कुछ लिखा है..
©vickyprashant_srivastava
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vickyprashant_srivastava 62w
ऐसे ही कुछ फूल आज भी मेरी किताब में हैं जो सूख तो गए हैं फिर भी उनमें उसकी जुल्फों की महक है, उसकी पंखुड़ियों की छुवन आज भी उतनी ही कोमल है जैसे पार्क में बैठकर मैं घंटो तक मैं तुम्हारे गालों से खेलता था।
रंगत आज भी कुछ कुछ सुर्ख सी है छूकर लगता है मानो तुम्हारे होठों को छू लिया हो, तुमने गोया सरमा कर अपनी आंखें बंद कर ली हों और खुद को मेरे आगोश में छोड़ दिया हो मानो कि मैं तुम्हारी हूं और तुमसे जादा क्या ही कोई इनको रूह बख्शेगा।
हां अगर तुम्हें दिख पाता तो दिखाता कि इन सूखे फ़ूलों का रंग कुछ बदल तो गया है लेकिन ये बिल्कुल तुम्हारे जैसा ही है तुम्हारे पल पल बदलते रंग जैसा कभी हँसता मुस्कुराता हुआ गुलाबी सा कभी मुझसे नाराजगी में सुर्ख सा कभी गुमसुम अंधेरो जैसा जब मेरे पास तुम्हारे सवालों का जवाब नही होता और एक पल में सफेद तन्हा उस चांद सा गुमसुम जो मेरे जाने भर की बात से तुम्हारे चेहरे पर छा जाती थी।
उसकी टहनियों के कुछ निशान बड़े करीने से किताब के पन्नो पे हैं जैसे किसी सुंदर सी आयत से उभरे हुए, लगता है मानों मैंने मैंने तुम्हारे कोमल हाथों को प्यार से पकड़ा हो और छुड़ाते हुए अठखेलियों में सख्ती के कुछ निशां उभर आये हों, और उसकी नाराजगी में रुठ जाने की तुम्हारी अदावटें सिलवटों जैसे सफेद पन्नो पर श्याह रंगों में निखर आयी हो।
वो फूल सायद 10 साल हो गए लेकिन पता है मैंने आज भी उसको महकता हुआ रखा है मैने उन्हें संभाल रखा है, तुम्हारे कल्पनाओं की महक से तुंहरी यादों की खुशबू से , तुम्हारे मन की सुंदरता से तुंहरी हसी से और तुम्हारी एक उम्मीद में.....
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