ख्याल हैं....
ये ख्याल हर रोज आता हैं,
ये सवाल हर रोज आता हैं,
में जानता हूं जवाब उनके, पर,
ख्याल हैं, अब आता हैं, तो आता हैं।
क्या कुछ अलग हो सकता था,
क्या वो कदम अलग रास्तों पर बढ़ाए जा सकते थे,
क्या इनका परिणाम अलग होता,
मैं जानता हूं जवाब इसका, पर,
ख्याल हैं, अब आता हैं, तो आता हैं।
कौन आगे निकला, कौन पीछे रह गया,
क्या फर्क पड़ता हैं इन सब बातों का,
फर्क होता अगर साथ पीछे रह गए होते,
पर क्या इतना पीछे रहकर, काफी दूर जाया जा सकता था,
मैं जानता हूं जवाब इसका, पर,
ख्याल हैं, अब आता हैं, तो आता हैं।
सबकुछ एक ही तारीख पर होना महज़ इत्तेफ़ाक तो नहीं,
ये समझौते का सौदा क्यों जान पड़ता हैं,
क्या अब भी वो न होना एक गलती हैं,
क्या कुछ बदले में दे देना, मन को बहलाने का एक नया खिलौना हैं,
आपको कबसे जरूरत पड़ गई ऐसे प्रपंच की,
मेरा काम इतना भी मुश्किल न था,
पर ये सब आखिर क्यों ऐसा हुआ,
मैं जानता हूं, जवाब इसका, पर,
ख्याल हैं, अब आता हैं, तो आता हैं।
कुछ ज्यादा थोड़ी न मांगा था,
कभी -कभी ही तो मन को कुछ अच्छा लगने लगता हैं,
हर एक इच्छा पूरी होने की झूठी दिलासा तो तसव्वुर में भी नहीं देता खुद को,
पर क्या ये इतना सा भी मुक्कमल होना जरूरी नहीं समझा उसने,
और फिर उसी एक ख्वाब का धराशाई होना,
मन मसोस कर,
निरस्त चेहरा लिए,
रोज उठना, रोज सोना,
ये कौनसी रेखाओं का फेर हैं,
ये कैसा किस्मत का खेल हैं,
ये मेरे मन का तो नहीं हैं,
ऐ खुदा, ये कैसा तुम्हारे मन का हैं,
मैं शायद इसका ही जवाब नहीं जानता हूं, पर,
ख्याल हैं, अब आता हैं,तो आता हैं।।
©penholic_shan
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