बातें करनी हैं तुमसे। बहुत सारी।
या यूँ कहूं, अनगिनत।
तुम्हारे ना रहने पर मामूली-सी चीज़ें भी
अब दुर्लभ हो गयी हैं।
जैसे मेरे होते हुए तुम्हारा कोई भारी सामान उठाना।
जैसे ही दुपट्टे को पीठ के पीछे से घुमा के गाँठ लगाती थी
मुझे पता चल जाता था
की कोई पहाड़ चढ़ने जैसा काम करने जा रही हो।
और जब तक मैं उठके आता या बैठे-बैठे ही आवाज़ लगाता
तब तक 'हर चीज़ में बड़-बड़ करने की आदत है' कहने लगती,
और फिर सारा काम मेरे सर।
आज भी ये सब किसी पंक्ति में आंसू के साथ छलक आता है।
जानती हो यादें पायलट पेन की तरह होती हैं।
कभी ख़राब नहीं होती। बस उनका एक-सिरा छूट जाता है।
जैसे की पायलट पेन का ढक्कन।
और एक सिरा खोने बाद ना पेन किसी काम की रहती हैं।
ना यादें।
खैर तुम्हारी यादें तो मैं खोने से रहा।
मुझे कभी सूर्योदय पसंद नहीं था।
जॉगिंग-वॉगिंग तो खैर भूल ही जाओ।
फिर भी हर सुबह तुमको छत पर देखने को आना
और ठीक तुम्हारे योगा करने बाद नीचे जाना।
जैसे मेरा सूर्योदय तुम्हारे सूर्य-नमस्कार से जुड़ा हो।
पर तुम्हारे बिना यह बातें वैसी हैं जैसे बिना धागे की मोतियाँ।
अलग-थलग। बिखरी हुई।
और अब चाह के भी इन्हें समेटना न-मुमकिन हो गया है।
पर तुम अब इतने देर में आए हो
की लगता है कभी इन्तिज़ार ही ना था।
वो सारी अनगिनत बातें जो करनी थी कहीं दफ़न हो गयी हैं।
जैसे दूल्हा ज़्यादा दिन ससुराल में रुक जाए तो उसकी इज़्ज़त कम हो जाती
ठीक वैसे तुम्हारी यादें अत्याधिक समय रह गयीं हैं मेरे पास।
और अब लगने लगा है की न होना ही ठीक था।
मेरे ख्यालों में तुम्हारे हाथ पर जो मेहंदी लगी थी
उसका रंग भी अब उतर गया है।
दूरियों के दायरे कितने सीमित होते हैं ना,
बस आदत लगने की देर है।
और अब जब मुझे इस अकेलेपन और दूरियों की आदत हो गयी है
तो हर कोई मेरा होना चाहता है।
जाने क्यों?
हर घडी, हर पल किसी से नज़दीकी
मुझको मुझ ही मैं क़ैद करती है।
अब कैसे बताऊँ मैं, यह लोग जो मुझसे मिलना चाहते हैं की
मैं बस तुमको मिला था
फिर किसी को नहीं मिल पाया।
©आदित्य
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aaditya 91w
मेरी सारी कहानियां तुम्हारे होने का दस्तावेज हैं,
मेरे सारे गीत तुमसे मिलने की सम्भावना..
I seriously hate velo for posting my face once without even asking me ;_;
Hahaha..That is very creative dp according to me.
Creativity credit goes to pinterest and baaki sab mera hai. Thanks on the behalf of Pinterest XD