प्रेम संश्लेषण
तुम उर्जा शक्ति सूरज की,
मै वटवृक्ष की भांति हूँ,
मेरे भीतर की शक्ति का,
तुम एक मात्र ही स्रोत प्रिय,
तेरी किरणे मन की लहरे,
जो जोड़े मन के भाव सदा,
समावेश उन दोनो का,
मन शुद्ध करे हर भाव प्रिय,
अंतर्मन की प्राण वायु,
जो भीतर बाहर शुद्ध करे,
भीतर भरकर वो भाव सरल,
मन को हरषाए रोज प्रिय,
यह जीवन का संश्लेषण है,
जो सृष्टि पर आधारित है,
यह प्रकाश रूपी संश्लेषण,
जीवन को भाए रोज प्रिय,
तुम उर्जा शक्ति सूरज की,
मै वटवृक्ष की भांति हूँ,
मेरे भीतर की शक्ति का,
तुम एक मात्र ही स्रोत प्रिय।
@लवनीत
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