Ghazal nahi hai
ख़्वाब जिंदा मर गए सूरतें नहीं बदलती
नज़ारत खास है इसीलिए नहीं सुधरती
काफ़िरपन छोड़ के ज़िन्दा रहे कुछ दिन
ज़िंदगी की ज़िद यूँ ज़िन्दा नहीं लगती
जहाँ देखा है तुमको नज़र भर कभी
उस जगह अब भी नज़रें नहीं संभलती
मुश्किलें और भी बढ़ा लेंगे हम अगर
बोझ से गाडियां कुदरती नहीं चलती
शाइरी रहे तो रहे उछलती मुझमें
नदियाँ जस की तस हैं नहीं उफनती
©jazz_baaatt
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jazz_baaatt 33w