तमन्ना
आ मेरी तमन्ना के बिखरते चमन को देख,
तू मेरा सब्र देख मेरे ख़स्ता तन को देख ।
लिपटी हुई ग़मों के समन्दर में सिसकियाँ,
बोसीदा इस बदन पे मिरे पैरहन को देख।
मक़रूज़ रही तुझ पे मुहब्बत ऐ ज़िन्दगी,
मदफ़ून मुहब्बत पे उढ़े इस कफ़न को देख।
कातिब की किताबें हैं मिरे ज़िक्र से ख़ाली,
मेरी ज़वाल-ए-ज़ात में उस दिल शिकन को देख।
ख़ून-ए-दिल-ए-ग़रीब पे हँसता है ज़माना,
मक़तूल-ए-दिल पे शाद ये अहल-ए-ज़मन को देख।
रातें हैं सर्द गर्म हरारत है गिर्द क्यों,
मेरे बदन को छोड़ मिरी रूह-ए-तन को देख।
मेरे हर इक सवाल से क्यों है ज़बान तंग,
मेरे सवाल-ए-हक़ से तू अपनी चुभन को देख।
©ishq_allahabadi