थोड़ी देर कितना देर होता है?
जाने क्यों आज भी इस बात का जवाब मैं ढूंढता रहता हूँ
पर कुछ मिलता है तो वह है शुन्य।
किसी के लौट आने के इन्तिज़ार का क्या पैमाना होता है?
'तो फिर कब मिलोगे?' के जवाब में 'बस थोड़ी देर में' सुनना
जवाब तो देता है पर संतुष्टि नही।
दरअसल इस 'थोड़ी देर में' के बीच में ही कहीं अनकहा
'कभी नहीं' छिपा होता है।
पर मैंने तो किताबों, कविताओं और गीतों में सुना था प्रेम में
सीमाएं नहीं होती, गुडबाय नहीं होते, मंज़िलें नहीं होती।
गर कुछ होता है तो वह होता है सफर। साथ रहने का।
आखिरी तक।
खैर प्रेम में सफर सभी करते है। अंतर यह है
किसी के हिस्से में हिंदी वाला आता है तो
किसी के में अंग्रेजी वाला।
अगर मैं जानना भी चाहूँ की तुम कब आओगे
तो वह मुझे तुम्हारे अलविदा कहने के लहज़े में दिख जाएगा।
वही लहज़ा जिसे मैं तुम्हारी ख़ामोशी में भी हर्फ़-ब-हर्फ़ पढ़ सकता हूँ।
वही लहज़ा जिस में मेरे देर रात कॉल करने पर तुम्हारा 'पापा जग रहे हैं'
हिचकिचाते हुए कहना, और मेरा समझ जाना की नींद आने का बहाना
बड़ी चालाकी से बतलाती हो।
और वैसे भी जिस तरह से सबके लाड-प्यार ने मुझे बिगाड़ा है
सभी यही कहते हैं सुधारने के लिए कोई 'तेज़-तर्रार' लड़की ही चाहिए होगी।
मेरे न सही पर घर वालों को जैसी लड़की चाहिए उस में तुम
ब-खूबी से फिट बैठती हो।
तुम्हें गए कितना समय हुआ इसका हिसाब तो नहीं पर हाँ
तुम्हारे बिना वक़्त मानो थम सा गया हो।
थक के कॉलेज से घर आते टाइम खिड़की पर बाहर देखते आज भी जब
'ले जाएं जाने कहाँ हवाएं, हवाएं' सुनता हूँ तो
तुम्हारी यादों में मैं, मैं नहीं रहता।
जब हैरी मेट सेजल का शाहरुख़ हो जाता हूँ।
और इससे पहले बगल बैठा आदमी मुझे पागल समझ के घूरे
मैं अपना ब्लश वाला चेहरा तुरंत सीरियस बना लेता हूँ।
प्रेम में दीवाना होना ठीक है, पागल नहीं।
तुमको पता है 'अपना ख्याल रखना' कह देना भर ही कभी कभी
'आई लव यू' से बढ़के हो जाता है।
जब 'आई लव यू , आई मिस यू ' के मायने कम लगने लगें तो
महज़ माथा चूमना भर ही प्रेम का प्रमाण हो जाता है।
पर तुम्हारा 'थोड़ी देर में' कहते हुए जाने के दौरान
ना ही 'अपना ख्याल रखना' छिपा था और
ना ही हर बार की तरह आँखें मूँद के मेरे होठों की तरफ
अपना माथा आगे करना।
मैं इश्क़ नहीं लिखता। लोगों को गलतफहमी है।
मैं तुमको लिखता हूँ। तुम सिर्फ मेरे लिए प्रेम मात्र नहीं हो।
तुम्हारा मेरा रिश्ता ऐसा है जिसकी ना कोई व्याख्या है,
ना कोई बंधन और ना ही दायरे।
अगर कुछ है तो वह है इन्तिज़ार और जानना एक छोटा सा जवाब आखिर
'थोड़ी देर कितना देर होता है?'
©आदित्य
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aaditya 92w
"मैं प्रेम नहीं लिखता, लोगों को ग़लतफहमी हैं"
Brilliant, brilliant, brilliant way of expressing...
"मैं तुम्हें लिखता हूँ"
"थोड़ी देर कितना देर होता है?"
I just can't describe how it feels like to read this....
The way you weave some simple things with profundity is holy insane...