"Smartness"
Smartness comes from the person's done and lived actions,
that only and only take that person from zero to the axis of the highest point,
~pragyat
pragyat_01
Study at "Allahabad university" "Master in History" CSE
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"Truth"
"Truth is always written only, but how many people understand and implement it, it remains only an esoteric question"
~Pragyat yadav -
pragyat_01 63w
उत्तराखंड में बसंत ऋतु के बाद का मौसम प्रकृति में एक नई स्फूर्ति का एहसास दिलाते हैं,इस दिन फूल से लेकर फलों के पेड़ अपनी-अपनी शाखाओं पर छोटे छोटे कोमल फूल एवं नई पत्तियों को जन्म देते हैं,चीड़ के वृक्षों पर आये फूल होली के त्यौहार का संकेत देते थे, याद है मुझे वो क्षण जब मैं प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनाई गई सड़क से अपने विद्यालय जाता था और बचपना एवं नासमझी में पत्थर उठाकर चीड़ के वृक्षों पर लगे फ़ूलो को निशाना बनाता था।
वो एक दौर की बात थी जब उन फूलों से उड़ते उसके सूखे रंग हवा में उड़ते किसी गुलाल से प्रतीत होते थे,जिसे देख आनंद की अनुभूति होती थी,पेड़ों के जड़ के किनारे अकेला पड़ा कोना भी बसंत ऋतु में पीले-पीले छोटे फूल से आच्छादित रहते हैं,जिसे देख मन सहसा ही आश्चर्य से भर जाता था,
इस दिन छोटे छोटे बच्चे सभी के घरों में जाकर उनके दहलीज पर फूल डालते हैं,और लोग खुशी पूर्वक उन बच्चों को चॉकलेट,मिठाई,केक या पैसे वगेरा देते है,एक प्रकार से ये बच्चों का त्यौहार है,जिसका लुत्फ बचपन में मैंने भी अपने छोटे भाई संग क़भी लिया था,ये उत्तराखंड राज्य का स्थानीय त्यौहार है,जो चैत्र माह के आगमन पर मनाया जाता है।
सम्पूर्ण उत्तराखंड में चैत्र लगते ही फूल खिलना आरम्भ हो जाते हैं,जिनमें मुख्यता बुरांश,फ्यूंली आदि है।
इसी दिन से हिन्दू शक संवत की शुरूआत भी मानी जाती है जो वास्तव में नूतन वर्ष माना जाता है।बच्चों की खुशी एवं फूलों का त्यौहार है फूलदेई।
आज सोचता हूं वो पहले का दौर था जब,सभी घर मे बच्चों के लिए एक नियम तय होते थे,अनुशासन का शासन होता था,हालांकि आज भी है,लेकिन लोगों में पहले की अपेक्षा आज वो प्रतिबद्धता कम दिखाई देती है तब बड़े पैमाने पर मोबाइल क्रांति भी नही हुई थी,नहीं तो उस वक्त मैं भी अपने फोटोखींचक यंत्र से उस वक्त बीते हुए लम्हों एवं पलों को अपने यादों के इडियट बॉक्स में कैद करके रख लेता।
फूलदेई पर्व की असीम शुभकामनाएं ।❣️"फूलदेई"
स्थानीय त्यौहार "फूलदेई" चैत्र का महीना!
(पूरा पढ़े अनुशीर्षक में....) -
pragyat_01 63w
कुछ हैरान हूं परेशान हूं,
नियति के आगे लाचार खड़ा,
बेबस इंसान हूँ।।
हां मैं इंसान हूँ,
क़भी फुटपाथ पर ठोकर खाता गिरता उठता,
रोता फिर सम्भल जाता,
हाँ मैं इंसान हूँ,
दो जून की रोटी को दर दर भटकता,
जूठे बर्तन धोता इंसानों की बस्ती में,
भूख से बिलखते पेट से आवाज़ आती
हाँ मैं इंसान हूँ,
क़भी मंदिर का प्रसाद चखता,क़भी लंगर
की पंक्ति में खड़ा हो दोपहर का भोजन
जुटाता,इंसानों की भीड़ में,
सूनसान चुपचाप अकेला खड़ा,
हां मैं इंसान हूँ,
तपती दुपहरी हो,या पांव में छाले हों,
जीवन है बड़ा दुर्गम,अनवरत चलना होगा,
ऐसा देखा मैंने।
नौनिहालों को भीख मांगते देखा,
सड़कों से स्कूल जाते देखा,
हाँ मैंने जीवन में फर्क देखा,
कूड़े के बोझ तले,
सपनों को दबते देखा
मैंने,
बचपन को जीवन खोजते देखा,
चल मन,कोसों दूर लोभ,लालच,मक्कारी,
और ईर्ष्या की अग्नि से,
जहां प्यार हो,इक़रार हो,सम्मान हो,
संवेदना हो,कोई तो शेष होगी ऐसी बस्ती,
कवि की कल्पना में,
जहां सिर्फ इंसान हो।।
~प्रज्ञातमैं इंसान हूँ।
अनुशीर्षक में.... -
pragyat_01 64w
दिल मे जो रहते हैं वो गायब कहां होते हैं,
अक्सर!
हमसाया बनकर रूबरू होते हैं,
मुक्कमल होने तक !!
~प्रज्ञात -
pragyat_01 64w
अपनी घनी जुल्फों की परछाई देना तुम,
मेरी आँखों के समंदर को,
दरख़्तों के साये में कोई खुशनसीब,
गुजरी जिंदगी ढूंढता हो जैसे।।
~प्रज्ञात -
pragyat_01 66w
#read_full_caption
अगर मन क़भी अशांत हो,दिल मे एक बेचैनी सी हो,
विशेष रूप से वर्तमान और भविष्य के मध्य की ऊहापोह को लेकर,
तो सही मायनों में कहीं घूमने निकल जाना चाहिए, स्वछंद वातावरण में स्वछंद विचारों के साथ,और आखिर में ऐसे मौके मिल ही जाते हैं घूमने हेतु, उन मौकों को आपको तराशने की आवश्यकता नहीं पड़ती,वे स्वयं आपके पास चले आते हैं,बहाना चाहे कोई भी हो....
बाहर,सर्द मौसम इस वर्ष की अपनी अंतिम साँसें
गिन रहा है,फिजाओं में हल्की गुलाबी चटक धूप मई की
दोपहरी का एहसास करा रही है,बसंत ऋतु दस्तक दे
चुकी है कोमल पत्तियां एवं नई कोपलें बरबस ही ध्यान
आकर्षित करती हैं।।
वाकई में बदलाव ही प्रकृति का शाश्वत नियम है,नई
कोंपलों को स्थान देने हेतु,पुरानी पत्तियों को अपने जीवन का त्याग करना ही पड़ता है,खुशनुमा माहौल है,आम के पेड़ बौरों से श्रृंगार कर चुके हैं,उसकी खूबसूरती किसी भी महिला के श्रृंगार को लजा सकती है।।
तो आज मैं भी अजीज मित्र संग निकल गया फाफामऊ (प्रयागराज)की ओर, जिस ओर क़भी मैं चन्द्रशेखर सेतु के ऊपर से निकलता था।।
क़भी नीचे नहीं जाना हुआ,लेकिन मन हमेशा करता था कि इस गंगा-यमुना दोआब की भूमि को जरा पास से देखूं,गंगा नदी पर अंग्रेजों के समय की बनी अद्भुत सेतु की नींव को नजदीक से देखूं क्या मंजर रहा होगा उस दौर का जब औद्योगिक क्रांति ने विश्व पटल पर अपने कदम बढ़ाए होंगे,
मशीनीकरण के युग ने धीरे धीरे विश्व जगत में अपनी पैठ बनाई,और आज 21वीं सदी में मनुष्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण से
कहीं आगे जा चुका है।।
इन्हीं सब को सोचते विचारते घूमते हुए आज एक सुखद दिन बीता,और अक्सा खयाल आया कि फोटोखींचक यंत्र से एक आद तस्वीरें भी निकाल ली जाएं लेकिन हमारे मित्र फोटोग्राफी के शौकीन तो नहीं पर आज फोटो कुछ यूं निकाल दी।।
PC-Rohit
https://www.instagram.com/"अशांत मन"
पूरा पढ़ें अनुशीर्षक में...... -
pragyat_01 67w
प्रकृति की गोद में,फूल वैसे ही नजर आतें है,
जैसे किसी व्यक्ति में बसी,उसके अंदर की कोमलता,
विनम्रता,उसकी संवेदनशीलता
एवं बड़प्पन,
जो फूलों की ही भांति,बाहर से सुंदर,
व भीतर से विनम्र एवं कोमलता से परिपूर्ण होते हैं।।
अतः
ब्रह्मांड का सबसे बड़ा पुस्तकालय,
प्रकृति है,जिससे,
हर इंसान को अपने जीवनकाल में कुछ न कुछ,
अवश्य सीखना चाहिए।।
~प्रज्ञात~प्रकृति
प्रकृति की गोद में,फूल वैसे ही नजर आतें है,
जैसे किसी व्यक्ति में बसी,उसके अंदर की कोमलता,
विनम्रता,उसकी संवेदनशीलता
एवं बड़प्पन,
जो फूलों की ही भांति,बाहर से सुंदर,
व भीतर से विनम्र एवं कोमलता से परिपूर्ण होते हैं।।
अतः
ब्रह्मांड का सबसे बड़ा पुस्तकालय,
प्रकृति है,जिससे,
हर इंसान को अपने जीवनकाल में कुछ न कुछ,
अवश्य सीखना चाहिए।।
~प्रज्ञात -
pragyat_01 67w
दवा कहिये,या फिर फ़ना करिये,
ना हो तो इक़ हुनर रखिये,
ये इश्क़ है साहब,दुआ में भी दवा
सा असर होता है..
~प्रज्ञातइश्क़
दवा कहिये,या फिर फ़ना करिये,
ना हो तो इक़ हुनर रखिये,
ये इश्क़ है साहब,दुआ में भी दवा
सा असर होता है..
~प्रज्ञात -
pragyat_01 67w
ज़िंदगी अब वो मयस्सर नहीं,
जो तेरे संग थी क़भी,
इश्क़ की खुशबू आज भी है तेरी,
अहले दिल में...
चिरागे-शहर हूँ,
बस जलता बुझता जाता हूँ...
~प्रज्ञात"मयस्सर"
ज़िंदगी अब वो मयस्सर नहीं,
जो तेरे संग थी क़भी,
इश्क़ की खुशबू आज भी है तेरी,
अहले दिल में...
चिरागे-शहर हूँ,
बस जलता बुझता जाता हूँ...
~प्रज्ञात
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lazybongness 46w
खुशियों के आँगन में,..
एक पेड़ ज़रूर लगाओ
गम के कुछ पत्ते झड़ जाएंगे।
©lazybongness -
ऐसा क्या लिखूँ, सभी के दिलों का राज़ लिखूं
बेखबर होकर, मैं बेशूमार लिखूं।
टीस दिल की जलाकर, बेहिसाब रंज-ओ ग़म लिखूं।
©lazybongness -
rangkarmi_anuj 47w
रजस्वला
स्त्री बैठी रही
चार दीवारी में छुपकर
वह महीने के
कालकोठरी में दंड भुगत
रही थी, वो सृजन
के अध्याय का आरंभ
कर चुकी थी, और
उसके उदर से स्वर
निकल रहा था और उसका
रंग लाल था।
स्त्री समस्त पीड़ाओं को
कुंडली मे बांध
कर सो जाती थी,
अपने शरीर को
सर्प की भांति लपेट
लेती थी, जिससे
पीड़ाओं के विष
रात्रि विश्राम के
समय परेशान न कर सकें।
रक्त के कण
उसके मुख को लाल
कर देते थे, क्या करे
लज्जा के कारण उसका
मुख लाल हो जाता था,
भोजनालय, मंदिर
से वंचित रह कर
वह रजस्वला स्त्री
रीति व नियमों की
गठरी को सूतक
मानती थी, लेकिन स्वयं को
जननी का पुरस्कार
किलकारी के बाद देती थी।
©rangkarmi_anuj -
तारीखों से आगे
तारीखों से भी आगे की कुछ कहानी है।
1947 के विस्थापन में मासूमो का खून बहा जैसै पानी है।
सांप्रदायिकता का ऐसा शोर था।
कि बच्चा-बच्चा उसमें भाव-विभोर था।
"फूट डालो राज करो" नीति का ऐसा असर था।
कि शांति अमन का हर पैंतरा बेअसर था।
वो ऐसा समय था, जब सिर्फ अपने धर्म से चाहते थी।
दूसरो को तकलीफ पहुँचाने मे मिलती दिल को राहते थी।
खुशी और गम दोनो भावो के बीच द्वंद्व था।
विभाजन के गम के आगे आजादी का जश्न मंद था।
औरते आत्महत्या पर उतर आई।
इज्जत उतरने से बेहतर माना मौत की खाई।
तारीखों से भी आगे कुछ कहानी थी।
मैने गढ़ी जितनी मैने जानी थी।
©himanshibajpai -
सही या गलत
लड़की का अनजान से बात करना गलत है।
तो क्या अनजान के साथ विदा होना जाना सही है?
लडकी का खुलकर हँसना गलत है।
तो क्या शर्म से मरना सही है?
क्यो सही है अपना दर्द छुपाना?
क्यो गलत है उसे सबको बताना?
क्यो गलत है घर से अकेले निकलना?
क्यो सही है घर में दुबकना?
अगर बेटियाँ घर की इज्ज़त है ।
तो गलत है उन्हें पराया धन कहना।
तो गलत है उन्हें घर का न जन कहना।
तो गलत है कभी न उनका मन लेना।
अगर ये सही है कि बेटियाँ सिर्फ़ मेहमान है।
तो मिलता क्यो नही है वो मेहमान वाला सम्मान है।
तो क्यो करती वो घर का काम है।
तो क्यो नहीं माना जाता इस मेहमान को भगवान है।
क्या गलत है? क्या सही है?
मेरा जवाब यही है
बेटियाँ न पराया धन है न चार दिन की मेहमान
भरोसा रखो उन पर एक दिन बन जाएंगी आपका अभिमान।
©himanshibajpai -
alkatripathi 60w
तुम्हारी बातें जो हैं ‘सूई' पिया,
मेरे दिल में क्यों चुभोते हो?
निकाल दो इनसे,
मेरे पांव में अटके ‘शूल' पिया
©alkatripathi -
arzoo_machra 60w
कलम का काम सच लिखना है ... और वो सच तो किसी के भी खिलाफ हो सकता है.. मेरे भी.... I m fully honest with my pen ✒✒ @kumarrrmanoj @sanjeevshukla_ @pragati_sahu21 @vipin_vn @pragyat_01
✍
कलम है हाथ में
जनाब मैं बिना आवाज़ किये भी चीख़ सकती हूँ...
और इतना हैं बाकी मुझमें जमीर
गलत हूँ अगर तो खुद को गलत भी लिख सकती हूँ...
©arzoo_machra -
arzoo_machra 61w
आपका कर्म , व्यवहार व बोली आपके माँ - बाप के दिए गए संस्कारों को दर्शाता हैं...
गलती आपकी होती है और समाज उंगलियाँ माँ - बाप पर उठाता है...
@pragyat_01 @pragati_sahu21 @vipin_vn @kumarrrmanoj @_j_s_k_कुछ भी करने से पहले सौ बार सोचना
क्योंकि तेरी एक गलती तेरे माँ - बाप के लिए श्राप है...
कहने को तो तुझे ताना देंगे लोग
पर उन तानों के निशाने पर तेरे मां-बाप है...
©arzoo_machra -
arzoo_machra 61w
I have no pain... But kuch writers itna gajab likhte h ki unka likha padhkar m dukhi ho jaati hu @pragyat_01 @pragati_sahu21 @_j_s_k_ @officialhimanshu @anaya_00
कुछ यू टूटे है हम जनाब की
कोई मुस्कुराने को बोल दे
तो कमबख्त सजा-ए मौत सा लगता है...
©arzoo_machra -
arzoo_machra 61w
वो तुम्हें " मैं " समझाने आएंगे तुम " हम " पर अड़े रहना @pragyat_01 @pragati_sahu21 @kumarrrmanoj @sanjeevshukla_ @mamtapoet
हम
रामराज्य के साक्षी हम
मीरा की भक्ति है ...
महा ऋषि व्यास की कलम हम
शिव की शक्ति हैं ...
परशुराम का है तेज हम
गुरु गोविंद की वाणी है ...
अल्लाह की कुरान हम
गंगा का पानी है ...
मत बांटो जाति धर्म में हमें
हम भारतवासी होने पर अभिमानी है...
©arzoo_machra
