हम इतने शर्मीले होते हैं की कभी धूप वाला चश्मा लगा के नहीं जाते क्योंकि
मन में शक रहता है की लोग कार्टून समझेंगे।
हम बाल कटाने सैलून नहीं नाइ की दूकान पर जाते हैं और कभी ये नहीं बताते
की बाल कैसे काटना है।
उसके 'कैसा रहेगा' पर हमारा जवाब बस इतना होता है की 'छोटा कर दो।'
हम लोगों की बर्थडे हमेशा रिमाइंडर पर लगा के रखते हैं पर हमेशा विश करने वाले दिन जल्दी सो जाते हैं।
शादी-बियाह में हम लोगों के ज़िद्द करने पर भी कभी 'सात समुन्दर पार' पर नाच नहीं पाते बस कोने में खड़े होक गुलाबजामुन का मज़ा लेते हैं।
डी.पी के नाम पर हमारे कोई रैंडम इंटरनेट से डाउनलोड हुई फोटो होती है।
हम ज़माने से सिंगल रहते हैं पर ज्ञान इतना होता है की शादी-शुदा लोगों के झगडे भी सुलझा देते हैं।
हम हमारे सारे दोस्तों के बेस्ट फ्रेंड होते हैं पर हमारा बेस्ट फ्रेंड कोई नहीं हो पाता।
हमारी सलाह को घर में कोई सीरियस नहीं लेता है।
टीचर कभी हमारा नाम नहीं याद रखते बल्कि हमारे दोस्त से हमारे बारे में पूछते हैं की वो जो लड़का तुम्हारे साथ रहता था कहाँ गया।
सड़क पर चलते चलते हम अक्सर बॉलिंग वाला एक्शन करने लगते हैं
किसी से मिलना होता है तो हम हमेशा 10 मिनट पहले पहुँचते हैं पर सामने वाला हमेशा सॉरी कहके आधा घंटा लेट आता है।
हमको न ढंग से अंग्रेजी आती है न ही हिंदी। बस बीच में कहीं झूल रहे होते हैं।
रिश्तेदार हमेशा हमको अपने बच्चों की कहानी सुना के चले जाया करते हैं।
हम कभी कोई नशा नहीं करते पर दोपहर का खाना खा के 4 घंटे सोते हैं।
लड़ाई में हम हमेशा सुनाने के बजाय शांत रहके गुस्सा दिखाते हैं
और जब कोई बेइज़त्ती करता है तो लाइव लड़ने के जगह हम उसको अपने मन में सुना के हराते हैं।
हमसे ज़रूरी वादे अक्सर टूट जाते हैं और पहले ब्रेकअप के बाद फुट फुट कर रोते हैं।
भिखारी को हम कभी सिक्का नहीं 10 की नोट देते हैं।
हमारी प्रेमिका हमसे हमेशा शादी के बाद मिलती है।
इतना कुछ हो रहा होता है फिर हम खुद को एक कहानी में लिखते हैं
और थोड़ा-सा फिर से खर्च हो जाते हैं।
©आदित्य
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aaditya 52w
लिखने में हमेशा लेखक का एक हिस्सा खर्च हो जाता है।
और जब कहानी ख़तम होती है तो आपको खुद नहीं पता होता है
आप उस कहानी के मुख्य किरदार के तौर पर उभर के आए हैं
साइड रोल या फिर हमेशा की तरह विलेन।
पर ध्यान से देखा जाए तो मैं हमेशा वो किरदार रहा हूँ जिस पर ज़्यादा कोई ध्यान नहीं देता।
जो चुपचाप अपना काम कर के साइड से निकल जाता है।
हीरो और विलेन तो भूल जाओ हमें खुद डायरेक्टर नहीं ध्यान दे रहा होता है।
हमारा दिल कभी हीरोइन पर नहीं बल्कि उसकी बेस्ट फ्रेंड पर आता है
और वो भी हमेशा की तरह बिना हाँ बोले किसी और के साथ निकल जाती है।
हम वो हैं जिनकी बस किसी इम्पोर्टेन्ट एग्जाम से पहले या तो ख़राब हो जाती है
या भीड़ इतनी होती है की धक्का देके भी चढ़ नहीं पाते।
हमारी ट्रेन स्टेशन से ज़्यादा समय हमेशा आउटर पर बिताती है।
जब हमें रिजर्वेशन मिलता है तो कभी भी बगल वाली सीट पर कोई सुन्दर लड़की आके नहीं बैठती
बल्कि एक दादा होते हैं जो हमारी विंडो सीट बेटा-बेटा कह के हथिया लेते हैं
और हमको अप्पर बर्थ पर टांग दिया जाता है।
हम एग्जाम में चिट लेके जाते हैं तो उस दिन खुद प्रिंसिपल राउंड पर निकला होता है।
हमारी शकल देख कर टीचर हमें बिना कुछ किये ही बाहर भेज देता है।
हम पढ़ाई में सबसे ज़्यादा मेहनत करते हैं पर पास हमेशा बॉर्डर पर होते हैं।
फिल्म और सीरीज में हम कभी मेन हीरो से कनेक्ट नहीं करते
बल्कि उसको जीते हैं जो हमेशा ब्रोकेन बट ब्यूटीफुल टाइप होता है।
हम भगवान में इतना मानते हैं की अंत में नास्तिक हो जाते हैं।
हम कोई काम बस उतना कर पाते हैं जितना जीने भर के लिए काफी होता है।
हमको घर वाले सबसे ज़्यादा प्यार से तभी बुलाते हैं जब कोई काम करना होता है।
गर्मी में कूलर में पानी भरने से लेके दिवाली में घर के जाले मुंह पर गिराते हुए हम ही साफ़ करते हैं।
बारिश होती है तो छत से भाग के कपडे लाने का काम हमारे सर ही आता है।