वो बेवफ़ा कह गई
जिंदगी में एक कमी रह गई ,
वो जाते-जाते ये बात कह गई ।।
किसी को खाना मयस्सर नहीं ,
ये हुकूमत दलालों की रह गई ।।
जंग करते रहे वो हम से जीते जी,
तन की मिट्टी भी यहीं रह गई ।।
प्यार बांटते हैं चलो जमाने में,
उसकी तसवीर दीवारों में रह गई ।।
मणि प्यार करते रहे एक उन्हीं से ,
जब मौत आई तो वो बेवफ़ा कह गई ।।
©manikyab
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manikyab 187w
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manikyab 187w
मुलाकात हुई
आज उन से पहली मुलाकात हुई ,
उम्र भर यूं ही साथ चलेंगे बात हुई ।।
हम जलते रहे यूँ दीये से रात दिन ,
जो हम बुझे तो अंधेरी पूरी रात हुई ।।
नंगों को वस्त्र बाँटने निकले थे घर से,
मन के नंगे लोगों से मुलाकात हुई ।।
मौत का तमाशा देखने गया था शहर ,
जनाज़े में बूढ़े लोगों से मुलाकात हुई ।।
मणि ढूढ़ता रहा साथ चलने के साथी ,
हर बार एक जानवर से मुलाकात हुई ।।
©manikyab -
manikyab 208w
अटल जी
©माणिक्य बहुगुणा -
तुम्हारा प्रेम
एक मुलाकात की आरजू थी ,
अब हर मुलाकात पहली सी लगती हैं
एक दूसरे को देखते रहने पर भी देखते रहने का मन हर बार होता है ,
हर छुवन सिमेट रखी हैं मन मंदिर में ,
मैंने दबा रखे हैं अंतस में कुछ पल स्कूटी के पीछे बैठने के ,
मेरा तुम को अंक में भर लेना का मन ,
तुम को तन से बाहर व तन से अन्दर महसूस करने का आनन्द ,
तुम्हारा सब कुछ सौप देने का प्रेम ,
समर्पण , त्याग , दया ,
मैं नहीं जानता इसका मैं हकदार हूँ या नहीं , लेकिन मैं कभी कभी खुद को अयोग्य मानता हूं ... ।
तुम प्रेम की पराकाष्ठा में मेरी देवी हो .. जिसे पत्थरों में या फूलों से नहीं ..
प्रेम से पूजा जा सकता है ...।
लेकिन मेरे जीवन के कई पहलुओं से तुम अनजान हो ... एक दम अनजान , एक शिशु की तरह ,
मैं एक असफ़ल व्यक्ति हूँ ,
जिसने बचपन से अब तक केवल सीख है ,
जिसने केवल जीवन में गलतियां की हैं जिसका भुकतान भी किया है ..।
मैं अक्षम भी हूँ हर क्षेत्र में , तुम सक्षम ,
कैसे हूँ तुम्हारे लायक मैं ?
नहीं जानता ..
लेकिन फिर भी तुम को हृदय से चिपकाये रखना चाहता हूं ..।
©माणिक्य बहुगुणा -
manikyab 210w
नेता जी
खुशहाली शब्द चुनावी वादों में था ,
हत्या, लूट नेताजी के इरादों में था ,
मेरा घर बचे , मेरे बच्चे पढ़ें ,
जान की भीख माँगता वोटर लाइनों में था ,
इस शहर के अमीरों ने हवा भी खरीद डाली ,
मेरी हत्या का जिम्मेदार वो नेता ही था ।
शिक्षा , उच्चशिक्षा के नाम पर लूटते हैं नेता ,
शिक्षा बेचने का ठेका तो उसके भतीजे को मिलना था ।
पक्ष - विपक्ष पति पत्नी हैं ...
उन्हें तो हर निशा एक होना था । -
दास्तां
कितना दर्द है इस दास्तां में ,
कहीं भी नहीं कोई सुकूँ में ,
घर हो या बाहर हमदर्दी का नाम नहीं ,
राति बख़त बिन मद्यपान किया हुआ इंसान नहीं
किसी के पास इल्म नहीं तो किसी के पास मंजिल नहीं ,
कोई खाना खाता नहीं तो किसी के पास भोजन नहीं ,
कोई वट वृक्ष को काट रहा है केवल अपने लिए ,
किसी के पास नहीं हैं ईंधन चूल्हा जलाने के लिए ,
किसी ने तो पहाड़ के पहाड़ खोद कर बेच डाले
किसी को मिलता नहीं एक पत्थर चूल्हा जलाने के लिए ,
पाश्चात्य परिवेश ने कदम रखा है अभी ,
ऐसे परिवेश की दुनियां में गुलाम न हो जाऊं कभी,
मेरा देश संसार का वह देश है जहाँ कपड़े तन ढकने को पहने जाते थे ,
आज तन दिखाने को पहन रहे हैं ,
जब वस्त्र नहीं थे तन ढका पत्तों से ,
आज नफ़रत कर रहे हैं पुराने कपड़ों से ,
पुराना क्या तू खुद कितना पुराना है ?
फिर भी तुझे खुद से कितना प्यार है ,?
©माणिक्य बहुगुणा -
manikyab 210w
कैमरा
सुख-दुख के पलों को क़ैद कर लेता है कैमरा ,
सत्य को सत्य और झूठ को झूठ बताता है कैमरा ,
मोहब्बत के पलों को जमा देता है रंगीले रंगों में
और स्मृतियों के अलबम में सेव कर देता है कैमरा,
©माणिक्य बहुगुणा -
manikyab 210w
राजनीति
एक बिहार ही क्यों पूरे देश को जला दो ,
गुनहगारों को छोड़ो शरीफ़ों को सजा दो ।।
बच्चे मेहनत कर रहे हैं जी जान से ,
कुछ आरक्षण से कुछ पैसों से पास करा दो ।।
पच्चीस फ़ीसदी अंक वाला नौकरी पा जाता है ,
साधारण वर्ग वाले को मारो फांसी में लटका दो
जीत न पाओ अगर कोई भी चुनावी जंग ,
हो सत्ता में जीत के पैमाने ही बदल दो ।।
राजनेताओं के हक में बदलता रहा है सविधान,
कुछ नियम जनता की भलाई के लिए बदल दो।
अवैध बन रहा हो तो बनने दो , पैसे भी लो ,
है सरकारी फ़रमान तो तोड़ दो ।।
©माणिक्य बहुगुणा -
manikyab 210w
ग़ज़लनुमा
कानून की धज्जियां उड़ाओ ,न्यायालय में ताला मार दो ,
सोशल मीडिया को न्यायालय घोषित कर दो ।
भारतवर्ष में विभिन्न रंग हैं ,विविधता में एकता है ,
उन रंगों को बिखेर कर , उन को लड़ाओ और अलग कर दो ।।
बलात्कार , आगजनी , आरक्षण , दंगे सब खुद कराओ ,
आँच खुद पर आए तो धर्म , जात का जामा पहना दो ।
भूखा रोटी मांगे , नौजवान नौकरी मांगे तो ,
विपक्ष की चाल बात कर सोशल मीडिया में टोल करा दो ।
गर कोई चाटुकारिता ना करे , हिंदुत्व से पहले नौकरी की बात करे तो ,
उसको पाकिस्तान का एजेंट बता कर पाकिस्तान भिजवा दो ।।
सब पार्टियाँ बस खुद का ही हित साधती हैं ,
आप भी जनता को भूलकर नेताओं का घर भर दो ,
न्यूज चैनल चंदे से चलते हैं इस देश में ,
कोई सच बोल रहा हो तो उसे भी ख़रीद लो ,
जिन्दा को रोटी ,शिक्षा ना दे पाओ तो ,
गर मर जाए तो करोड़ों के कफ़न में जाला दो ।
जुर्म करें गर नामी मुल्ले , मौलवी या बाबा ,नेता , अभिनेता उन को छोड़ दो ,
किसान , गरीब , मजदूर को को फाँसी में लटका दो ।।
बुलेट ट्रेन ना आ पायेगा चलेगा ,
इस मर्तबा ट्रेन क्रॉसिंग में फाटक तो लगवा दो ,
©माणिक्य बहुगुणा -
manikyab 210w
इश्क
हमने उन से जो थोड़ा इश्क़ कर लाया तो क्या गुनाह किया ..?
उनसे हम भरे बाजार गले मिल लिए तो क्या गुनाह किया ...?
नहीं रह सकते बिन उनके अब हम एक भी पल ..,
इस आशिक़ी में मिटने चले गए तो क्या गुनाह किया ..?
रंग बदल गए बहुत से दीवानों के , प्यार के,
हम बदल न सके खुद को तो क्या गुनाह किया ?
मणि वो ढूढते रहे तन और धन का प्यार भरे बाज़ार ..
हम ने तो उन्हीं को चाहा दिन रात तो क्या गुनाह किया ..?
©माणिक्य बहुगुणा
