दिल की बात जो ज़ुबाँ तक न पहुँची
आंखों ने वो सारा मंज़र बयाँ कर दिया
-pradyumn
गड़े थे जो गहराई में उसे हकीकत कर गए
ये कमबख्त निगाह पूरा माज़रा बयाँ कर गए
-muskan
जुबाँ की नहीं, आंखों की भाषा कहते हैं,
ये दिल के राज हैं जो मेरे ज़र्रे ज़र्रे में बसते हैं
उन अफसानों को इंतेजार तो बस चमकने का है
अपने हिस्से में थोड़ी ज़मीन और थोड़ा आफ़ताब भी रखते हैं।
-saurav
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jhallii_muskan 270w
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