कर्ज़-ओ-फ़र्ज
इंतज़ार में हूं कोई तो सुने मन की पीर मेरी,
आक्रोश का जिगर में चुभा है जैसे तीर मेरी।
हर फ़र्ज़ निभाते को हरदम है तैयार हम,
मेरे वतन की धरती से जुड़ी तकदीर मेरी,
आश्रय दिया है तूने हम भी क़र्ज़ उतारेंगे,
इसकी माटी से ही बनी है ये तस्वीर मेरी।
तेरी ही गोद मे तो खेल कर हम बड़े हुए,
इक तू ही तो है मातृभूमि सारी जागीर मेरी।
तुझ बिन तो कुछ भी नहीं है मेरी पहचान,
जो दिया तुमने दिया! तू ही है तासीर मेरी।
तुझसे है जुड़ा रिश्ता नाता अपने पन का,
तुझसे होती अक्सर दिल की तकरीर मेरी।
कोई बुरी नज़र से तुमको देखें सहन नहीं!
लेने उस दुश्मन के प्राण खिचे शमशीर मेरी।
ऐ मादरे वतन की ज़मी तुझ से मेरा जीवन,
तुझसे ही उभर कर आती हर तहरीर मेरी।
जहाँ मे मै चाहे जहां भी रहूँ ऐ भारत भूमि,
आत्मा से तुझसे ही जुड़ी इक़ जंजीर मेरी ।
गौरव गाथा सारे जग में हिंदुस्तान की गाते,
तिरंगा है शान यही बने कफ़न का चीर मेरी।
जीवन पथ पे हर पल में बढ़ती जा रही हूँ,
अंत समय तुझसंग जिस्त की हो ताबीर मेरी।।
©archanatiwari
नमन है आपके कलम फ़न को।