मुसाफिर बराबर देखता हूँ मैं
हर तरफ सफर देखता हूँ मैं।
मंजिलों के पर क्यूँ होते है
उफ क्या सबर देखता हूँ मैं।
ख़्वाब बुरे भी खत्म होते हैं
ये दिनभर क्या देखता हूँ मैं।
हालात ना होंगे बयां मुझसे
सब मुस्कराकर देखता हूँ मैं।
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खुश है खुश नहीं भी है तो क्या है
कुछ है कुछ नहीं भी है तो क्या है।
आरज़ू है ना खोऊं तुझे मैं कभी
तू है और नहीं भी है तो क्या है।
बातें और हो सकती थी कहने को
चुप है और नहीं भी है तो क्या है।
ना मैं वो ना तू वो ना वक़्त वो अब
पर्दा है और नहीं भी है तो क्या है।
अब कोई माजरा तो नहीं दरमियाँ
इश्क़ है और नहीं भी है तो क्या है।
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तुम कानों को अपने बंद करके चीखते हो
तुम ही खामोशी में मेरे शोर बैठा देखोगे।
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अब और कुछ नहीं चाहिए चखने को मुझे
वो पानी सा जरूरी था उसे लाके दो मुझे।
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कोई राहत है उस रस्ते में
वो रस्ता कहीं जाता ही नहीं।
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इक गज के वादे करना
फिर गिराना कोई गाज
और कहना 'हरगिज नहीं'...
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"दिल कितना गहरा है देखो
वो समंदर पी रहा है देखो"
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संगम तेरे मेरे दिल का हसीं यूँ है
तू मुझमें बहती जाती है
मैं तुझमें डूब जाता हूँ
मैं तुझमें डूब जाता हूँ
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इस सफर का मेरे,सबसे सुंदर फुल हो तुम
तेरी खुशबू भर से आज भी मैं टूट जाता हूँ।
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उस पन्ने की पंक्तियों के बीच
मुस्काती बैठी,सखियों के बीच।
इक धुन सी है और धूमिल भी
वो काली बिंदी अंखियों के बीच।
क्यूँ नजर मेरी आ गई नजर में
ठहरा मैं तन्हा कमियों के बीच।
दो बातें तुम्हें क्या कहनी थी
कहा कहो इन्हीं गलियों के बीच।
मुद्दतों बाद मिले हो मुझे तुम
उफ ये सीढ़ियां सदियों के बीच।
अब कह भी दूँ और जाने भी
है इश्क़ खिलता दूरियों के बीच।
उस पन्ने की पंक्तियों के बीच
मुस्काती बैठी,सखियों के बीच।
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