मां पर कविताएं लिखकर महिमामंण्डन करने वालों से मेरा यह प्रश्न है कि आप सेवा कितनी करते हैं अपनी मां की?
कसम से मैंने मां बाप के मरने पर रोने वाले तो फिर भी देख लिए, मगर जीते जी मां पिता की सेवा करने वाले,उनके पैर दबाने वाले दुर्लभ प्राणी नहीं देखे। फिर किस बात का महिमामण्डन भाई...
थोड़ा झांको अपने गिरेबान में भाईयो, लौकी तो छोड़ो तुम तो टिण्डे खिलाने के भी लायक नहीं हो, और मांगते हो मां से रोज नए पकवान। गर्ल फ्रेंड के लिए बात बात पर मरने वाले हरामखोर आशिकों डूब मरो, अगर मां के दर्द को कभी नही महसूस किया तुमने।
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