रास्तों में कुछ कशिश ऐसी है
कि हम मंज़िल भुला बैठे हैं
सफ़र छोटा नहीं ये मानते हैं मगर
हम हर मक़ाम को खो बैठे हैं
जिंदगी भी इतने मोड़ ले आती है
कि हम ठहरना भुला बैठे हैं
पता नहीं मिलता अक्सर खुशियों का मगर
हम ग़म को मुस्कुराहट में बंद कर बैठे हैं
कई बार नया दिन ऐसे इम्तिहान लेकर आता है
कि हम हारना - जीतना भुला बैठे हैं
हर लम्हा यादों का हिस्सा बनता जा रहा है मगर
हम ख़ुद से आज को जीने का वादा कर बैठे हैं....
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