संभल जाएं जरा वक्त रहते रहते
कब तक करेंगे गलतियां नासमझी कहते कहते
सत्य अडिग है ,झूठ की उम्र थोड़ी
थक गए बुजुर्ग भी सीख देते देते
बन कर्म योगी ,तज दे आलस्य
हासिल हो लक्ष्य कर्म की राह चलते चलते
है सूरज हम खुद ,चीर ही डालें तिमिर
हार जाएंगे नाकामी का तंज सहते सहते
ठान लें गर तो बदल डाले हाथ की लकीरें भी
भरा पड़ा है इतिहास, किस्से कैसे-कैसे
मैदान-ए-जंग सा जीवन ,है हालातों से लड़ना
भरें हुंकार रणभेरी में जीत का उद्घोष करते करते
©riyabansal
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