कश्ती ही बदलती रही सागर तो वही था
हो कोई जनम अपना मुक़द्दर तो वही था
सच है मैं बुलंदी पे रहा और वो नाकाम
सच ये भी है हम दोनों में बेहतर तो वही था
जो शह्र ने बख़्शा है फ़क़त एक मकाँ है
हम गाँव में छोड़ आए जिसे घर तो वही था
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