प्यार पाना
स्वार्थ है
पर
उसके बिना
जीना
अब शायद
व्यर्थ है !
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pagal_sadhvyai 88w
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pagal_sadhvyai 105w
डूबना आसान है
पर अब उबार नहीं पाऊँगी
प्रेम की राह को अब
आसान ना मैं कर पाऊँगी
डूबना आसान है....
जो तुम समझ ना सकें
मेरे सात्विक से अनुराग को
तो अब मैं तुमको वो प्रेम
कभी बिन बोलें समझा ना पाऊँगी
डूबना आसान है....
जिसको इतने बरस सीने में संजोया
उस ख़्वाब के टुकड़े कर दूंगी
अपने सपनों के महल को अब
इक झटके में ही धराशायी कर दूंगी
डूबना आसान है....
मेरी कविताएँ अब मुझपर रोने लगी है
रात को छोड़ो अब भोर भी सीलने लगी है
इक बस तुमको क्यूँ आभास नहीं यहाँ
चारों ओर बस मेरी चर्चा होने लगी है
डूबना सच में बहुत आसान है
हाँ ! सच में पर अब उबार नहीं पाऊँगी ।
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pagal_sadhvyai 105w
♥️
ना जाने कब से
मन में अंकुरित हुआ
नव पल्लव प्रेम का
धीरे धीरे समृद्ध हुआ
पहले पहल नज़रें मिली
या मन में तूफान उठा
इक हसीं ख़्वाब को
सीने ने मानों जन्म दिया
मुलाकातों का दौर हुआ
लगभग दोनों ओर बराबर
वो मेरे ख़्वाब में मैं उसके
रात दिन दस्तक देने लगे
नव पल्लवित वृक्षों की
शाखाओं पर मानों
सांझ ने घरौंदा बना
मूरत को पूजनीय स्थान दिया
धीरे धीरे ही सही पर प्रेम में
दोनों ही दिन रात ढले
मानों चन्दा पूनम की रात को
अपने आराध्य को तरसे
इसी मधुर से प्रेम के दर्द ने सींच
इस मोड़ पर खड़ा किया
कि आगे जाऊँ तो दिल टूटे
पीछे आऊँ तो वो रूठे
तुमने भी बस इशारा ही दिया
मन प्यासे को सहारा ना दिया
जाओ जो अधिकार नहीं दिया
उसको अब कभी ना माँगूंगी
बीच मोड़ पर छोड़ जा रहें तन्हा
तो अब प्रेम को नहीं रोकूँगी
जा रहीं हूँ अब ख़्वाबों को तोड़
मैं अब तुझसे बहुत ही दूर
माँगती विदाई हाथ जोड़ जाती हूँ
बस होंठों पर मुस्कान सजाए रखना
मेरे उस असाधारण से प्रेम को तुम
जन्मों जन्म तक सीने से लगाए रखना ।
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❤
प्रेमिकाओं का प्रेम
कभी मरता नहीं होगा
बल्कि बस जाता होगा
उनकी हर इक साँसों की
अनंत गहराइयों में
प्रेमी की महक बनकर !
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pagal_sadhvyai 106w
जो तुम आ जाते एक बार!
कितना बदल जाता यह मृत संसार
अपलक तकते रहते तुमको यह द्वार
जिनको कभी था तुमने मुँह फेर त्यागा
करते आज वह तुम्हारा आदर से इंतेज़ार
जो तुम आ जाते एक बार.......
कितना विरह नहीं है हृदय ने झेला
अब तो दीवारो का मन भी बोला
दिखने लगे है इन आँसुओं के दाग
तुम्हारे चरणों पर दूँ सब कुछ मैं वार
जो तुम आ जाते एक बार........
आँखों के मोती भी हर्षित हो जाते
देख तुमको तुम पर समर्पित हो पाते
अधर जो जाने कब से हुए थे उदास
मिल उठता उनको भी हसीं ख़्वाब
जो तुम आ जाते एक बार.......
जो छाए हैं आज बन काले बदरा
बरस उठते उमंग में सावन अंगना
जल उठते फिर बुझे हुए चिराग
देती साँसे पग- पग तुम्हारा साथ
जो तुम आ जाते एक बार.......
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pagal_sadhvyai 107w
सकल धरा जब झूम उठती पाने को बादल का प्रेम रस
गगन भी चल पड़ता हर्षित हो उल्लास में पवन वेग के संग
प्रेम मिलन को आतुर देखो कैसे मदमस्त धरती और गगन
धरती बनी दुल्हन चाहती नभ भीगोदे आज उसका भी मन
पूरी प्रकृति करें मनुहार हो जाए जो एक बार प्रेम बौछार
नव पल्लव प्रफुल्लित हो करें अपनी माँ का आदर सत्कार
एक-एक बूँद जब पड़ती धरती का तन मन धड़क उठता
मानों प्रेमिका को मिल गया हो प्रेमी की छुवन का अहसास
नभ भी बेकल है बुझाने को धरती की असीम प्रेम प्यास
दूर नदियों से जाकर विनती कर मांगता कुछ यूं वो जल
है धरती बड़ी विकल तुम करो मदद तो होए समस्या का हल
नदियाँ प्रेम रस को जाने है तभी नभ के मन की व्यथा जाने है
झूम-झूम, घुमड़-घुमड़ कर छा गए काले बदरा आसमान में
कर दिया अंधकार घनघोर प्रेम मिलन की कामुक सी आस में
बरस पड़ी सहसा एक बूँद धरती के हृदय पर मानों मूर्छा टूटी
पूर्ण हुआ प्रेम निवेदन वह अंबर की ओर लजाई नज़रों से देखी।
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pagal_sadhvyai 107w
इश्क रूहानी तो कुछ किताबी सा
महक महक महकता माहताबी सा
पवन आती सज धज बारात लिए सी
कराने विदाई दुल्हन की सौगात लिए
प्रेम में उसके मैं राधा बन जाऊँगी
ओढ़ धानी चुनरिया प्रेम में रंग जाऊँ
राधा हूँ अपने कृष्णा संग रास रचाऊँ
बाँसुरी की धुन पर हवा सी डोलती जाऊँ
वियोग में उसके मीरा भी बन जाऊँगी
सकल संसार से विरक्त फिर हो जाऊँगी
मोह माया प्रेम बिछोह राग अनुराग
सबको छोड़ बस तेरे ही गुण गाऊँगी
कभी जो बन गयी केवल आज की नारी
तो अपमान तनिक बर्दाश्त नहीं करूँगी
सम्मान की ख़ातिर दुर्गा-काली भी बनूंगी
प्रेम की ख़ातिर किसी बंधन में नहीं बधुँगी।
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pagal_sadhvyai 107w
पल पल जहाँ चुभता एक खंजर है
अजीब ही सही जिंदगी एक मंज़र है
कभी रुलाती तो कभी खूब हँसाती
कभी कभार लगे मरुस्थल सी बंजर है
कभी सैकड़ों सपनों को ला मुट्ठी में भरती
कभी लगे मानों सैकड़ों साल पुरानी जर्जर है।
©pagal_sadhvyai -
इश्क में ना देना बद्दुआ
अर्श से फर्श पर ला पटकेगी। -
इश्क से ज़्यादा इश्क तुमसे
बोलो ख़्वाब पूरे करोगे अबसे
