बेचैनी में सोने वालों को अक्सर
चैन मिले तो नींद नहीं आया करती
- रीतेय
©reetey
-
-
रिश्तों में नमी थी, सो अमानत बनी रही
सूखा नहीं कभी भी उसका दिया गुलाब
- रीतेय । @imreetey -
गाँधी तेरा देश
गए चाँद तक, मंगल पर भी
ख़ूब हुआ है सैर।
दुश्मन को भी दोस्त बनाया
ख़त्म किया कुछ बैर।
स्वास्थ्य सुधारा, सड़के बनाई
शिक्षित हुआ है देश।
दिया विश्व को आगे बढ़
हमने भी कुछ संदेश।
किंतु इतना आगे आकर
अब भी हम हैं पीछे
मूलभूत सुविधाएँ से हैं
अब भी नज़रें खींचे
जनता आज सड़क पर उतरी,
नेता मूक भवन में।
संघर्षों की बाढ़ है उमड़ी
जन-जन के जीवन में।
सिर्फ़ वोट से नहीं यहाँ अब
सरकारें बनती है।
फ़ोटो वाले नोटों की ही
आख़िर में चलती है।
जिसने जितने नोट उड़ाए
उसके उतने वोट।
ढूँढ रहे अब नेता-जनता
एक-दूजे में खोट।
रोज़ मनाता होली ख़ूनी
खबरों से अख़बार।
लाल क़िला की प्राचीरें भी
देखती दुर्व्यवहार।
आज़ादी के मज़े लूटते
किस तरह चोर उच्चके।
अगर देखते बापू तुम
रह जाते हक्के-बक्के।
देख रही दुनिया भारत का
कैसा-कैसा वेश
देखो कैसे बदल रहा है
गाँधी तेरा देश!
- रीतेय
३० जनवरी २०२१ -
भीड़ नहीं करती है मुहब्बत
और ना ही करती है नफ़रत
मगर कर सकती है दोनों
करवाए जाने पर।
भीड़ ने बैठना सीखा है
पिछली सीट पर, आरंभ से,
भीड़ की आदत है देखने की
फिर उसे हू-ब-हू उतारने की
भीड़ के लिए होता है आसान
मुश्किलें पैदा करना
कभी भी, कहीं भी
और किसी भी तय क़ीमत पर।
भीड़ अक्सर लगती है मुफ़्त की
मगर मुफ़्त की नहीं होती।
मय्यत में भी नहीं!
वो देर आती है
और दुरुस्त रहती है।
- रीतेय -
reetey 81w
जिसने ताक़त दिया तुम्हें कि जिरह करो
उसे ताक पर रख कर लड़ना ठीक नहीं।
अहल-ए-वतन नाराज़ सियासत से हो, रहो
मगर वतन को ताक पर रखना ठीक नहीं।
- रीतेय
©reetey -
उम्र उम्र की बात
एक उम्र के बाद,
लड़के नहीं चाहते हैं प्रेमिकाएं।
अगर न हो,
तो नहीं होता है मलाल,
किसी के नहीं होने का।
और अगर हो भी
तो की जाती हैं कोशिशें
बदलने की,
प्रेमिकाओं को जीवनसाथी में।
एक उम्र के बाद,
नहीं रहता है शेष,
उतनी उम्र और जवानी,
कि लुटाया जा सके,
दोनों को फिर एक बार।
एक उम्र के बाद,
कमजोर पड़ जाती हैं ज्ञानेंद्रियां।
नाक कर देती है इंकार,
एक खास खुशबू के अलावा
तमाम सुगंधों को।
वो ख़ुशबू जिसकी मौजूदगी में,
नाक स्वेच्छापूर्वक खींच लेता है,
एक लम्बी साँस, सुकून की।
कान ठिठक जाना चाहता है,
उसी एक आवाज़ पर
जो उसे लगने लगता है अपना सा।
वही एक अभ्यस्त आवाज़,
जिसमें कही गयी तमाम बातें
अक्सर अच्छी लगती है।
आँखें नहीं चाहती हैं देखना
फिर से कोई नयी सूरत।
नहीं होती है तमन्ना
किसी दो और आँखों में खोने की।
नहीं चाहती है कि खाली हो,
अपने अंदर का कोई कमरा।
नहीं चाहता है क्षण भर को भी,
वो अपने अंदर एक खालीपन।
हाथों को लग चुकी होती है आदत,
एक ख़ास नर्म, सुंदर और गर्म हाथों की,
जिसे थामते हुए हो जाता है एहसास
मानो दुनिया के अंदर,
एक दुनिया सिमटी जा रही हो।
नहीं चाहता है हाथ नापना ज़िंदगी को,
फिर से किसी और हाथों की उँगलियों में।
नहीं चाहता है एक नयी लक़ीर,
किसी और हाथों की नाखूनों से।
एक उम्र के बाद,
ज़िंदगी तय कर चुकी होती है,
ज़रूरतें, ज़िम्मेदारी, ख़्वाहिश, ख़ुशी
स्नेह, सम्मान, स्वीकृति, समर्पण
सब कुछ।
एक उम्र के बाद,
उम्र नहीं चाहता है ख़ुद को दोहराना।
-रीतेय
१२/३१/२०१९
©reetey -
मैं नहीं ला सकूँगा
तुम्हारे लिए तोड़कर कुछ भी।
क्योंकि, प्रेम में
कुछ भी तोड़ना अच्छा नहीं है।
वादे, दिल, चाँद या कुछ भी!
-रीतेय
©reetey -
आईना देखते हुए
ख़ुद से एक सवाल किया।
उदास हो?
उत्तर मिला, नहीं!
सवाल बदलकर पूछा
ख़ुश हो?
उत्तर नहीं बदला!
एहसास हुआ कि कभी-कभी
अपने अंदर
मध्यस्थता करते हुए,
कुछ लोग
कहीं के भी नहीं हो पाते हैं!
- रीतेय
©reetey -
हर बार नहीं की जा सकती है
एक नयी शुरुआत।
गुजरते हुए,
छूटता चला जाता है इंसान हर जगह।
क्योंकि,
हर बार नहीं होता है आसान
समेटना,
बिखरे हुए ख़ुद को।
कल जहां था, पूरा नहीं था।
कल जहां होगा, पूरा नहीं होगा।
कभी-कभी लगता है कि डरता है इंसान
पूरा हो जाने से।
डर यही की ज़िंदगी पूरी हो जाए
तो ज़िंदगी नहीं रहती।
मैं भी नहीं ढूँढ सकता हर बार
एक ख़ाली पन्ना
और इसलिए कभी-कभी
रह जाती है कविताएँ अधूरी।
— रीतेय
©reetey -
reetey 83w
थोड़ा तो अपनी शान-ए-सितम का ख़्याल कर
आँसू बह़ाल कर मेरे आँसू बह़ाल कर
पाने का जश्न अपनी जगह है मगर कभी
जो खो दिया है उसका भी थोड़ा मलाल कर
कितने जवाब तेरे ही अंदर हैं मुंतज़िर
ख़ुदसे नज़र मिला कभी ख़ुदसे सवाल कर
- राजेश रेड्डी
-
hindiwriters 72w
@sanjeevshukla_ जी की इस रचना को पढ़ें, सराहें और इन्हें follow करके इनका मनोबल बढ़ाएँ :)
बहुत उम्दा लिखा है संजीव जी, यूँ ही लिखते रहें ।
आपकी रचना भी बन सकती है Post of the Day, बस ऐसे ही दिल से लिखते रहिये और @hindiwriters को अपने हिंदी लेखों के caption में ज़रूर tag करें ।
#hindi #hindiwritersHindi Post of the Day
इक झोंके जैसा खुश्बू का आलम होता है
लम्हा गुल का फिर काँटों का मौसम होता है l
धूप तपिश में जलते रहते ज़िस्म-ओ-जॉ हरदम
कुछ दिन बस बारिश का मौसम पुरनम होता है l
रग-रग में यूँ चुभते रहते हैँ नश्तर अक्सर ,
रिसते ज़ख्मो पर कब कोई मरहम होता है l
सदियों की इक प्यास कहाँ पानी से बुझती है,
अपने हिस्से बस कतरा-ए-शबनम होता है l
"रिक़्त"लहर में डूबे हैँ नज़रें हैँ साहिल पर
बेज़ारी माक़ूल सुकूँ कुछ कम-कम होता है l
- संजीव -
तुम किताब हिन्दी की, मैं उसका कोई छंद सा,
तुम बरसाने की राधा, मैं तुझमे रहूं गोविंद सा,
तुम मिलन की जल्दी में, मैं उसमे भी विलंब सा,
तुम किताब हिन्दी की, मैं उसका कोई छंद सा,
तुम पुत्री रुक्मणी सी, मैं एक पिता श्री नंद सा,
तुम फूल हो गुलाब का मैं ज़मी में दबा कन्द सा,
तुम ढलते'सूर्य की आभा सी,मैं धूप की सुगंध सा,
तुम किताब हिन्दी की, मैं उसका कोई छंद सा
तुम आंगन हो मेरे घर का, मैं कमरा कोई बंद सा,
तुम एक ग्रह के बराबर हो , मैं कोई भूमि खंड सा,
तुम गर्मी की मचलती धूप हो, मैं सर्दी की ठंड सा,
तुम किताब हिन्दी की, मैं उसका कोई छंद सा,
©ajit___ -
tanha_ 82w
दुख अंदर है दुख है बाहर, दुख से भरा हुआ संसार
तुम हंस दो तो जीत हमारी, तुम रो दो तो अपनी हार
©tanha_ -
shashwatkumar111 143w
मोहमाया
Jo ho gaye to nirvana।
Jo na hue to mohmaya।।
(In context of achieving goal)
#inspired -
neha_sultanpuri 87w
क़ुर्बते होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं
कितनी आज़ादी से हम अपनी हदों में क़ैद हैं
~सलीम कौसर -
neha_sultanpuri 86w
वो कही तो मिले वो कभी तो मिले
ख़्वाब में ही सही ज़िन्दगी तो मिले
~मंज़र भोपाली -
वो भी हमारे फैसले पर बोलते हैं
जिनको हमारे हौसले पर बोलना था ।।
©sanki_shayar -
किसी ने बाँध रखे हैं मेरे पर
किसी ने जाल में उलझा दिया है,
किसी ने घोसले का ख्वाब देकर
मुझे एक कटघरे में ला दिया है,
किसी ने कैद कर रखा है मुझको
किसी ने हाथ भी जकड़े हुए हैं,
किसी ने पैर कसकर बेड़ियों में
मेरे सारे कदम पकड़े हुए हैं,
मगर एक आखिरी उम्मीद लेकर
मैं इस दुनिया से लड़ना चाहती हूँ,
किसी बेख़ौफ़ पंछी की तरह ही
मैं फिर एक बार उड़ना चाहती हूँ।
©नित्या सिंह 'भूमि' -
shraddha_shuklaa 162w
वेदना
तुमने जब इन गंदे हाथो से उसका गला दबाया होगा
उसके पिता को उसकी आंखो में रोता पाया होगा
जब तुमने अपने हवसीपन में उसके वस्त्र उतारे होगें
उसकी आंखो से उसकी मां के कई सपने हारे होगें
जब तुमने अपनी हवस में उसकी इज्जत को तार तार किया
राखी वाले हाथों के हर इक धागे पर वार किया
कितने निकृष्ट, निरलज्ज इंसान हो तुम
भूलो मत इक बहन के भी भाई हो तुम
पर हे ईश्वर तेरी बहन को कभी न ऐसा पल दिखे
कभी न ये जहां और न तेरे जैसा कोई कसाई मिले।।।।।
©shraddha_shuklaa"अनुरक्ति" -
उजाड़ा घोसला तो था ही, उस पर पंख भी काटे
न एक निशान छोड़ा था कहीं उसने मेरे घर का,
और एक दिन फिर हवा में छोड़कर बोला कि उड़ जाओ
तमाशा ही बना डाला मेरे टूटे हुए पर का।
©नित्या सिंह 'भूमि'
