आंखो मे सफर का रास्ता बडा लंबा है
तो क्या हुआ
हमारा होसला कहा सस्ता है
©namrata_123
namrata_123
-
namrata_123 10w
-
namrata_123 14w
कुछ ऊडाने अधुरी
कुछ ख्वाईशे पुरी सी
ऐ जींदगी तेरे रंग मे राहे बडी गहरी सी
ऐ हमारी कहानीया
कुछ पुरी तो कुछ अधुरी सी
दुर तक रास्ते खडे
युंही धुंधले बडे
कोहरा हे चारो ओर
कोशिश अपनी सच्ची सी
ऐ जींदगी तेरे रंग मे राहे बडी गहरी सी
ऐ हमारी कहानीया
कुछ पुरी तो कुछ अधुरी सी
ईन कदमो की आहट पे
हौसलो की मशाले जली सी
ऐ जींदगी तेरे रंग मे राहे बडी गहरी सी
ऐ हमारी कहानीया
कुछ पुरी तो कुछ अधुरी सी
©namrata_123 -
namrata_123 15w
किताबो के पन्नो पे मन की साही भर दी
कुछ लिखावट अपनी सी तो कुछ अपनो की कर दी
सवारे हुऐ लब्जो की खुबसुरती ही ऐसी थी
किसी के दिल तक तो कीसी के होठ पर मुस्कान भर दी.
©namrata_123 -
namrata_123 30w
भरी साही की कलम जरा सा रुक गई,
लब्जो का खालीपन वह भी तो जानती है
©namrata_123 -
namrata_123 45w
આભ તારા તો નખરા હજાર
હું પાણી ને કહી દવ છું,
રાહ જોવે
થોડી વાર
જરા વાદળી ને સમજાવ
આમ ન ચાલે યાર
ચાતકે પણ જોઈ
ખાસીવાર
મેઘ ની રાહ માં તો
ઝાડવા પણ બોલાવે
વારંવાર
અરે હું તો આભ
વાદળી એ તૈયાર
જરીક વીજળી મોકલી
ને પાણી જાય બારોબાર
તળાવ ને નદીઓ છલકાય
હાલ ,
વૃક્ષનિકંદન , ને ધુમાડા ક્યાં
ઓછા
સુવિધા ઓ ના સાદ માં
મેઘ ની માંગ કયા તે માન માં
પ્લાસ્ટીક ના પાન માં
ધરતી ના હાલ
કેવા તે , છે ભાન માં
આભ ચેતવે
મારા સુધી પહોચવાની આન માં
ભુલી ન જા ધરતી ને
યાદ રાખ જરા સાન માં
©namrata_123 -
namrata_123 48w
आसमानो मे परींदे पसंद है
ऊन पतंग को डोर खींच लेने का डर है
आजादी के किस्से क्या कहै
ऊडते परींदो को भी पता है
शिकार का वक्त थोडा ही दुर है
©namrata_123 -
namrata_123 49w
पानी की क्या कमी थी
सामने दरीया था
हम तो मीठे पानी की खोज मे थे
जो ऊन रास्तो की नदीओ मे बहता था
©namrata_123 -
खोऐ हूऐ मुसाफिर ने आज खुद को ढुंढा है ,
देखो तो जरा ख्वाईशो ने सामने आईना रखा है
©namrata_123 -
namrata_123 65w
भारत
हर एक के अलग से
दिल मे एक तिरंगा
लहराता हुं ,
अपना भारत दिखाता हुं
नाके वाली दुकान पे
सारी दुनीया के हाल सुनाता हुं,
अपना भारत दिखाता हुं
हर ख्वाईश के सच होने का
पता बताता हूं
आशीँवाद का आंगन जताता हुं,
अपना भारत दिखाता हुं
रुकी हुई सडको पे
भागती जींदगी जताता हुं,
अपना भारत दिखाता हुं
©namrata_123 -
namrata_123 66w
ऊस शाम ने अपना अंदाज युँ बया किया ,
जेसे ढलते से वक्त ने सुबह को पैगाम दिया
©namrata_123
-
kermech21 5w
ग़ज़ल
झूठ के भी यकीनन बहुत फायदे होते हैं
बज़्म में हर एक मुख्खौटे अलायदे होते हैं
कोई दम कहीं भी आराम नहीं मिलता है याँ
इश्क़ में मंजिलें नहीं हरदम मुजाहिदे होते हैं
बात सिर्फ़ उसके छोड़कर जाने की नहीं है
गोया वक़्त-ए-रुख़्सत के भी क़ाइदे होते है
सोचता हूं कि कोई ग़ैर क्यों भा गया उसको
क्या जिस्मों के भी पसंदीदा ज़ायके होते हैं
वजूद अपना फ़ना करने की ठान लो पहले
तब कहीं मुंतजिर, इंतज़ार के वा'इदें होते हैं
©kermech21 -
kermech21 6w
ग़ज़ल
मिलते हैं और बिछड़ जाते हैं लोग
फिर किस्सों में याद आते हैं लोग
इश्क़ की बात कर रहे थे तुम मियां
इतनी अफवाहें कहाँ से लाते हैं लोग
किसी को दफनाकर रंज ओ ग़म में
चैन ओ सूकून किस तरह पाते हैं लोग
बात बस इतनी ही होती है इश्क़ में
हर अहद मजनू पर संग उठाते हैं लोग
कोई शख्स डूब गया वाँ इन्तिज़ार में
याँ साहिल को मुंतज़िर बताते हैं लोग
©kermech21 -
.
Anyone can make you laugh..
Some can make you cry..
But those are rare
in front of whom
you can cry your heart out
©shruti_bhatt -
gunjan8693 13w
એક વહેમ
પ્રેમ એ એક વહેમ છે,
જો બંનેનો વહેમ મળતો આવે,
તો તેમને એકબીજા માટે પ્રેમ છે,
'એવું માની લેતા હોય છે.'
Chauhan Gunjan
(खामोश शायर)
©gunjan8693 -
prakhar_kushwaha_dear 14w
Click on
#prematirek
आप सभी को Dear Kushwaha के नमस्कार!
लीजिए पेश-ए-ख़िदमत है, "प्रेमातिरेक भाग-७"
सभी भाग पढ़ने के इच्छुक हैशटैग प्रेमातिरेक #prematirek पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं... या cmnt कर बता दें, मैं टैग कर दूंगा.
********************************************************
********************************************************
"पढ़ने से पहले मैं बताना चाहूँगा कि रचना पढ़ते वक्त शीर्षक "प्रेमातिरेक" को ध्यान में रखें। शीर्षक कवि की अपनी अमूर्त प्रेयसी के प्रति अगाध प्रेम को प्रदर्शित करता है जिसके चलते कवि खुद को तुच्छ और अपनी सखी को उच्च दर्ज़ा प्रदान कर रहा है ना कि समस्त पुरुष जाति को महिला जाति से निम्न दिखाने का प्रयास कर रहा है।
अगर प्रेयसी कवि के भावों से अवगत होगी तो तुच्छ और उच्च का कोई महत्व नहीं रह जाता,, रह जाता है तो बस 'प्रेम'..."
बहुत-बहुत धन्यवाद!"प्रेमातिरेक"
भाग - ७
मैं आदि-अंत सा दूर-दूर,
तुम समरेखा मूल-मिलाप की,
मैं ओर-छोर की जिल्द हुआ,
तुम पन्ना पूर्ण किताब की।
मैं हार-जीत में उलझा हूँ,
तुम कर्त्ता नित्य क्रिया की हो,
मैं सबके मन को चुभता हूँ,
तुम सबकी प्रेम प्रिया सी हो।
मैं चिड़ियाघर की संज्ञा हूँ,
तुम विश्लेषण हो मधुवन का,
मैं इत-उत बिखरा गंध हुआ,
तुम इत्र सुगंधित तन-मन का।
मैं दो तरफ़ा इक रस्ता हूँ,
तुम पगडंडी बीच गुजरती हो,
मैं दाएँ-बाएँ में सिमट गया,
तुम मार्ग समापन करती हो।
मैं काली मिट्टी खेतों का,
तुम शिखर विराजी मुलतानी,
मैं नित नजरों में कुचला हूँ,
तुम साख़ शिरोमणि सुल्तानी।
मैं एक की घात हजार तो क्या,
तुम सौ का वर्ग बहुत ठहरी,
मैं बात गणित की कमतर हूँ,
तुम शून्य की बात बहुत गहरी।
मैं एक रंग का भँवरा हूँ,
तुम रंग-बिरंगी तितली हो,
मैं काला बादल धुंध हुआ,
तुम एक चमकती बिजली हो।
मैं जिन जन का हूँ कृपापात्र,
तुम उन सब जन की नायक हो,
मैं जिस विधना का मारा हूँ,
तुम उसकी ख़ास विधायक हो।
मैं इक शीशे की बोतल हूँ,
तुम उसमें गंगाजल जैसी,
मैं तुमको भर के पावन हूँ,
तुम खुद भी कल की कल जैसी।
मैं जितना तुम पर मरता हूँ,
तुम उससे ज़्यादा ख़ास सखी,
मैं हृदय चीर के दिखला दूँ,
तुम मानो गर विश्वास सखी।
प्रखर कुशवाहा 'Dear' -
gunjan8693 14w
તને વહેમ છે કે બધું તારું છે,
અને જો તારું છે, તો પછી નનામી તું એકલું કેમ છે?
Chauhan Gunjan
©gunjan8693 -
psprem 14w
समझें
"जिन्दगी की सच्चाई"
दुनियां में अपना कोई नहीं
बेटा : बहू की अमानत है।
बेटी: दामाद की अमानत है।
शरीर: शमशान की अमानत है।
जिन्दगी: मौत की अमानत है। -
psprem 14w
लम्हा लम्हा गुजर रहा है जिन्दगी का।
कतरा कतरा बिखर रहा है जिन्दगी का।
हम नादान अनजान हैं,मौत लगी है पीछे,
फिर भी लालच में,फिक्र नहीं जिन्दगी का।
©psprem -
rmgajera 14w
અવલંબન શીદ ને?
અન્ય ને ખુશ કરવાં ખાતર લંગડી તો લીધી,
પણ એ લંગડી લેતાં ઠેશ વાગે તો દોશ કોનો?
જો ખૂદ-ખુદાથી ખુશી નો નાતો રાખે તો ઠીક,
કેમકે ખુદ જ ખુદને છેતરે તો વળી રોષ શાનો?
‘હાથના કર્યા હૈંયે વાગ્યા’ એ કહેવતથી વાકેફ,
કિંતુ પારખાંના સમયે ખોઈ બેઠો હોશ-ભાન?
ખેર, અસહ્ય ભાસે અમુક વિરહ એની શરુઆતે,
સમય સંગાથે જ પુરાય સ્વ-સંબંધે જોશ-પ્રાણ!
©rmgajera -
gunjan8693 15w
❤️
मेंने तो उसे गुमाया है, जो कभी मेरा था ही नहीं पर
उसने तो वो गुमाया है, जो सिर्फ उसीका है।
©gunjan8693
