चाँद रोज़ उतरता है झील में
मौत की ख़ातिर
लहरें पूरी शब मौत का झूला झुलाती हैं
उसे अपनी गोद में रख कर
और सुबह तक फेंक देती है बाहर
मर जाता है चाँद का एक हिस्सा
मैं भी रोज़ जाती हूँ झील में
तीन सीढ़ी नीचे उतर के बैठ जाती हूँ
बहा देती हूँ आँखों से कुछ यादें
आँखों से गिर कर वो डूब जाती हैं
मौत हो जाती है उनकी
सुबह लौट आती हूँ
रोज़ मौतें होती हैं झील में
कोई नहीं देखता
किसी को लाशें नहीं मिलती
मिलती है तो बस मुर्दे के शरीर की ठंडक
झील के पानी में !
©ritusinghrajput
ritusinghrajput
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ग़ज़ल
मिरे हालात पे दुनिया तरस खाया नहीं करती,
सुना के हाल अपना सो मैं ग़म ज़ाया नहीं करती।
कि गुल ख़ुद ही सिमट जाता है ढ़लता देख के सूरज,
फ़लक की रौशनी पैगाम भिजवाया नहीं करती।
कहीं पर आज़ रोया है बिना आहें भरे कोई,
वगरना बिन हवा बारिश कभी आया नहीं करती।
मुझे इक लम्हा मेरे यार का हासिल नहीं होता,
ग़म-ए-दिल इक यही है जो मैं बतलाया नहीं करती।
वो कहता है अगर हिम्मत दिखाओ छोड़ के मुझको,
कहो उससे मुझे तो याद तक आया नहीं करती।
कि अब तो "रीत" से अहबाब आएँ पेश कैसे भी,
वो उनको दोस्ती का लहजा सिखलाया नहीं करती।
©ritusinghrajpoot -
लाॅक डाउन में तो हर शय की कमी अपनी जगह,
पर दोस्तों से मिल न पाने की बेबसी अपनी जगह।
इन दिनों घर पर हैं जबसे हमें याद होटल आता है,
घर का खाना ठीक है पिज्जा की कमी अपनी जगह।
काश मैं भी घूम आती दोस्तों के साथ में पर,
है मरज़ अपनी जगह और दोस्ती अपनी जगह।
एक से है इश्क़ तो क्या अब दूसरा देखें नहीं,
इश्क़ की अपनी जगह है औ' दिल्लगी अपनी जगह।
चाँद दिन में शब में सूरज क्यूँ नज़र आते नहीं,
इन सवालों में हर इक की तिश्नगी अपनी जगह।
ऐ ख़यालों इन दिनों क्यूँ बंद आना कर दिया,
माना "ऋतु" बीमार है पर शाइरी अपनी जगह!
©ऋतु सिंह राजपूत -
ritusinghrajput 113w
सुनों जानाँ कि अब तो आ भी जाओ ना
तुम्हारे आने से पहले गर उसने तोड़ा दरवाज़ा
और मुझको ले गई तो फिर तुम्हें अफसोस होगा ना!
मगर जानाँ अगर वो ले गई मुझको तो तुम अफ़सोस मत करना
मेरी मज़ार पे जाना, वही इक नज़्म तुम पढ़ना
जो मुझे अक्सर सुनाते थे
" हर बार मेरे सामने आती रही हो तुम
हर बार तुम से मिल के बिछड़ता रहा हूँ मैं "
जौन की नज़्म जानाँ, तुम्हें तो पसंद थी ना
मुरीद थे तुम जौन के, उन जैसा ही बनना था!
मगर जानाँ मुझे सिगरेट अच्छी नहीं लगती
करो वादा कि मेरी मज़ार पे होगी तुम्हारी आख़िरी सिगरेट,
तुम्हारे होठों पे जँचती नहीं है वो।
मज़ार पे देखा है सब फूलों को चढ़ाते हैं
मगर तुम सिगरेट की उन राखो को चुनकर
चढ़ा देना मज़ार पे
और वहाँ से लौटते वक़्त मुड़ के मुझको देखना न तुम!
गर हो सके ये तुमसे तो सुनों ठीक है वर्ना
गर ये भी न हो सके तो सुनों रंज न करना!
मेरे घर पे तुम जाना
मेरे कमरे में मेरे बिस्तर के सिरहाने पे कुछ ख़त पड़े होंगे
जो मैंने लिखे थे तुमको मुहब्बत में
मगर क़ासिद से भिजवाए नहीं थे सोच कर के ये
कहेंगे यार क्या तुमको, बहुत तुमको चिढ़ाएँगें
कहीं शक हो गया उनको कि कभी तुमको मुहब्बत थी
तुम्हारी ये अना फिर टूट जाएगी!
सो वो ख़त मैंने यादों में महफूज रखे हैं!
तुम उनको पढ़ना और फिर सोचना
मुझे कितनी मुहब्बत थी
वो जिसका यकीं मैं तुमको हर वक़्त दिलाती थी!
मगर अफसोस उस दिन मैं न मिलूँगी!
तुम सारे ख़त जला देना!
सुनों तुम जब भी लौटो घर से
कानों पे हाथ रख लेना
मेरे घर की दीवारें जब कोई पायाम देंगी
उन्हें तुम अनसुना करना।
वो जो पायाम में होगा वो मेरी सिसकियाँ होगीं।
मुझे डर है उन्हें सुन के कहीं आवाज़ न खो दो।
सुनों जानाँ मुझे तुम याद आते हो
सुनों जानाँ मुझे तुम याद आओगे!
सुनों अफ़सोस मत करना
सुनों ख़याल तुम रखना!
- ऋतु सिंह राजपूतनज़्म
एक अरसे बाद आज़ मैंने आईना देखा
न जाने पड़ रहा है कैसे मेरा ज़र्द ये चेहरा
ये मायूसी इन आँखों की और इनपे गर्द का पहरा
गर्द यादों की इनपे धीरे धीरे जम रही है अब
गर कोई साफ़ करता है तो फिर बूँदे टपकती है!
मेरे दरवाज़े के बाहर खड़ा है कोई,
जो बारहा दे दस्तकें मुझको बुलाता है,
कभी दर खटखटाता है, कभी वो खिलखिलाता है
कभी बच्चा कोई बन के , कभी बन के कोई काफ़िर
मगर मैं घर के कोने में दोनों हाथों को बाँधे
कहीं चुपचाप बैठी हूँ कि कोई सुन न ले कहीं सिसकियों को।
सुनों जानाँ कहीं वो तोड़ के दरवाजा अब अंदर न आ जाए
मुझे शक है वो मेरी मौत ही होगी
बनके हबीब मेरी वो मुझे ले ही जाएगी
उसे जल्दी बहुत है मुझसे मिलने की
मुझे डर लगता है पर उससे मिलने में।
" आगे अनुशीर्षक पढ़ें"
©ऋतु सिंह राजपूत -
ritusinghrajput 114w
कोशिशें कब तक की जा सकती हैं
शायद ताउम्र !
पर जहाँ कोई उम्मीद हो।
जहाँ उम्मीद न हो कोई
वहाँ सिर्फ़ दुआ की जा सकती है।
पर जहाँ ख़ुदा बुत बन गया हो
वहाँ दुआ कैसे क़ुबूल होगी
वहाँ किस आसरे पे कटेगी ज़िंदगी।
न ख़्वाहिश किसी की
न शिकायत किसी से
न जुस्तजू किसी की
न बगावत किसी से
एैसी ज़िंदगी पहली भी तो जी है मैंने
कोई नया दर्द तो नहीं मिला है इस दफ़ा।
हर दफ़ा पुराना ही दर्द क्यूँ
कि बेज़ार हो गए हैं ज़िंदगी से।
तन्हा कर दिया है लोगों ने।
इस दफ़ा नया दर्द क्यूँ नहीं
ख़ुद ही तबाह करते हैं ज़िंदगी को।
©ऋतु सिंह राजपूत -
ritusinghrajput 114w
एक संवाद दिल और दिमाग़ के बीच। @hindiwriters @hindi #hindiwriters @_mrigtrishna_ @meenuagg @vishalprabtani @riya_expression
• वो क्या कहेगा? गर मैं चाहूँ उससे फिर से बातें करना, वो मान जाएगा, या मना लेगा मुझे?
- महज़ बातें ही तो कम करता था वो , इतनी सी बात पर क्यूँ ख़फ़ा हो गई , क्यूँ सारे तअल्लुक़ात ख़त्म कर दिये?
• पर सुनता भी तो नहीं था वो मेरी , नज़र अन्दाज़ भी तो करता था वो मुझे।
- बातें तो जमीं आसमाँ भी नहीं करते।
• पर बरसता है आसमाँ जब जमीं को जरूरत होती है।
- वो भी तो बरसा होगा कभी तुमपे, वही बरसात जिसके न मिलने पे आज तुम्हारी आँखों से बरसात हो रही हैं।
• क्या मैंने नहीं की उसपे मुहब्बत की बरसात , क्या मैंने उससे कभी कोई
शिकायत की।
- गर आसमाँ एक दिन न बरसे तो जमीं उसे बददुआ नहीं देती। पर तुम तो कह आई हो उसे कि तुम्हें कभी मुहब्बत न मिले। इश्क़ एकतरफ़ा तो था ही नहीं तुम्हारा, वरना उसकी आदत कैसे लगती।
• क्या अब चीज़ें बिगड़ गई, क्या अब सब कुछ ठीक नहीं हो सकता।
- शायद अब अना की दीवार खड़ी हो गई है दोनों के बीच।
• पर मैं तोड़ दूँगी इस दीवार को, मैं माफ़ी मागूँगी उससे।
- पर क्या सब कुछ ठीक हो जाएगा?
• हाँ शायद मैं ठीक कर लूँ, पर अगर चीज़ें फिर पहले जैसी हुईं तो?
- इस दफ़ा शायद बहुत तकलीफ़ होगी।
• मैं रह नहीं पा रही हूँ उसके बिना। मेरा दम घुट रहा है। मुझे तकलीफ़ हो रही है। मुझे उसकी आवाज़ सुननी है। मुझे नहीं सुननी उसके सिवा किसी की आवाज़।
- अपने कान बंद कर लो हमेशा के लिए।
• पर अगर वो लौट के आया तो?
- उसकी आँखें पढ़ना, उसे महसूस करना, उसे सुनना मत।
• पर मैं तो सिर्फ उसे सुनना चाहती हूँ।
- मुहब्बत को सुनोगी , देखोगी तो महसूस नहीं कर पाओगी।
• तो क्या करूँ अब मैं।
- कान बंद कर लो अपने और ख़ामोश हो जाओ।
• क्या इससे सब कुछ ठीक हो जाएगा
- शायद....!!!!
©ritusinghrajpoot -
ग़ज़ल
गुलों का ख़ार की ख़सलत से लेना देना क्या,
मुहब्बतों का तो नफ़रत से लेना देना क्या।
नक़ाब फ़ेंको शराफ़त से लेना देना क्या,
करो तुम ऐश मलामत से लेना देना क्या।
भले हो कोई भी मौसम ख़िज़ा है आँगन में,
तो फिर बहारों की रंगत से लेना देना क्या।
जबाँ पे अपने कई उज़्र तुम समेटे हो,
है गर पता तो शिकायत से लेना देना क्या।
वफ़ा निभाना तुम्हारे तो बस की बात नहीं,
तुम्हें किसी की मुहब्बत से लेना देना क्या।
फ़रेफ़्ता हुए तुम पर मुग़ालता था मेरा,
तुम्हें वफ़ा की नफ़ासत से लेना देना क्या।
यक़ीन पूरा मुहब्बत पे अपने दिल से है,
मुझे रक़ीब की चाहत से लेना देना क्या।
धरा से "रीत" निभाए जो "भास्कर" भी तो,
परिक्रमा करे संगत से लेना देना क्या।
©ritusinghrajpoot -
ritusinghrajput 115w
Happy holi ❤❤ ये ख़त कल लिखा था। पोस्ट करने का समय नहीं मिला। तो सोचा आज कर दूँ।
#hindiwriters @hindiwritersसुनों जानां!
कल होली है जाने कैसे गुजरेगा मेरा दिन। पता नहीं, आपकी याद आएगी भी या नहीं। हो सकता है दिन यूँ ही कामों में, रंगों में गुजर जाए। हो सकता है आपको एक पल भी याद न कर पाऊँ या हो सकता है कि आपको हर पल याद करूँ। पर इतना यकीन है जब हाथों में गुलाल लूँगी तो ये ख़याल आएगा कि काश पहला रंग आपके गालों पर लगाती। आपको तो पता है कान्हा से मेरी बनती नहीं है। उनके दर पर जाना बहुत कम होता है। पर कल सोचा है जाऊँगी, उनसे मिलना भी हो जाएगा और आपके नाम का गुलाल भी उनके गालों पे लगा दूँगी!
सुनों जानां कल सफेद शर्ट या सफेद कुर्ता पहन लेना। वैसे तो आप पर नीली काली और लाल रंग की शर्ट बहुत ज्यादा जँचती है पर कल आप सफेद पहनना आपपे हर रंग जँचता है। और हाँ सुनों कल मेरे नाम का गुलाल भी अपने गालों पे लगा लेना वैसे तो आपके लाल गालों को किसी रंग की जरूरत नहीं पर कल होली है ना तो रंग जरूर लगा लेना। और पता है मेरे नाम का रंग आप अपनी नाक पे लगाना। अगर मैं होती तो आपके नाक पे सबसे पहले रंग लगाती , आपको पता है ना आपके पूरे चेहरे में सबसे ज्यादा आपकी नाक पसंद है मुझे। सुनों दोस्तों के साथ ज्यादा मत घूमना। कुछ उल्टा सीधा मत खाना। सिर्फ़ घर पे ही खाना जो भी खाना।
बहुत याद आ रही है आपकी काश आप मेरे पास होते। ख़ैर कोई बात नहीं मुझे खुशी है आप घर पे हो अपने। अपना ख़याल रखना। बहुत मुहब्बत आपको।
आपकी जान!
©ritusinghrajpoot -
ग़ज़ल
हँसी बन चुकी सिसकियाँ कौन जाने
यही इक है उसके निशाँ कौन जाने।
नहीं मिलता हमको शब-ए-वस्ल में भी
सुकूँ इश्क़ के दरमियाँ कौन जाने।
यही सोच के करती हूँ इश्क़ उससे
बिछड़ जाए वो कब कहाँ कौन जाने।
हूँ मैं जब तलक साथ तो साथ रह लो
मैं मर जाऊँ कब औ' कहाँ कौन जाने।
ये जो तीरगी में भी दिखती नहीं है
हैं वो मेरी परछाईयाँ कौन जाने।
© ऋतु सिंह राजपूत -
ritusinghrajput 115w
पेश है एक ग़ज़ल
वज़्न- १२२२/१२२२/१२२२/१२२२
@hindiwriters #hindiwriters @_mrigtrishna_ @naushadtm @riya_expression @azmisaudग़ज़ल
कभी आती दरीचे से कभी छत पर बुलाती है,
सदा देकर ये उसकी याद अक्सर आज़माती है!
छलक जाएं मेरे आँसू है मुमकिन बार से उसके,
मिरे मन में बसेरे को अगर तनहाई आती है!
उसे कह दो न आए यूँ भी मिलने बारहा छत पर,
मैं हूँ बदनाम इसमें कितने ये कपड़े सुखाती है!
है ख़्वाहिश आए उसका फोन औ' फिर रोके वो बोले,
सुनों अब लौट आओ ना तुम्हारी याद आती है!
न जाने किस अना में छोड़ा था मैंने भी घर अपना,
मिरी माँ अब भी मेरे हिस्से की रोटी बनाती है!
कि अरसा हो चुका मुझको सुकूँ की गोद में सोए,
मुझे भी घर बुला लो माँ तुम्हारी याद आती है!
सुना है इश्क़ वाले बिछडें तो पागल हो जाते हैं,
मुझे भी लोग कहते हैं ये ख़ुद में बड़बड़ाती है!
© ऋतु सिंह राजपूत
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एक सवाल ❣️
वो पहाड़ वो नदियां
नन्हीं नन्हीं कलियां
बारिश में पंख फैलाता मोर
चांदनी रात सुहानी भोर
सुंदरता निहारती सुंदर आंखें
प्यार बांटते त्यौंहार ,खनकती बातें
हंसी मासूम बच्चों की
कहानियां वात्सल्य और ममता की
कितना कुछ खूबसूरत है दुनिया में
जिसे शब्दों में पिरोया जाता है
फिर भी
प्रेम को लिखना और पढ़ना ही
सबसे खूबसूरत क्यों होता है ??
चाहे वो वस्ल में हो
या फिर
विरह में.....
©my_world_of_words -
हवेली खड़गपुर
गोली उस आकृति के ज़िस्म के पार हो गई...फिर वही अट्टहास गूँजी और बिजली फिर कड़क गई।
आकृति आहिस्ता आहिस्ता चारों दोस्तों की तरफ बढ़ रही थी....बिजली फ़िर चमकी....
धाँय... धाँय ....धाँय...धाँय....धाँय....रवि पागल की तरह उस आकृति पर फायर करता चला गया।
सारी गोलियाँ उस आकृति के ज़िस्म के पार होती गयी और हर फायर के बाद वही डरावनी अट्टहास हॉल में गूँजती रही। उस आकृति और इन चारों दोस्तों के बीच महज़ पंद्रह क़दमों की दूरी रह गयी थी। उसके बदन से जलते हुए मांस की तेज़ बदबू आ रही थी। बाहर कुत्तों के रोने की आवाज़ लगातार बढ़ती जा रही थी।
रवि ने अपने हाथ का रिवॉल्वर उसकी तरफ दे मारा.. उस आकृति ने अपने हाथ ऊपर किये...रिवॉल्वर हवा में ठहर गया। हाथ की जगह केवल हड्डियाँ थी।
अट्टहास की वही डरावनी आवाज़ फिर गूँज उठी।
उस आकृति ने एक अँगुली रिवॉल्वर की तरफ की और रिवॉल्वर कडकडाकर कई टुकड़ों में टूट कर गिर गया।
चारों दोस्तों की हालत ख़राब थी, वो थर थर काँप रहे थे। आकृति वहीं रुक गयी थी।
चारों दोस्त एकाएक खिड़की की तरफ मुड़े भागने के लिए....बिजली चमक गई...अरे...ये क्या...खिड़की के उस पार वही आकृति खड़ी थी...चारों खिड़की के बाहर एक एक वही आकृति सी खड़ी थी....तेज़ कड़क बिजली की चारों दोस्तों के दिल को दहलाती चली गयी...एक बार फिर वही जानलेवा भयानक अट्टहास हॉल में गूँज गया।
उस आकृति ने फिर बढ़ना शुरू किया इन चारों दोस्तों की तरफ.....
(क्रमशः)
©malay_28 -
मुहब्बत ने नखरे हज़ार किए
दिल फिर भी तलबगार रहा
©yusuf_meester -
rangkarmi_anuj 110w
छलक पड़े आँसू बाल कान्हा के भी
यीशु से उनका असहनीय दर्द बांटने आये हैं,
हम दोनों तो एक ही हैं इस संसार में
यह सभी नादान मनुष्यों को समझाने आये हैं,
यीशु को मलहम लगाने देखो कान्हा आये हैं
ज़ख्मों से रिसते खून को रोकने आये हैं।
संसार में आखिर विपदा क्यों न आये
जब तुम्हारा भक्त ही हत्यारा बन जाए,
द्वापर युग में मेरी भी हत्या हुई थी
फिर हम समय को दोष क्यों ठहराए,
यीशु को मलहम लगाने देखो कान्हा आये हैं
ज़ख्मों से रिसते खून को रोकने आये हैं।
भारत हो या बैतलहम कहाँ कहाँ रहोगे
जहाँ जाओगे बस दुख दर्द ही देखोगे,
आज आधे तुम बंटे आधा मैं बंट गया हूँ
बताओ क्या मेरे साथ बैठकर खाना खाओगे,
यीशु को मलहम लगाने देखो कान्हा आये हैं
ज़ख्मों से रिसते खून को रोकने आये हैं।
अश्रु नहीं रुक रहे त्याग समर्पण देख कर
हृदय फट रहा है ईश्वर को रोता देख कर,
भलाई के रास्ते पर चलना सबकी सेवा करना
भाईचारे का महत्व समझाने आये हैं,
यीशु को मलहम लगाने देखो कान्हा आये हैं
ज़ख्मों से रिसते खून को रोकने आये हैं।
©अनुज शुक्ल "अक्स"
PC: Google/RightfulOwner @mishi_ki_kalamकान्हा आये
©rangkarmi_anuj
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naushadtm 110w
Bas Yun hi ....
#mirakee #hindiwriters #urduwriters #hindilekhan #hindikavyasangam #Hindiurduwriters #shayari #osr #ash_k #satender #shej #anitya #4ank #aduttaread #hashJ #iambugs #piaa_choudhary @rituchaudhry @archana_tiwari_tanuja @rani_shri @malay_28 #life #love #zindagi #ggk #apt #mirakeeworld #writerstolli #panchdoot #poetryख़्वाहिशों का आसमाँ ढूँढ़ते ढूँढ़ते
थक गए यार हम घूमते घूमते
प्यार में भी सनम बेवफ़ाई मिली
मयकदे को चले झूमते झूमते
ज़िन्दगी का मेरे देख कुछ न हुआ
कट गई उम्र एक सोचते सोचते
याद करने को अब बचा कुछ नहीं
आ गए कब्र तक भूलते भूलते
कहते सबका यहाँ हमसफ़र है मगर
न मिला उसका पता पूछते पूछते
एक सपना था जो सच हुआ ही नहीं
जल गया आशियाँ देखते देखते
और चलना नहीं हमको आगे कहीं
थक गए आज हम दौड़ते दौड़ते
ज़िन्दगी ने बहुत की कोशिश मगर
सीखा कुछ भी नहीं सीखते सीखते
साँस नेमत है कोई समझता नहीं
ज़िन्दगी काट दी माँगते माँगते
©naushadtm -
_aahana_ 112w
#quarantine #day7 #31March
Hum log to ghar mei hain jinko quarantine kar diya gaya ho yah jo infected hai..kaise kaise khayal aatey honge na
Kya likha hai..... pata ni...कुछ वहम थे
कुछ ख्वाब थे
कुछ मर्ज लाइलाज थे
कुछ किलकारियां हंसी की
कुछ ख्वाहिशें खिली सी
कुछ आरजूऐं मनचली सी
कुछ रातें रतजगी सी
कुछ बातें अनकही सी
और नींद तिष्नगी सी
कुछ टूटा
कुछ रूठा
मैं खुद से पीछे छूटा
फिर इक दिन...
दिल ने मान लिया
जो बढ गए ,न अपने थे
जो खो गए, बस सपने थे
अब न हंसी का दौर है
ना सिसकियों का शोर है
न कोशिशों का जोर है
बस खुद में मैं हूँ... न कोई और है
जो खर्च हुआ
वो मैं हूँ
जो बच गया
वो मैं हूँ
चल रहा सब कुछ
जो थम गया
वो मैं हूँ
बस मै अपने मैं में हूँ
खुश हूँ
सुकूं में हूँ
अब न किसी जुनूं में हूंँ
हां ..
मैं बहुत सुकूं मे हूंँ
©रिया -
malay_28 110w
रही नहीं ज़िन्दगी में हमदम कोई अब कमी
है होठों पर तेरा नाम और आँखें शबनमी !
ख़याल कहाँ आता बेख़याली में भी अब
बैठा हूँ लिए मुट्ठी में आसमाँ चुटकी में ज़मीं !
अपने अपनों के साथ महफ़ूज़ रहें घर में ही
पसर रही सड़कों पर रोज़ जानलेवा ग़मी !
पूछो ज़रा हवाओं से दुनियाँ का हाल क्या है
मौत है हँस रही खुलकर हर चेहरा है मातमी !
हो रहा हर कोई दूर आज हर किसी से मलय
ग़म ना कर सनम बना ले तन्हाई को हमनशीं !
©malay_28 -
azmisaud 110w
غزل
تم کر دو گی مجھ کو پاگل ، پاگل
بس کہتی رہتی ہو کل کل ، پاگل
تم اب کیوں ملنے آئ ہو مجھ سے
سالوں سے ہے درد مسلسل، پاگل
اک جنگل ہے جو تم سے ڈرتا ہے
ہے وہ میرے اندر جنگل، پاگل
دنیا والے باہر ہیں۔۔کیوں ڈرنا؟
اللہ ہے، ہے اس کا بھی حل، پاگل
تیرا درجہ میرے اوپر کا ہے
ساتھ مرے پیچھے پیچھے چل، پاگل
رولس اگر باندھے ہیں تم کو تو سن
لڑ لے، مت ڈر، مت سن، مت چل، پاگل
نیک ارادے ہیں کیا؟ بتلاؤ بھی
کیوں خود کو کہتی ہو سنگل؟، پاگل
کیا لاؤں؟ کیسے لاؤں؟ بتلاؤ
کپڑے، بالی، نیکلیس، پایل، پاگل
-آعظمی سعود
©azmisaud
22 / 22 / 22 / 22 / 22
@jayraj_singh_jhala @roothi_qalam @ritusinghrajpoot @succhiii @iramfatimaग़ज़ल
तुम कर दोगी मुझ को पागल, पागल
बस कहती रहती हो कल कल, पागल
तुम अब क्यूं मिलने आई हो मुझ से
सालों से है दर्द मुसलसल, पागल
इक जंगल है जो तुम से डरता है
है वो मेरे अन्दर जंगल, पागल
दुनिया वाले बाहर हैं..क्यूं डरना?
अल्लाह है, है इस का भी हल, पागल
तेरा दरजा मेरे ऊपर का है
साथ मिरे पीछे पीछे चल, पागल
रूल्स अगर बांधे हैं तुम को तो सुन
लड़ ले, मत डर, मत सुन, मत चल, पागल
नेक इरादे हैं क्या? बतलाओ भी
क्यूं खुद को कहती हो सिंगल?, पागल
क्या लाऊं? कैसे लाऊं? बतलाओ
कपड़े, बाली, नेकलेस, पायल, पागल
-आज़मी सऊद
©azmisaud -
तू हर घड़ी साथ है
हाथों में हाथ है
फिर भी खत्म नहीं होती
हमारी तुम्हारी बात है
यूं तो यह वक्त
नहीं कोई सौगात है
बस अपनों का साथ है
छँट जाएंगे बादल डर के
इसी उम्मीद में ...
कट रहे दिन रात हैं
बस राहत यही है कि
तूं साथ है....
©riya_expression -
खौफ का अंधेरा छटा है
उम्मीदों की रोशनी झिलमिलाई है
देखो सब ने अलग अलग रहकर
मिलकर दिवाली मनाई है
©riya
