इतनी तो इज्जत भी नहीं "मृगतृष्णा" जितनी लूट ली है
बख्श दे भिखारियों को अब कटोरे में चवन्नी भी नहीं है
©mrigtrishna
mrigtrishna
आदाब अर्ज़ है
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mrigtrishna 180w
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जीवन अमृत.१६
सुंदरता की धूमिल छवि निर्मल स्वभाव से पूरी हो जाती
हो स्वभाव में गर गंदगी, तो सुंदरता से पूरी न हो पाती
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mrigtrishna 180w
ऐ उम्रदराज़ मुजरे अब तेरे सुर में साज़ नहीं है
महफ़िल के क़ाबिल आज तेरी आवाज़ नही है
थिरकते पाँव को घुँघरूओं पर अब नाज़ नहीं है
सिर्फ तबलची ही बचे है तेरे ग्राहक आज नहीं है
जिस अंदाज में तूमने बेहूदा ग़ज़ल आज कही है
असल पहचाना है हम सबने तेरी तो जात वही है
वो जिनको हिंदी भी लिखनी आती ही नहीं है
कहते है हिंदी को नई पहचान देकर वो गयी है
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mrigtrishna 180w
पूछो न कोई किस तरह वो रूह में समाया था
बिछड़ा तो दूर हो रहा अब मुझसे मेरा साया था
एक ख़्वाब था सतरंगी तितलियां भी भरके आया था
सब गुल चुराके ले गया दिल वीरां ही करने आया था
कितना लगता था अपना सा आज दिखता फ़क़त पराया था
दिल की बगिया उजाड़ने में उसको रहम तलक न आया था
जिनकी की खातिर, कदमों में दिल तलक बिछाया था
मौसम ए खिज़ा था ओढ़ के बहारों का दुपट्टा आया था
यादों को सुखाकर जो बिखरेे पत्ते भी उड़ाकर गया था
इश्क़ का तूफाँ था दिल नगरी आँधी बनकर आया था
सोचते है आज इन बेदिलों से दिल क्यूँ लगाया था
दूर तलक दिल में दिल की वीरानियों का साया था
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mrigtrishna 180w
"मृगतृष्णा" लिख कुछ ऐसा आत्मा झिंझोड़ दे
नपुंसकता तालियां भी बजाना ही छोड़ दे
ग़ैरत का थूक ज़िल्लत की कड़वी स्याही को और दे
कलम का रुख बेज़ा ग़ुरूर ए पर्वत खुद ही छोड़ दे
पर्वत का फाड़ सीना स्याही दरिया में जोश है
रोके न तेरा रस्ता सुहूर ए कलम सरफ़रोश दे
कुकर्म लेखक उस व्यंग्यकार के सीने में कलम घोंप दे
वो झूठी ज़ुबाँ जलील शौहरत का कोठा झाँकना छोड़ दे
सूखी स्याही ओ मंदिरा मंथरा सा बन जाना छोड़ दे
ऐसा न हो कोई चार आने का तेरा, मुँह ही निचोड़ दे
रफ्तार रौ में बहता चल कलम से भटकना अब छोड़ दे
ऐ पाक कलम ओ स्याही "मृगतृष्णा" को रफ्तार और दे
©mrigtrishna -
mrigtrishna 180w
हमारे तंज महँगे हैं तुम्हे जीने दिया हूँ मैं
चाहूं तो जंग छेड़ दूँ तुम्हें जहर पीने दिया हूँ मैं
अभी बस दाँव सुनकर यूं हमें ना आज़माओ तुम
तुम जैसे के होश-ओ-पस्त पहले भी किया हूँ मैं
जिस जंगल में रहकर तुम दंगल ज़ोर हो भरते
वहीं के हर क़दम पर ही हुकूमत भी किया हूँ मैं
हमारे मुरशिदों को यार को मुरीदों को न भड़काओ
अदने से भी मुँह खाओगे कि गुर इतने दिया हूँ मैं
ना कोई ताल बाकी है ना कोई चाल है बाकी
अब मत बाँसुरी रोना ,कि सुर सातों जिया हूँ मैं
"मृगतृष्णा" शहर भर का तंज-ए-तीर तरकश है
मुर्दे तुम रहो मुर्दे, कि मुँह जिन्नों के सिया हूं मैं
©mrigtrishna -
mrigtrishna 180w
तारों का दर्द रात भर महताब पढ गया
रातों का ज़ुल्म जानां जज़्बात उड गया
पड़ा ज़मीं पे लाश मैं सब घेरकर खड़े
सहरी ने आँख खोली सब बिगड गया
रात है नशे में , अजी कुछ ना बोलिये
बोलना अमावस में क्यूँ मुँह सड़ गया
वादे के मारे तारे आफ़ताब बन रहे थे
धोखे से कोई आके रातों में जड़ गया
कितनी ही घुड़कियाँ हैं आफ़ताब को
बेवफा दिन नही , पहले ही भिड़ गया
रातों में दाग होता, चाँद दागी देख लो
लुगाई लगाई आग हर कोई लड़ गया
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mrigtrishna 180w
✍मृगतृष्णा
मेरे इंद्रधनुष के सतरंगी सपने आवाज लगाते है
पंख उड़ानें एक ऊँची परवाज़ में उड़ना चाहते है
मैं भी रोशन उम्मीद का टिमटिमाता हुआ तारा हूँ
चमका जो शिद्दत से आकाश की चुभन पा रहा हूँ
जिन्हें चमकना न कभी आया उनको न भा रहा हूँ
कलम से हूँ सम्पन्न तो चमक लिखता ही जा रहा हूँ
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mrigtrishna 180w
शायरी
जागती निग़ाहों में ख़्वाब मचल जाते होंगे
अक्सर रोटी के संग, हाथ जल जाते होंगे
दुपट्टा भूल, वो मुझे ओढ़ निकल जाते होंगे
बेवज़ह के ख़्याल मेरे रुसवा यूँ कर जाते होंगे
दरीचे चीख कर मुझे, आवाज़ लगाते होंगे
गली में जब मेरा नामोनिशां नही पाते होंगे
बहते बहते से नैन राह बंजर रह जाते होंगे
ख़ुश्क नमक के निशा नमक ही मिटाते होंगे
बैठे बैठे ख़्वाब, बुतखाने में खो जाते होंगे
आड़ी तिरछी तस्वीरें दीवारों पे बनाते होंगे
मुक़द्दस ख़ुदा, ये गुनाह ए अज़ीम कर जाते होंगे
दुआ में बैठ कर बस मेरा नाम अब दोहराते होंगे
हसीं वो लब अब मुस्कुराने को तरस जाते होंगे
ज़हन में रहकर जब हम लबो को तड़पाते होंगे
कैसे कैसे न जाने अब वो मुझको छुपाते होंगे
लबो तक लाके मेरा नाम होंठ चबा जाते होंगे
नींद की करवट, मुझे दीवारों में छुपाते होंगे
ओढ़कर हिज्र तकिया यादों को बनाते होंगे
देर तलक वो नींद का नामोनिशां नहीं पाते होंगे
हसीं आँखों पर वो कितना ज़ुल्म अब ढाते होंगे
©mrigtrishna -
mrigtrishna 180w
#गुस्ताख़ी माफ़
पहली बार जिस्मानी हुस्न को सौंदर्य कला से सजाने की कोशिश की हैहुस्न
नर्म ज़िस्म की तपती रेत पे काँपती रेंगती ये उंगलियां
संगमरमरी मुजसम्मों पर आयत उकेरती ये उंगलियां
बिस्तर की सलवट पे करवट बदलती ये मुस्कियां
गूँजती हुई आवाज़ों में, मुस्कुराहट की ये झड़ियां
बेवक्त बेमौसम बेक़रार बेचैन ये बिजलियां
शर्म हया समेटे हुए हुस्न की ये तंग गलियां
बदन की लहरों पे मन से डोलती ये कश्तिया
हुस्न के सागर में, हसरत भरी, ये डुबकियां
सुकूँ की मानिंद लबो को लुभाती ये सिसकियां
काफ़िर बुत ए लब ख़ुदाई, पढ़ती सी ये दुआ
हया के झरोखों से झाँकती शरारत ये तल्खियां
जीवन अमृत सा झलकाती, हुस्न की ये नदियां
किसी पाक बदन ए रूह इबादत है ये मियां
काफ़िर को भी ख़ुदाई सीखा जाती है मियां
©mrigtrishna
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lovejoshi 177w
©lovejoshi
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गणतंत्र दिवस
आज फिर गणतंत्र दिवस है आया
मन में नवीन उत्साह जगा है लाया
धानी चूनर ओढ़कर सजी है प्रकृति
करने को उन्मुक्त स्वागत ज्यों सुकृति
निकल रही हैं आज झाँकियाँ नूतन
सज्ज हमारी सेना करती अभिनंदन
कौतुकता से अपलक दर्शक रहे निहार
मोहक करतल ध्वनि करती ऊर्जा संचार
वायु यान करते क्षण मात्र में नभ विहार
श्रम,अभ्यास का सजीव,सजग संसार
पल पल बदलता अभिराम दृश्य पटल
आच्छादित नभ हुआ तिरंगा मय अटल
उत्सव के पीछे छिपी,कितनी ही कुर्बानियाँ
न भूले हैं,न भूलेंगे जो अमर हुई जवानियाँ
गणतंत्र हमारा,जान से प्यारा,गौरव हमारा
साक्षी हम बन पाए हैं,ये है सौभाग्य हमारा
©anitasinghanitya -
unfolded_emotions 178w
दिल टूटा है मेरा पर मैं बिखरा नहीं हूँ
लम्हा ही सही तेरी ज़िन्दगी का
पर अभी गुज़रा नहीं हूँ
©unfolded_emotions -
anitasinghanu 178w
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#hind
हाँ,मैं मेहनतकश इंसान हूँ
ज़िन्दगी के जुए को खींचता
बेहिसाब,हर दम लगातार हूँ
बिना रुके,दम साधे चलता हूँ
मेरे चेहरे की इन झुर्रियों में
ज़िदगी का फ़लसफ़ा लिखा है
कोई पढ़ना चाहे पढ़ सकता है
मैं किसी के लिये कुछ भी नहीं
परिवार की खुशियों की चाबी हूँ
घनघोर तिमिर में आशा की किरण हूँ
ढहती छत का मजबूत स्तम्भ हूँ
हाँ,मैं मेहनतकश इंसान हूँ©anitasinghanitya
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pyare_ji 178w
एक अधूरा नगमा लिखा हूं,
मिल जाए वो तो पूरा हो जाए
©pyare_ji -
shiwalika_sss 178w
गज़ल
उठे थे खुशियों की तलाश में कदम कभी,
राह जो दर्द तक ले जाये,तो क्या किया जाए?
यकीन उस पर तो सौ दफ़ा दिलाया उसने,
भरोसा खुदपर ही ना रह जाये,तो क्या किया जाए?
जिन आंखों में बसते थे ख्वाहिशों के समन्दर कभी,
उनमें जब आंसू भी सूख जाएं,तो क्या किया जाए?
तोड़ा होता जो वादा तो कसमों से जोड़ लेते ,
टूटा दिल जो ना जुड़ पाए,तो क्या किया जाए?
मिलती हो तो ढूंढ ला,फिर खुशी से कुबूल लेंगे,
मोहब्बत जो अश्कों में बह जाए,तो क्या किया जाए?
©shiwalika_sss -
jazz_baaatt 178w
ख्यालों ने शब्दों को बदनाम किया
तब कहीं जाकर जज़्बात का जन्म हुआ
©jazbaaatt_rlpanwar -
rashi_rastogi 179w
Words hurt more than a sword...
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तो शब्दों का वार ही काफी है,
भला तलवार की क्या औकात,
इस मैदान-ए-जंग में,
ना भरने वाले घाव देने के लिए,
तो लफ्जों की धार ही काफी है |
© Rashi Rastogi -
dilliwalicreativebabe 179w
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✍️
मेरे कपड़ों का बहाना बना
दोषी मुझे ठहराते हो
ऐसा कर सबका
सपोर्ट भी पा जाते हो
तुम जेल की सजा काटो
या घूमों खुले
मैं काटों पर परखी जाती हूं
मैं पल- पल घटती जाती हूं
मैं हर क्षण छंटती जाती हूं
सामान्य समझे यह जग भी मुझे
बस यही मैं चाहती हूं
'यही है वो' कहने वाली
नज़रों से मैं मर जाती हूं
कभी नॉर्मल होंगी मैं भी
यही बस चाहती हूं।
©preetbhardwaj -
dilliwalicreativebabe 179w
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तुम क्यों करते हो ऐसे
और ऐसे मुझको रुलाते हो
मेरे लिखने के हुनर को
कहानियां बताते हो
मुझे तुम आज के रूप में नहीं
बीते कल के रूप में ही चाहते हो
पर क्या मैं थी वो
जो कुछ कह नहीं पाती थी
आज मैं असली 'प्रीत' हूं
बेफिक्र हंसती हूं
जहां भी मन होता है
झूम जाती हूं
पर इस रूप में तुम्हे मैं
क्यों नहीं भाती हूं
मेरे हंसमुख व्यवहार से
चरित्रहीन बन जाती हूं
सच बताओ मैं तुम्हें
अब क्यों नहीं भाती हूं
तुम्हें प्यार मुझसे है
या मन में बनाई
मेरी एक तस्वीर से
मैं समझ नहीं पाती हूं
सच बताओ अब तुम्हें क्यों नहीं भाती हूं
©preetbhardwaj
