Ghazal
ज़िंदग़ी तेरा सफ़र....इक ख़्वाब सा रह जायेगा,
देखा था बनके मुसाफ़िर अलविदा कह जायेगा.!
रोज़ तेरी आस में जलते नयन.....चलते कदम
हम न होंगे जब यहाँ बस.....रास्ता रह जायेगा.!
अपने से है राह में सब......अपना सा कोई दिल नहीं
दिल ही जब अपना नहीं क्या अपना सा कह जायेगा.!
ढूँढने निकले सुकूँ थे...........रात सारी जल गई
नींद बंजर ख़्वाब बंजर सब बंजर ही रह जायेगा.!
कौन सी मंज़िल दिखाकर....मुझको भटकाया कहाँ,
"मृगतृष्णा" सा मन ये तुझको मरीचिका कह जायेगा.!
©mrigtrishna
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mrigtrishna 193w