ना जाने क्या सोचकर हम,
उनका इंतिखाब कर बैठे हैं...
क्यों मोहब्बत में अपने दिल को,
यूँ इज़्तिराब कर बैठे हैं...
उनके दिल की हर इक बात,
तो उनके चेहरे पर तहरीर थी,
हम बेख़बर, बेवजह ही उनसे,
सवाल जवाब कर बैठे हैं...
हम उनसे आस लगाए बैठे थे,
ज़िंदगानी को संवारने की जो,
खुद इश्क की गलियों में अपनी,
ज़िंदगी खराब कर बैठे हैं...
©shivraj_singh
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shivraj_singh 141w
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