सूबह सुबह छह बजे उठती
सारा काम करती
स्कूल को जाती, बाराह बाजे आती
दोपहर का खाना भी बनाती
झाडू पोछा लगाती
अपने भाई के गंदे प्लेट्स भी धोती
सारे काम करने बाद
पढाई करके अव्वल नंबर भी लाती
पूरा का पुरा घर वही तो संभालती
भाई उसका बेकार है
ना सुनता उसकी कूछ है
कितनी भी बिमार हो,
या उन चार दिनोंकी शिकार हो
फिर भी घर का पुरा काम तो
उसके ही नसिब है
घर चलाने खातीर
ट्युशन चलाती
पापा को हातभार लगाती
पुरा दीन काम में जाता
अपना दुःख किसको नहीं बताती
शिकायते करती तो किससे करती
क्योंकी बीन माँ की ही तो
थी वो लडकी
ना पापा की परी थी,
ना भाई की दुलारी थी
माँ, बेहन, बेटी का किरदार संभाले
वो तो एक छोरी थी
©khaire_patil
""""आजकल लडके नहीं
लडकिया समजदार हूई है
बाप का बोझ कंधे पे लिये
लडकों का किरदार निभा रही है""""