प्रथम भेट
जब आएँ गिरधर विदर्भ तब,
मच गया हाहाकार,
कर हरण रुक्मणी का पल में,
ले गए नंदकुमार।
प्रथम मिलन प्रथमं दृष्टि,
प्रथम प्रेम मन भाव,
जिनकी इच्छा हृदय बसी,
उन गिरधर की सुख छाँव।
समझ ना आएँ उस पल कुछ भी;
मन बुद्धि निष्काम,
साहस नयन जुटा ना पाएँ,
कि सम्मुख है घनश्याम।
तेज श्वास रथ अश्व की भांति,
हृदय प्रेम संचार,
वो ही मुझको आए लेने,
जिनसे मुझको प्यार।
हाथ थामकर चलें कन्हैया,
कर संकट निष्तार,
पटरानी का स्थान भेटकर,
मान किया विस्तार।
@लवनीत
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