रेखाएं 'तकदीर' और तकदीर 'जिन्दगी' लिखती है;
ऐ खुदा! तेरी 'रहमत' और मेरा 'सब्र' आखिर कब फलती है।।
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कर्म
कर्मण्यता ही करता लोगों को निरंतर परिभाषित,
छिपे समय के सिलवटों में छवि;को स्वत: करता उद्घाटित ।।
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डर तेरी बेरुखी से नहीं, अनुराग से लगता है;
अब तो बिन मतलब दूसरा पहचान का भी कम लगता है।
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मां
तू तो खुली किताब है
हर मुश्किल का जवाब है,
अनुभव तेरी विशाल है।
पगडंडियों पर दौड़ती,
स्थिर हर बहाव में।
नभ चूमती तेरे हौसले,
पहाड़ 'तू'शत्रु समक्ष।
हर बला को अबला करे
अपने प्रचंड वेग से।
वाकपटुता कुशल तेरी,
छिपे मौन में सवाल है।
दुष्टों के पांव कांपते
तेरे एक अट्टहास से।
मन मोहती स्वजनों के
तेरी वाणी की माधुर्यता।
भूखा तृप्त लौटता,
खुले तेरे भंडार से।
दीन-दुखियों व आस्रितों को
नित भावों से सिंचती।
तेरी सामिप्यता,अनुगम्यता
बचाता हर कुचक्र से।
सबके खुशियों का भान है,
खुद का सिमटा अरमान है।
कर्तव्यनिष्ठा से भरी कूट-कूट
निश्छल,निर्मल गंगधार है।
सुंदर, शीतल लोचनों में
दिखता संपूर्ण ब्रह्मांड है।
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जिन्दगी
हरपल जिन्दगी की अपनी कहानी है;
कभी दु:खतर तो कभी सुहानी है।
करतब-कलाबाजियों से भरी ये
नित गिरकर उठना सिखाती है।
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सूर्य
मेरी किस्मत का सूर्य जिन्दगी के झंझावातों में जा छिपा है
इसे मेरा अस्ताचल ना समझना ।।
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लक्ष्मण रेखा
कुछ रिश्तों में रेखा खिंचना लाजमी होता ।
सीता मैया पे भी प्रलय न आया होता;
जो खींची रेखा पार न किया होता ।
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जिन्दगी तू मेरी परिक्षाएं क्या ले रहा;
अब तो अपनी हसरतों के वज़ूद न रहा।।
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डोर
'डोर'तूने ढीला छोड़ा है या सख्त
सम्हाल लो चीजें रहते वक्त।
लाचारी, बेबसी सरीखे शब्दों से गुरेज मुझे
झुकने न देना सिर मेरा
ऐसे शब्दावलियों के आगे।
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'कर्मों का भुगतान' है यहां सबको करना।
सजा मिले या माफी
सह लेंगे;
साथ 'तेरा'नाम है काफी।
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