क्यों मुझकों कोसे जाते हो
क्या हाल नहीं दिखता है मेरा
बर्बाद मैं ख़ुद में हूँ ऐसा
सोना तक नहीं बिकता है मेरा
©mrig_trishna_
mrig_trishna_
sahi manzil paane ke liye hume galat raasto se guzarna hi padta hai
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mrig_trishna_ 23w
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mrig_trishna_ 23w
कितने सस्ते में लुटा है.....तू तृष्णा
पढ़ने वालों पर तेरे, दाद तक न थी
©mrig_trishna_
रक़ीबों ने कफ़न को आग तक न दी -
mrig_trishna_ 23w
कभी जो मन अगर भर आये तृष्णा
तुम भी किसी बच्चें में हँसा देना मुझकों
©mrig_trishna_ -
मेरा मरना ही गर ज़िंदगी हो तेरी तो
हम ज़िंदगी भर, यूँ ही मरते जायेंगे
©mrig_trishna_ -
अब कहाँ मुझसे आना हो पायेगा
दिल को इतनी दूर कर दिया मुझसे
©mrig_trishna_ -
mrig_trishna_ 23w
कितनी आग है जवानी में.......मत पूछो
बुढ़ापे तक सुलगेगी ये चिलम बस खींचो
©mrig_trishna_ -
mrig_trishna_ 23w
दिन महीने तरस गये तृष्णा
महीने बरसों में बदल गये...
अब सदियों पतझड़ चलने दो
हम धड़के पत्थर ढल से गये...
©mrig_trishna_ -
mrig_trishna_ 23w
मैं अपने आप को चुभता हूँ
फिर भी लोगों को दुःखता हूँ
लोग दिल तक बुला के कहते है
दस्तक़ तलक क्यों नहीं रुकता हूँ
©mrig_trishna_ -
mrig_trishna_ 23w
हम वीर के चंद कवि
सौंदर्य राह क्या निकल गए
कितनों ने मुँह तक धो लिए
कितनों के मेकअप उतर गए
©mrig_trishna_ -
mrig_trishna_ 23w
जब पाकर भी तलब हो उठे
समझो रब सनम..अब हो उठे
©mrig_trishna_
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mrigtrishna_ 173w
भूल जा "मृगतृष्णा" माज़ी से अब सवाल न कर
अतीत के जालों में फँस के ज़िंदगी जंजाल न कर
©straight_from_a_heart -
mrigtrishna_ 173w
मेरी हक़ीक़त ख़्वाबगाह फ़क़त इतनी थी
पशेमां हो के मैं तकिये भिगोया करता था
©straight_from_a_heart -
mrigtrishna 209w
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किसको फुर्सत है यहां पर कलम को पढ़ने की,
एक हुज्जत सी बस लगी है,गिरके आगे बढ़ने की।
©mrigtrishna -
mrigtrishna 209w
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Ghazalकिताब ए इश्क़ नहीं हूं जो पढ़ सकोगे मुझे,
मैं इश्क़ इश्क़....इश्क़ हूं क्या समझोगे मुझे।
जो एक लम्हा भी.....दामन से मैं गुज़र जाऊं,
तमाम उम्र को तरसोगे,जो न जी सकोगे मुझे।
मेरी तलाश न कर मैं खुद की तलाश हूं..ए दिल,
ये दिल लिहाज़ से धड़का, तो मिल सकोगे मुझे।
मैं घूट घूट पिया.....गालिब फ़राज़ मीर ओ तकी,
तेरी है उम्र ही क्या "मृगतृष्णा" न पी सकोगे मुझे।
©mrigtrishna -
mrigtrishna 209w
Song
जाने जां दिल की सुनो आज ये बतलाना है,
इश्क़ की राह में है कांटे....तो बिछ जाना है।
न समझ ख़्वाब मुझे जान, हक़ीक़त क्या है,
बेचैन बिस्तर पे करवट की जरूरत क्या है।
ये हँसी ख़्वाब भी सच करके अब दिखाना है,
इश्क़ की राह में है कांटे, तो बिछ जाना है।
जाने जां दिल की सुनो आज ये बतलाना है,
इश्क़ की राहं में है कांटे, तो बिछ जाना है।
ये तेरे हुस्न के सदके ही, मेरी महफ़िल है,
लिए अरमान तेरे धड़के ही, ये मेरा दिल है।
तेरे पाने की डगर चलना है चलते जाना है।
इश्क़ की राह में है कांटे तो बिछ जाना है।
जाने जां दिल की सुनो आज ये बतलाना है,
इश्क़ की राह में है कांटे....तो बिछ जाना है।
©mrigtrishna -
mrigtrishna 209w
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Ghazalयाद कहती है तेरी ज़िंदगी बरबाद करूँ,
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म रिसूं देख तुझे याद करूं।
तेरे शहर के ये पत्थर भी वफ़ादार सनम,
हर एक ठोकर नया ज़ख़्म क्यूं न याद करूं।
ख़्वाब आंखों को यहां अश्क़ बेहिसाब मिले,
आ ज़रा बैठ के इन अश्क़ों का मैं हिसाब करूँ।
कहाँ से आये थे तुम, जाने कहाँ मैं खो बैठा
अब तसव्वुर ही नहीं,क्या मैं इंतख़्वाब करूँ।
किया कुसूर ही क्या, मुझे कोई तो बतला दे ज़रा,
"मृगतृष्णा" तेरी तृष्णा,कलम से अब मैं याद करूँ।
©mrigtrishna -
mrigtrishna 196w
ग़ज़ल महबूबा.....नज़्म माशूक़.....शेर गुस्ताख़ होते है,
"मृगतृष्णा"शायरों की महफ़िल में दिल जल के राख़ होते है।।
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mrigtrishna 196w
@the_silent__quill @ekta__ @anamika_ghatak @manishaa
करवटों में नींद आई रात भर,
हाय ये ज़ालिम जुदाई रात भर।नज़्म
करवटों में नींद न आई रात भर,
दिल ने बेचैनी ही पाई रात भर,
एक तो जुदाई में तेरी शोर था,
उस पर तेरी याद आई रात भर।
करवटों में नींद न आई रात भर...
यादें सिरहाने पे बैठी रात भर,
दिल ये बहलाने को बैठी रात भर,
रात भर आँखों में मेरी सवाल था,
तुमने क्यूं बिजली गिराई रात भर।
करवटों में नींद न आई रात भर...
नींदे यूँ रूठी रही फिर रात भर,
ख्वाबों से कहती रही रात भर,
कैसा शिकायतों का उनकी दौर था,
आँखे देख सहती रही फिर रात भर।
करवटों में नींद न आई रात भर,
दिल ने बेचैनी ही पाई रात भर। -
mrigtrishna 196w
फुर्सत मिले जो वक़्त तेरी उलझन भी सुलझा दूँ मैं.?
अभी उलझा हुआ हूँ किसी ज़ुल्फ़ को सुलझाने में!!
©mrigtrishna -
mrigtrishna 196w
Ghazal
तेरी यादों को ये दिल अब सजाता क्यूं है,
भूलने वाले मुझे याद, अब आता क्यूं है।
जानता है, मैं बहुत दूर निकल आया हूँ,
ए गमें दिल अब सदाएं तू लगाता क्यूं है।
ज़िंदगी भर मैं बैठा रहा, तेरी आस लिए,
अब दहलीज़ ए कब्र पर हूं, आता क्यूं है।
बा-मुश्किलों तेरी जफ़ा पे यकीं आया है,
बेवफ़ा रस्में-वफ़ा आज, निभाता क्यूं है।
दिल धड़कता है, तो सीने में दर्द होता है,
इस कदर दूर ये दिल, चला जाता क्यूं है।
भूलने वाले, ये हुनर तो सीखा कर जाता,
खाली हाथ"मृगतृष्णा"कब्र पे आता क्यूं है।
©mrigtrishna
