// समाज और हम //
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kritikakiran 76w
मैं मिट्टी से बनी, मिट्टी से भरी
एक फूलदान हूँ
जिसमें जब तब उग आती है
जंगली, ज़हरीली घास
घास लालन पालन नहीं खोजती
वो बढ़ती चली जाती है
और फैल जाती है
अनंत तक
मैं चाहती हूँ मेरे माथे पर
एक सुंदर सा फूल सजे
पर यह ढीठ घास
फूलों को उगने क्यों नहीं देती?
यह घास मुझमें इस तरह समायी है
जैसे समाया है तुम में तुम्हारा पूरा "समाज"
एक फूल के लिए मुझे इन्हें जड़ से काट फेंकना होगा
ठीक वैसे ही जैसे तुम्हें तुम्हारी बेहतरी के लिए
काटना होगा ख़ुद से ख़ुद को!
- कृतिका किरण
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