स्त्री - पुरुष
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स्त्री पुरुष का सम्बन्ध....
एक पुरुष और स्त्री के आपसी सम्बन्धो कि परिणीति सिर्फ देह ही तो नहीं हो सकती..
क्या......
स्त्री - पुरुष किसी और तरह नहीं बंध सकते आपस में..??
और बंधे ही क्यूँ....
उन्मुक्त भी तो रह सकते हैं...
समाज के बने बनाये एक ही तरह कि सदियों पुरानी सन्धान सी हैं...
कि स्त्री -पुरुष का के रिश्ते का एक ही रूप हैं...
एक स्त्री पुरुष बौद्धिकता के स्तर पर भी एक हो सकते हैं...
उपन्यास..
कहानिओ..
गज़लो..
पर भी विमर्श करना
कहानिओ कि नई पौध रोपना.
क्या देहिक सम्बन्धो कि परिभाषाए लाँघता हैं....???
एक स्त्री - पुरुष घंटो बाते कर सकते हैं..
फूलो के रंगों के बारे में..
तीतीलिओ के पंखो के बारे में...
समुन्द्र कि दूधिया किनारो के बारे में..
और..
ढलती शाम के संतरंगी आसमानो के बारे में...
इनमे तो कही भी देह कि महक नहीं..
दूर - दूर तक नहीं..
फिर दायरे वही दायरे बाँध देते हैं दोनों को..
एक स्त्री और पुरुष..
के आपसी सानिध्य कि उत्कनठा..
कि दूसरी धुरी आवश्यक तो नहीं कि दैहिक खोज ही हो...
मन के खाली कोठरो को..
सुन्दर विचारों से भरने में भी सहभागी हो सकते हैं स्त्री-पुरुष..
यूं भी तो हो सकता हैं..
उनके बिच कुछ येसा पनपने को उदवेलित हो..
जो देह से परे हो..
प्रेम कि पूर्व गढ़ित परिभाषाओ से भी अछूता हो...
नैसर्गिक अनूठापन लिए हुए..
सिर्फ सनीग्ध.. धवल एहसास हो..
अंकक्षारहित विस्तार हो..
इस तरह के रिश्ते कि ..
परिषभाषा को नवपल्लव कि तरह क्यूँ ना पनपने दे..
स्त्री -पुरुष.....