आज की रात बहुत काली थी
सूरज ने चाँदनी पाली थी
समझ रहे थे जिसे कहकशाँ
वो तो महज़ एक थाली थी
महकती रहीं जो आठ - पहर
वो बाहें फू'लों की डाली थी
मोहब्बत मिली बचपन मिला
कल मैं ने यादें खंगाली थी
दोस्ती महँगी पड़ी मुझ को
दुशमनी भी मेरी ज़ाली थी
समझ रहे थे तारीफ़ के पुल
दरअसल मिरे लिए गाली थी
कोई चाँद समझता कोई सूरज
वो तो तेरे कान की बाली थी
हमारे शेर में आसमां लाल था
या फिर तिरे लबों की लाली थी
'सप्तरंग' तस्वीर मिलगई आज
जो आपने कब से संभाली थी
©7saptarangi_lekhan
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7saptarangi_lekhan 19w
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कहते कहते....❤️
Har ek like bhut hi mst hai