कलम
आज फिर कलम उठाने को जी करता है ,
कुछ सुनने , कुछ सुनाने को जी करता है,
इस बागबान में गुल तो बोहोत हैं बहारों के,
आज फिर पतझड़ में फूल खिलने को जी करता है,
आज फिर कलम उठाने को जी करता है।
सीख चुके हैं हसने की अदा ।
फिरभी मुस्कुराने को जी करता है,
साथ मिले अगर इस महफ़िल का,
तो फिर कुछ सुनाने को जी करता है,
आज फिर कलम उठाने को जी करता है।
देखा है साहिल पे कई लहरों का ऊफान ,
जाने क्यों समंदर में आज फिर तूफ़ान उठाने को जी करता है,
अगर साथ दे ये परवाने ,
तो हर चिंगारी को लौ बनाने को जी करता है,
आज फिर कलम उठाने को जी करता है।
कई बार इन धड़कनों में सुकून की आह मे भरता हूँ ,
दो चार ही सही,आँखों में सपने मे आज भी रखता हूँ ,
कसूर है इन नाकारा नब्ज़ों का ,
वरना आज भी मे दिल तो रखता हूँ ,
साथ तो दे ये परछाई एक बार,
इन नम पड़ी नब्ज़ों को फिर चलाने को जी करता है ,
मर मर के बहुत जी लिए ज़ालिम, बची ज़िन्दगी अब ज़रा जीने को जी करता है,
आज फिर कलम उठाने को जी करता है।
©yatenb
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yatenb 95w
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