चाँद रोज़ उतरता है झील में
मौत की ख़ातिर
लहरें पूरी शब मौत का झूला झुलाती हैं
उसे अपनी गोद में रख कर
और सुबह तक फेंक देती है बाहर
मर जाता है चाँद का एक हिस्सा
मैं भी रोज़ जाती हूँ झील में
तीन सीढ़ी नीचे उतर के बैठ जाती हूँ
बहा देती हूँ आँखों से कुछ यादें
आँखों से गिर कर वो डूब जाती हैं
मौत हो जाती है उनकी
सुबह लौट आती हूँ
रोज़ मौतें होती हैं झील में
कोई नहीं देखता
किसी को लाशें नहीं मिलती
मिलती है तो बस मुर्दे के शरीर की ठंडक
झील के पानी में !
©ritusinghrajput