● आलम ●
दिलकशी का आलम कमाल हो गया ।
पत्ता पत्ता मेरी चाहत का गुलाब हो गया ।।
महकने लगा मेरा जर्रा जर्रा भी अब तो
पानी लाया मैं तो और वो भी शराब हो गया ।।
तूफानो से लडने निकल पडा , मैं नशे में हूँ
कंकर सा था जो लगा पर्वत सा विशाल हो गया ।।
मोहब्बत की दीवारों पर चडने जो लगा मैं
एक एक पत्तथर जिंदगी का पडाव हो गया ।।
गिर गया मैं , या गिरा दिया गया हूँ मोहब्बत की ऊँचाई से
दिल टुकडा-टुकडा मेरा , तागाद में हजार हो गया ।।
©naman_khandelwal