मैं, तुम, खुला आसमान और ये तारे,
ऐसे कितने मंजर बस खवाब ही रह गए हमारे!!
मैं, तुम, खुला आसमान और ये तारे,
ऐसे कितने मंजर बस खवाब ही रह गए हमारे!!
सपने एक टूटे तो फिर आजाते है रात को सिराने के
और तू बता आज लगी घर में तो छोड़ थोड़ी न देते है सब जलजाने के
हजार पैतरे दिमाग में आजाते है घर बचाने के और आग बुझाने के