं जो हम दिल को
तो जग ये, रूठ जाता है
मेरी दीवानगी मुझको,
कहाँ ले कर के जाएगी
मेरी ख़्वाहिश किसी को भी,
न शायद रास आएगी
ये ग़म मेरा न जाने क्यूँ,
मुझी पर मुस्कुराता है
मनाते हैं जो हम दिल को
तो जग ये, रूठ जाता है
खिज़ाओं में बसे थे हम,
बहारें थीं मुहाने पर
क़रीब आईं नहीं पल भर,
मेरे इतना बुलाने पर
ये 'सच' मेरा न जाने क्यूँ,
मुझे बरबस रुलाता है
मनाते हैं जो हम दिल को,
तो जग ये रूठ जाता है
मेरी ख़ुशियाँ मेरे दिल से,
यूँ ही तक़रार करती हैं
ज़रा ख़ुश हम जो होते हैं,
हमीं पर वार करती हैं
मेरा हँसना, न जाने क्यूँ
क़हर मुझ पर ही ढाता है
मनाते हैं जो हम दिलको
तो जग ये रूठ जाता है
ये दिल अपना,न जाने क्यूँ
यूँ ही बस टूट जाता है
मनाते हैं जो हम दिल को
तो जग ये, रूठ जाता है
©73mishrasanju
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©73mishrasanju104 15 38- neelthefeel Extraordinary writing .....
- rekhta_ Kaafi khubsurat likha hai aapne❤️❤️
- mrkhan56 Bahut khoob
- psprem Nice one ️
- sanjeevshukla_ वाह्ह... बहुत बहुत खूबसूरत कविता..
73mishrasanju 95w
मेरा इश्क़ ही मेरी ज़िंदगी , इसको मिटायें किस तरह ,
तेरी ज़ुस्तज़ू में जी रहे , तुझे भूल जायें किस तरह ।
बीत जाये उम्र यूँ ही , नाम तेरे कर जो दी ,
मेरी ज़िंदगी बेहिसाब है , इसका हिसाब दूँ किस तरह।
हद से गुज़र जाये यूँ ही , ये तड़प जो मेरे दिल की है
ये ईनाम हैं जो ज़ख्म हैं , उनको छिपायें किस तरह।
दर पर तेरे झुक जाये यूँ ही , सज़दे को मेरी नज़र ,
तू ख़ुदा है मेरा ख़फ़ा है क्यूँ , तुझको मनायें किस तरह।
मेरी सांस रूक जाये यूँ ही , तेरी ख़ुशबू अब जुदा न हो ,
धड़कन मेरी तेरे नाम हैं , तेरा नाम न लूँ किस तरह,
करे जा सितम मुझ पर यूँ ही , तेरी हर सज़ा क़ुबूल है ,
मुझे दर्द देना अदा तेरी , इसे न कुबूलूँ किस तरह ।
©73mishrasanju
If you like, please tag your friends83 11 32- sanjeevshukla_ बहुत खूब
- vishal_pandhare वाह बेहद कमाल का लिखा है
- 73mishrasanju @rani_shri शायद आपके ईश्क़ क्यूँ हुआ , का ही विस्तार है । please look.
- rani_shri Bakamaal
- 73mishrasanju @rani_shri तहेदिल से शुक्रिया
73mishrasanju 95w
बैठ किनारे , देखता हुआ
सरोवर में गिरती उन बूँदों को
ओस की बूँदें , जो
झिलमिलातीं, सपनों की रात सी ,
परिणीति, तरंगें उत्पन्न करतीं ,
आश्चर्य है ! मेरा हृदय भी शांत ,
किन्तु कहीं-कहीं पर
डूबती - उतराती
वह यादें , जो ओस बन मेरी पलकों से झरीं थी कभी ।
देखता हूँ मैं कि मेरे छूते ही ,
वह पत्ता काँप उठता है,
सह नहीं पाता क्या वह भी,
तपती रेत की तरह मेरी आस को,
जो चुनती है ,
ओस ,
और सुंदरतम अतीत के ,
भाव विह्वल पल,
जैसे कि मैं फिर पूछता हूँ तुमसे ,
क्या मैं ,
देख सकता हूँ तुम्हें ?
अपने हाथों से ?
तुम मुस्कुरा देती हो,
अहसास करके मेरे हाथों की छुअन का ,
वह स्पर्श , जो अधरों से किया , तुम्हारा ,
मेरी अंगुलियों ने कभी ।
आह ! नहीं है अंत इसका , यह सब कुछ,
बनेगा - मिटेगा
बस इसी तरह से,
लहरें-तरंगें , आत्मसरोवर में उठेंगी किन्तु ?
यह भी हलाहल है जो ,
मजबूर कर रहा है , मुझे ,
शिव बनने को ।
बैठ किनारे ,
सोचता हूँ मैं ,
तुमसे है जीवन या तुमसे था कभी ?
©73mishrasanju
If you like, please tag your friends61 12 23- bal_ram_pandey Ji kya khoob ✍️✍️
- 73mishrasanju @athira785 Thank you
- sanjeevshukla_ वाह्ह्ह... वाह्ह्ह.. वाह्ह्हह्ह्ह्ह... बस वाह्ह..
- 73mishrasanju @sanjeevshukla_ मेरे लेखन को पढ़ने और पसंद करने के लिए धन्यवाद मित्र
मेरा इश्क़ ही मेरी ज़िंदगी , इसको मिटायें किस तरह ,
तेरी ज़ुस्तज़ू में जी रहे , तुझे भूल जायें किस तरह ।
बीत जाये उम्र यूँ ही , नाम तेरे कर जो दी ,
मेरी ज़िंदगी बेहिसाब है , इसका हिसाब दूँ किस तरह।
हद से गुज़र जाये यूँ ही , ये तड़प जो मेरे दिल की है
ये ईनाम हैं जो ज़ख्म हैं , उनको छिपायें किस तरह।
दर पर तेरे झुक जाये यूँ ही , सज़दे को मेरी नज़र ,
तू ख़ुदा है मेरा ख़फ़ा है क्यूँ , तुझको मनायें किस तरह।
मेरी सांस रूक जाये यूँ ही , तेरी ख़ुशबू अब जुदा न हो ,
धड़कन मेरी तेरे नाम हैं , तेरा नाम न लूँ किस तरह,
करे जा सितम मुझ पर यूँ ही , तेरी हर सज़ा क़ुबूल है ,
मुझे दर्द देना अदा तेरी , इसे न कुबूलूँ किस तरह ।
©73mishrasanju39 6 13- 73mishrasanju @gazal_e_vishal बेहद शुक्रिया
- drinderjeet बहुत खूब
- dipps_ Kya khub
- geet_001
- camyyy Wahh
बैठ किनारे , देखता हुआ
सरोवर में गिरती उन बूँदों को
ओस की बूँदें , जो
झिलमिलातीं, सपनों की रात सी ,
परिणीति, तरंगें उत्पन्न करतीं ,
आश्चर्य है ! मेरा हृदय भी शांत ,
किन्तु कहीं-कहीं पर
डूबती - उतराती
वह यादें , जो ओस बन मेरी पलकों से झरीं थी कभी ।
देखता हूँ मैं कि मेरे छूते ही ,
वह पत्ता काँप उठता है,
सह नहीं पाता क्या वह भी,
तपती रेत की तरह मेरी आस को,
जो चुनती है ,
ओस ,
और सुंदरतम अतीत के ,
भाव विह्वल पल,
जैसे कि मैं फिर पूछता हूँ तुमसे ,
क्या मैं ,
देख सकता हूँ तुम्हें ?
अपने हाथों से ?
तुम मुस्कुरा देती हो,
अहसास करके मेरे हाथों की छुअन का ,
वह स्पर्श , जो अधरों से किया , तुम्हारा ,
मेरी अंगुलियों ने कभी ।
आह ! नहीं है अंत इसका , यह सब कुछ,
बनेगा - मिटेगा
बस इसी तरह से,
लहरें-तरंगें , आत्मसरोवर में उठेंगी किन्तु ?
यह भी हलाहल है जो ,
मजबूर कर रहा है , मुझे ,
शिव बनने को ।
बैठ किनारे ,
सोचता हूँ मैं ,
तुमसे है जीवन या तुमसे था कभी ?
©73mishrasanju43 4 12- odysseus Good to see you after a long gap
- love_whispererr Beyhadh khooob ❤️
- love_whispererr Happy to see you back
73mishrasanju 126w
मेरी ज़िंदगी है , दर्द कि तरह,
अश्कों से लिखी इबारत कि तरह।
सुनता हूँ अपने दिल की , धड़कन कभी-कभी,
जैसे मातमी शहनाई कि तरह,
यादें सताती हैं, आहट कि तरह,
उन कदमों कि, जिनके लिये मैं कभी,
बिखरा था बनके ओस कि तरह,
सिमटा हूँ चिता की राख कि तरह।
मेरी ज़िंदगी है , दर्द कि तरह.....
खो सा गया हूँ अपने ख्वाबों में इस तरह,
जैसे धुंध में , परछाई कि तरह,
तपिश , सताती है चाहत कि तरह
उस दामन कि जिसके लिये मैं कभी,
बिखरा था, बनके गुलाल कि तरह,
सिमटा हूँ चिता की राख कि तरह ।
मेरी ज़िंदगी है दर्द कि तरह,
अश्कों से लिखी इबारत कि तरह।
तुम बिन ज़िंदगी है ..........
©73mishrasanju
If you like, please tag your friends158 109 57- divyatiwari19
- soul_in_pen Kiya kahe,,, apke taarif mein har sabd kam hain... Bahut hi nayab aur khubsurat sir ji
- sanjay_kumr लाजवाब
-
sahil12345
hello,
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Your picture and bio in book - 73mishrasanju @sahil12345 मेरा व्हाट्सएप नम्बर 9340669518 है । कृपया अपने anthology group में मुझे add करें और प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार से व्हाट्सएप करें ।
73mishrasanju 129w
प्रेम की अनुभूति और अभिव्यक्ति में अंतर क्यूं है।
नम हुई आँख ज़रा, फिर ये समंदर क्यूं है |
©73mishrasanju
If you like, please tag your friends131 47 45- mai_shayar_to_nahi_ Waah ji waah
- sahildureja06 Waah
- soul_in_pen Ay hay hay,,, sir ji kiya hi kahna
- sanjay_kumr Waah
- pritty_sandilya Waah
73mishrasanju 139w
उलझन
उलझे विचार धांगो से
सुलझते ही नहीं
लाखों बार नहीं
बार बार कई बार कोशिश की
पर नहीं सुलझते
सोचता था एक सिरा जो आ जाए हाथ तो हौले हौले कितना भी लम्बा वक्त लगे
करीने से एकसार कर गोले बना दूंगा उलझे विचारों के
ताकि तुम्हे न हो परेशानी एक ख्याल के दुसरे ख्याल में उलझ जाने की
तुम्हारा हर ख्याल अलहदा हो
हर विचार सुलझा हो तो
सहज सरल हो जाए जीवन
पर कितना सर मारा कितनी बार आँखों को आंसुओं से धोकर साफ़ किया
अब तो याद भी नहीं सच्ची
समझ गया तजुर्बों से उम्र के बढ़ते अंकों से और जीवन के कम होते वर्षो से
उलझे विचार रेशमी धागों से है जो सिरे मिल जाने पर भी नहीं सुलझते कभी
रेशमी धागों में पड़ी गांठे कहाँ खुलती है किसी से
उन्हें तोड़ ही देना पड़ता है
और टूटा हुआ कुछ भी हो व्यर्थ है
चाहे रिश्ते हों या धागे
विचार हो या ह्रदय
सब अर्थहीन
©73 mishrasanju
If you like, please tag your friends150 71 49- soulful Ek dam sahi
- _bahetiankita Wow .... N last two lines...
- 73mishrasanju @_bahetuankita शुक्रिया
- soul_in_pen Bahut hi behtareen,,, dil bhag bhag ho gaya
- sanjay_kumr बहुत उम्दा
73mishrasanju 141w
मैं कोई सूफी नहीं तुम भी पैग़मबर नहीं
पाप क्या है पुन्य क्या है आप ही समझाईये .
वक्त कम है जो बचे हों वो गिले कर लीजिये
आप की मर्जी है फिर जाईये न जाईये .
भूल कर कल के दुखों को आज को अपनाइये
रोने को दुनियां पड़ी है ,आप मुस्कराइये
©73mishrasanju
If you like, please tag your friends155 93 46- 73mishrasanju @rituchaudhry आभार
- soulful Ahaa
- advocate_arzoo Hi sir am back
- advocate_arzoo Thanku so much
- sanjay_kumr लाजवाब
73mishrasanju 154w
कब ये देह त्यागू, शिशु सा मुस्कुराऊँ में.....
इस चक्रव्यूह से पार हो जाऊँ में......
असीमित स्वप्न जो कल तलक,आँखों में पले थे.....
आज हो विकल आहों से चले,.....
में निशब्द,मौन,निरर्थक प्रश्नों में उलझा रहा,...
सामने मेरे ही,मेरा हल निकलता रहा,...
.अब ये हाल है.....साँसे भी भारी, मृत्यु ये तेरी आभारी,
ले चल कहीं दूर,जहाँ पुनर्जन्म हो मेरा,
इस रात के बाद हो नूतन सवेरा,......
कब ये देह त्यागू,शिशु सा मुस्कुराऊँ में......
इस चक्रव्यूह से पार हो जाऊँ में......
इस चक्रव्यूह से पार हो जाऊँ में......
©73mishrasanju
If you like, please tag your friends168 77 52- soul_in_pen Apke kalam mein jo baat hain, shayed kahin aur ho,,, bahut hi umdaa
- 73mishrasanju @soul_in_pen मेरी रचनाओं को पढ़ कर सराहना देने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ। आप एक उम्दा लेखक हैं और आपका भविष्य उज्जवल है।
- soul_in_pen @73mishrasanju dil se shukriya sir ji,,, bas ap sabhi se abhi sikh hi raha hu..
- dipps_ बहुत खूब
- im_lav salute boss
73mishrasanju 159w
पेशानी की सिलवटों पे मेरी गौर ना करो,
ग़ुम हूँ ख्यालों में तुम्हारे यूँ शोर ना करो।
©73mishrasanju
If you like, please tag your friends165 70 49- 73mishrasanju @vishal__ शुक्रिया
-
monadeep
Mai majboor hu mujhe kamjor na karo
Meri khamoshiyon me mjhe lachaar na karo - monadeep Behtreen
- 73mishrasanju @monadeep वाह ।
- monadeep @73mishrasanju tnqw
73mishrasanju 160w
रचनाकार: दुष्यंत कुमार
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये
यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिये
न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये
ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये
वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिये
जियें तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले
मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिये.
मयस्सर=उपलब्ध
मुतमईन=संतुष्ट
मुनासिब=ठीक
प्रस्तुति :- संजय मिश्रा
If you like, please tag your friends113 28 31- bal_ram_pandey Simply superb
- mere_khyal_se Bhut khoob
- thewildbutterfly Dushyant kumar ji ki me bhi fan hu, thanks for sharing this
- vishal__ अहा क्या लाजवाब पेशकश है मन प्रफुल्ल हो गया इसे पढ़कर वाह
- 73mishrasanju @vishal__ धन्यवाद
73mishrasanju 162w
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@laughing_soul आपकेकहने पर लिखा है। अपनी अमुल्य टिप्पणी अवश्य दें।रिश्ते
म
महके
मन मेरा,
मोगरे से रिश्ते,
मेरे अपने मेरे पास,
मत महक मन खोखले रिश्ते
©73mishrasanju
If you like please tag your friends152 61 46- saknim24
- 73mishrasanju @saknim24 Thank you so much
- shashiinderjeet @laughing_soul @mrunaalgawhande
- vishal__ उम्दा बहुत उम्दा कहा भाई जी
- 73mishrasanju @vishal__ आभार
73mishrasanju 163w
हाँ ! अभी शेष है
-----------------
शेष है ह्रदय में स्पंदन अभी ।
शेष है सहमा हुआ सा निश्छल प्रेम ।
शेष है डरी हुई संवेदना
सुनता है मन उजड़े ह्रदय की वेदना ।
शेष है सुन्न होती चेतना ।
शेष है भंगुर होता विश्वास ।
शेष हैं जड़ें , सूखते वृक्ष की ।
कान बहरा चुके आश्वासनो से अब।
नही सुनपाते कान चीखें ,
भीड़ में मारे गए मासूमों की,
बिलखती विधवा और बच्चों की।
नही सुनपाते कान ,
आवाजें टूटती चूड़ियों की ।
नही सुनपाते कान ,
चीखें ,चीत्कार,
बलात्कारियों की हवस की शिकार
अबोध बच्चियों ,अबलाओं की।
नहीं सुनपाते कान ,
धर्मांध भीड़ के उत्पाती हल्ले की।
शेष है आस सुखद परिवर्तन की।
शेष हैं आशाएं सुखद अनुभूति की ।
शेष हैं आशाएं बगीचे में बहारों के
फिर लौटने की।
शेष हैं आस लुभावने फूलों के फिर खिलने की।
शेष है अडिग विश्वास
शेष है अखंड निश्छल प्रेम ।
शेष है मासूम सी संवेदना ।
शेष है ह्रदय में स्पंदन अभी ।
©73mishrasanju
If you like, please tag your friends162 87 45- anupamsabhivyakti And I'm surprised, you have liked a few of them and also reposted them
- ankita97 Bahut sunder
- 73mishrasanju @ankita97 बहुत बहुत धन्यवाद
- thewildbutterfly Bahut umda
- mukesh_kumar_ojha वाह निकल ही गया
हम ताक में थे जाने कैसे तस्वीर में वो दिखा