एक सवाल ख़ुद से ——
किसी का हमारे बीच से चले जाना पार्थिव देह का ब्रह्म में लीन हो जाना सम्पूर्ण रूप से जाना होता है क्या ? जाने वाले के विचार , प्रभाव ,काम ,सब कुछ तो यहीं रह जाता है हमारे बीच तो महज़ साँस रूक जाने को जाना कैसे मान ले ?
क्या राम-कृष्ण ,महावीर -बुद्ध ,कबीर -नानक ,गांधी सभी तो आज तक हमारे साथ
जी रहे है
कोई सगा हो या ‘सुषमा’ कभी नहीं जा सकते वे यहीं रहेंगे हमारे बीच बन के गीत ......
©jaidhinijain
jaidhinijain
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jaidhinijain 158w
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jaidhinijain 158w
साँसों की गठरी पीठ पर लादनी होगी
जिंदगी ऐसे बितानी होगी ।
ज़िंदा रहने को आदमी को अपनी हवा
भी ख़ुद बनानी होगी ।
पेड़ पौधे भी वेंटिलेटर पर आ गए
गुम हुई सूरज की रोशनी ,
बनो हाई टेक पर मत भूलो प्रकृति संग
संगत बिठानी होगी ।।
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©jaidhinijain -
jaidhinijain 158w
क्या ख़ूब सावन आया है
देश में बदलाव लाया है
पहले पहल चंद्रयान भेज
गगन पर झंडा फहराया है
मुस्लिम बहनों के लिए
तलाक़ बिल पास कराया है
धरा पे स्वर्ग कश्मीर को
अखंड भारत में लाया है
एक झंडा एक क़ानून
दृढ़ संकल्प लाया है
धारा ३७० में सुधार कर
जन लोकतंत्र जगाया है
नमो नमो अतुल्य अमित
देश में सुराज्य आया है
©jaidhinijain -
jaidhinijain 158w
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पीली चुनरी गुलाबी बिंदी लाल लाली लगाए।
सज धज के गोरी हरियाली अमावस मनाए।
©jaidhinijain -
jaidhinijain 158w
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आज का समय
स्वर्ण सीढ़ी के बनाने के बजाए
आपदा में मंज़िलों से नीचे
उतरने की सीढ़ी
पर ध्यान देने का है ।
©jaidhinijain -
प्रेमचंद
युग- प्रवर्तक लेखक प्रेमचंद को पढ़ना माने शहरी ,कस्बाई ,देहाती जीवन को जीना ....साहित्य में प्रकृति सौंदर्य और कल्पना को साहित्यकारों के बीच से निकाल कर आम जन के लिए वास्तविक ज़मीनी कथा प्रस्तुत कर प्रेमचंद ने नई विचारधारा को जन्म दिया ...उनका विपुल साहित्य पढ़ना तो मुश्किल लेकिन ५१ अनमोल कहानियों का आज एक संदूक खोला है ....
©jaidhinijain -
jaidhinijain 159w
गुनगुनी धूप रिमझिम बारिश उड़ती तितलियाँ
तीनो बचपन की मेरी सखी सहेलियाँ
पता नहीं कौन देस रहती है
अब तो यादों में आया करती है
कितने बरस हो गए सबको बिछड़े
हमको साथ में बतियाए
हम ढूँढते वो गाँव की गुम हुई पंगडंडी
वो बाग़ बग़ीचे जहाँ उगते अब कोचिंग में बच्चे
बारिश को देख घर में दुबक खिड़की से झाँकते है
माँ की डाँट खा भीगने से बचते है बच्चे
कहाँ रहे वो आँगन वो दरख्त जिनकी छांव में
सेंकते थे गुनगुनी धूप और झूला डाल लेते थे हिचकोले
किसी को मिले तो कहना
ढूँढ रही है तुम्हें तुम्हारी एक और सखी भोली भाली धरती
अब वो भी बूढ़ी हो चली है तुम बिन रूख़ी हो रही है
तीनों कभी तो उस से मिलने आओ उसके घर जो है प्रकृति ।
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तीनो बचपन की मेरी सखी सहेलियाँ
पता नहीं कौन देस रहती है
अब तो यादों में आया करती है
कितने बरस हो गए सबको बिछड़े
हमको साथ में बतियाए
हम ढूँढते वो गाँव की गुम हुई पंगडंडी
वो बाग़ बग़ीचे जहाँ उगते अब कोचिंग में बच्चे
बारिश को देख घर में दुबक खिड़की से झाँकते है
माँ की डाँट खा भीगने से बचते है बच्चे
कहाँ रहे वो आँगन वो दरख्त जिनकी छांव में
सेंकते थे गुनगुनी धूप और झूला डाल लेते थे हिचकोले
किसी को मिले तो कहना -
jaidhinijain 160w
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गगन में विचरण करते
परिंदे हो माना
देखो साँझ पड़ गई
शजर याद करे
©jaidhinijain -
jaidhinijain 160w
✍️✍️✍️✍️
दीदार मेरा बंद आँखों से किया करो
ज़िंदगी हूँ मैं खुल कर मुझे जिया करो
महफ़िल में होंगी तालियाँ मेहरबानों की
तुम तक़रीर दिल से बस दे दिया करो
यादें है यादों का क्या आती जाती रहेगी
सामने होंगे तुम्हारे पुकार दिल से लिया करो
एक दो दिन का सबर नहीं जिस्त भर का है
दिल छोटा करते नहीं घूँट ग़म के किया करो
सुकून मिले लिखकर तुम्हें ख़त में अहसास
कभी कोरा काग़ज़ भेज लिफ़ाफ़े में दिया करो
माना तुम ही तुम हो ज़ेहन में सब रहते ख़फ़ा
कभी किसी और को भी आने जाने दिया करो
कभी न थके नाचीज़ शब्दों में तुम्हें ढाल के
तुम भी कभी शब्दों को काग़ज़ पे सिया करो ।
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शब्दों को काग़ज़ पर सिया करो
©jaidhinijain -
jaidhinijain 160w
सुनो माँ
जब छोटा था तुम लोरी सुनाती थी
वह लोरी आज भी याद है मुझे
लोरी में कहा करती थी
‘चंदा मामा दूर के’पर अब कैसे कहूँ माँ
चाँद पे बढ़ते क़दम रोक नहीं पाउँगा माँ
पानी की थाली में चंदा की परछाईं
दिखा कर अब बहला न पाओगी माँ
बिठाकर चन्द्रयान में जब ले जाऊँ तुम्हें चाँद पर
सुनो प्रेयसी ,
जब से चन्द्रयान उड़ने की ख़बर सुनी
मन करे चाँद की नगरी दिखाऊँ और कहूँ
देखो मैं सच कहता हूँ ना तुम्हें जो चाँद कहता हूँ इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा अब तुम्हें दर्शन का
बादलों में छिपा बैठा होगा कहीं डपट देना तुम
फिर मुझे पानी पिला अपना व्रत तोड़ना
बिठाकर चन्द्रयान में जब ले जाऊँ तुम्हें चाँद पर ।।
सुन चकोर
तू भी जा सकेगा अपने चाँद के पास
उसे पता चलेगा चाहता है उसे कोई चकोर
जब वह तुम्हारे पास होगा तो करना शोर
गिले शिकवों का विरह की बातों का
करना मन की दिनरात होगी धवल चाँदनी
बिठाकर चन्द्रयान में जब ले जाऊँ तुम्हें चाँद पर
सुनो रसिकजन
दुनिया करें चाँद का अजीब तरह से विग्रह
गोल कभी आधा कभी टेढ़ा तो कभी उपग्रह
कविमना ह्रदय का चाँद नाना रूप धरता है
माँ की रोटी कभी महबूब की चुनर में टँकता है
जुदाई ,इंतज़ार का यही चाँद गवाह बनता है
अब के देखना इसे ग़ौर से और मुझे बताना
बिठाकर चन्द्रयान में जब ले जाऊँ तुम्हें चाँद पर ।।
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बिठाकर चन्द्रयान में जब ले जाऊँ तुम्हें चाँद पर
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©jaidhinijain
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rangkarmi_anuj 158w
बाबा
सुबह कलेबा किया करता था
बासी रोटी अचार खाया करता था
ये तो आपके समय में होता था
क्योंकि तब मैं छोटा लल्ला था
अम्मा काश वो समय आ जाता
और तुम्हारी गोदी में फिर से खेलता
जब जब रसोई में जाता हूँ
चूल्हा देख कर तुम्हें याद करता हूँ
अम्मा इसी पर खाना बनाती थी
बड़े चाव से स्वादिष्ट खीर पकाती थी
छोटी कटोरी में खीर भरकर
अम्मा तुम मुझे ख़ूब खिलाती थी
बेर्री की रोटी चने की भाजी
याद आती है मुझे अभी भी
अम्मा तुम बनाया करती थीं
अपने हाथों से खिलाया करती थीं
आटे की लोई हाथ से तापथी
गोल करके तुम बनाती थी रोटी
अम्मा मैं भी बाबा बन गया
देखते देखते मैं भी बूढ़ा हो गया
लेकिन मैं तुम्हें नहीं भूला हूँ
माँ हो हमेशा तुम्हें याद करता हूँ
प्यार तो सबका मिल रहा है
पर तुम्हारा प्यार नहीं मिल रहा है
खीर अभी भी बनती है
पर वैसी नहीं बनती है
जैसे अम्मा तुम बनाती थी
दूध में इलायची डाल कर पकाती थी
बेर्री की रोटी भी नहीं मिलती है
क्योंकि चूल्हे पर रोटी नहीं बनती है
©rangkarmi_anuj -
neha_netra 163w
सहर=Morning
अज़ान=The Islamic call to prayer
तर्जुमा=Translation
आफ़ताब=Sun
माहताब=Moon
गुस्ताख़ी माफ हो©neha_netra
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an_aimless_journey 174w
बीच में कहीँ
पिछली कहानी का अंत तब तक नहीँ पढ़ती हूँ,
जब तक अगली कहानी का आगाज नहीँ मिलता!
बस इस तरह मैं खुद को मशगूल रखती हूँ,
न पिछले से उतरती हूँ न अगले में चढ़ती हूँ!!
❤️✍️
©an_aimless_journey -
divinedevil157 175w
जिनका सूकून कामयाबी में था
वो दौड़ते गए,
हमें सुकून में ही कामयाबी दिखी
और हम ठहर गए !
©divinedevil157 -
ayush_tanharaahi 176w
ना शब्दों का ज्ञान मुझे हैं,
ना वर्णो की पहचान मुझे हैं।
जो दिल मे हैं भाव उमड़ता,
बस उसे बयां कर देता हूँ ।
छ्न्द ना जानू, गजल ना जानू,
गद्य,पद्य का आधार ना जानू।
दोहा क्या हैं समझ नही हैं,
भाषा का विस्तार ना जानू।
गलत हूं लिखता माना मैने,
मात्राओं की त्रुटियाँ करता हूं।
हूं अबोध हिन्दी का बालक,
हिन्दी की सेवा करता हूं।
मुझे नही सम्मान की इच्छा,
ना अपमान का बोध मुझे।
जिसे जो कहना हैं वो कहले,
तंज, कटाक्ष, व्यंग्य जितने करना हैं करले।
मैं सच्चाई का दामन कभी ना छोडूंगा,
हां स्वीकार करता हूँ मैं,
मैं भाषा के ज्ञान से दूर हूं बहुत,
पर अन्तरमन मे उमडे भावो को अभिव्यक्त करना नही छोड़ूंगा ।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan.
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प्रिय रचनाकारो, सादर प्रणाम
"महारथी कर्ण- एक नायक या खलनायक"
यह विषय है हिन्दीलेखन की मासिक प्रतियोगिता का।
इस विषय पर आप सभी रचनाकारों के विचारों का स्वागत है,
*रचना गद्य या पद्य दोनों ही विधाओं में लिखी जा सकती है,
*आप सभी टैग के माध्यम से अपने अन्य मित्रो को इस प्रतियोगिता की सूचना दे सकते है,
*चयन समिति का गठन शीघ्र कर आप सभी को सूचित किया जाएगा,
* 08अप्रैल2019,मध्यरात्रि तक की रचना मान्य होगी,
*रचना के साथ #hindilekhan और #HLM2 का प्रयोग करना अनिवार्य है
टैग की अधिकता व सीमित नोटिफिकेशन के कारण आप रचनाकारों की रचनाओं तक पहुँचने में हमे कठिनाई होती है अतः आप सभी रचनाकारों से विशेष आग्रह है कि अपनी अन्य रचनाओं में टैग के साथ #HindiLekhan का प्रयोग अवश्य करें
©hindilekhan -
anita_sudhir 176w
अस्मिता को तार कर ,आत्मा पर वार कर
मान पर चोट कर कहाँ भाग जाएगा ।
रक्तरंजित तन ये ,बदले की आग लिये
स्वरूप चंडी का धरे , तुम्हें ढूँढ़ लाएगा ।
हाथ में कटार लिये ,लक्ष्य पर दृष्टि किये
प्रहार से दुष्ट अब , कैसे बच पाएगा ।
गोद मे बेटी दुलारी,पड़ी जो दृष्टि तुम्हारी
दुर्बल न समझ तू , मुंड कट जाएगा ।
कभी दुर्गा कभी काली, कभी लक्ष्मीबाई बन
पाप के विरुद्ध खड़ी , अंत तेरा आएगा ।
***
#hindilekhan#tod_wt#panchdoot_news
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#Hindiwriters#hindiurduwritersअस्मिता को तार कर ,आत्मा पर वार कर
मान पर चोट कर कहाँ भाग जाएगा ।
रक्तरंजित तन ये ,बदले की आग लिये
स्वरूप चंडी का धरे , तुम्हें ढूँढ़ लाएगा ।
हाथ में कटार लिये ,लक्ष्य पर दृष्टि किये
प्रहार से दुष्ट अब , कैसे बच पाएगा ।
गोद मे बेटी दुलारी,पड़ी जो दृष्टि तुम्हारी
दुर्बल न समझ तू , मुंड कट जाएगा ।
कभी दुर्गा कभी काली, कभी लक्ष्मीबाई बन
पाप के विरुद्ध खड़ी , अंत तेरा आएगा ।
***
©anita_sudhir -
_aahana_ 176w
डुबा कौन सकता है किसी को यहाँ
भँवर अपने ही मन के सबको बहा ले जाते..
©riyabansal -
shiv__ 177w
#wds #hindiwriters #pod #trickypost
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होली की हार्दिक शुभकामनाएँ ❤☺
@hima_writes @bleed_in_ink @succhiii @raaj_kalam_ka @diksha_chaudhary @73mishrasanju @sanjay_writes @lovepoetry @jay1k95 @barish
20/03/19दिल की बात सामने आ जाए तो क्या बात है,
तुम्हारा चेहरा मुस्कुरा जाए तो क्या बात है,
ये फलसफ़ा हमारा और तुम्हारा है,
आओ इसमें एक उम्मीद जगाते हैं,
कल होली है तुमको ये याद दिलाते हैं।।
बंदिशो की बात ना करियेगा महफ़िल अभी तो सज़ी है,
हम सब मुस्कुरा रहे हैं क्योंकि यह मस्तानों की टोली है।
©shiv__ -
manav_9 177w
चुनाव
देखो समन्दर में फिर से ज्वार आ रहा है,
शायद कहिं चुनाव आ रहा है???
धर्म जाती में बटनें का फिर से त्योहार आ रहा है,
पता करो कही चुनाव आ रहा है?
घोड़े की शक्ल में,गधा भी बिकने को तैयार आ रहा है,
पता करो कही चुनाव आ रहा है???
नए वादो के साथ नया विचार आ रहा है,
जरा पता करो कहीं चुनाव आ रहा??
कोई टोपी पहने तो कोई मंदिरों के चक्कर लगा रहा है,
पता करिये जनाब कही तो चुनाव आ रहा है।।
©manutspr
