जल्दी
जितनी जल्दी हो सके कर दो सुपुर्द - ए - खाक !
क्या भरोसा आशिक का , कही देने लगे न आवाज !!
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उडान ️
हमने परिंदों से ऊंची रखी है उडान ,
और उससे भी ऊंची रखी है जुबान !
बहुत दौर आए गम ए जिंदगी मे ,
पर हमने गर्दिश मे भी ऊंची रखी है पहचान !!
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पीताम्बर️
धरती फफक फफक कर रो पडी और रो पडा अंबर !
कफन का रंग सफेद से हो गया पीताम्बर !!
कोई फर्क नही रहा हिंदू और मुसलमान मे !
दोनो साथ साथ दफन हो गए गंगा के मैदान मे !!
सियासत कैसे बाट रही आपस मे इंसान !
हिन्दू को शमशान मिला न और न मुस्लिम को कब्रिस्तान !!
अपनो के इलाज मे बिक गया घर द्धार !
सूरत भी देखने न मिली अपने प्रिय की अंतिम बार !!
आज तो पत्थर भी रो पडा, जाग उठी मानवता !
शायद आज फिर पड गई वोटो की आवश्यकता !!
✍️ सत्येन्द्र प्रकाश सत्यम
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वक्त आ गया
कौन मर रहा है और कौन मर गया !
हिसाब न रखने का अब वक्त आ गया !!
अपनी तो मौज है कहाँ से कहाँ आ गया !
जुमलो का कमाल है कि सर पे ताज आ गया !!
जब तक सच निकलता घर से बाहर !
तब तक झूठ दुनिया घूम कर आ गया !!
सत्यम देखिए इंसाफ की नई नजीर !
सच बोलना गुनाह है आज फैसला आ गया !!
जिनके इंतजार मे थमी थी सांसे !
न आ पाएंगे आज उनका भी जबाब आ गया !!
वो सोचते थे फकीर है चला जाएगा झोला उठाकर !
मुझे त़ो कुर्सी पर बैठना अब रास आ गया !!
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छीलती है मुझे
छीलता हूँ प्याज तो ,
रो पडता हूँ मै !
और एक वो है जो ,
हँस हँस रोज छीलती है मुझे !!
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रिंदाना
रोज लगती है ,
बज़्म ए रिंदाना !
पुरखो की मिल्कियत है ,
अपना क्या जाना !!
अपने पास रखिये ,
शराफत के मश्विरे !
इतने अच्छे है तो ,
यहां क्यो हुआ आना !!
और वह जो कल कहते थे ,
तौबा तौबा रिंदाना !
लो देख लो आज फिर ,
उनका हो गया बज्म मे आना !!
शायर सत्येन्द्र प्रकाश सत्यम
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तकदीर
कुछ तकदीर ने धोखा दिया कुछ हम भी बहक गए !
मंजिल थी कोई और कही और पहुंच गए !!
थोड़ा नही बहुत था खुद पर यकीन !
पर न जाने क्यो टूटकर बिखर गए !!
तुम तो आते नही अब ख्वाब मे भी !
बनाकर बेनाम सा रिश्ता वो न जाने किधर गए !!
लोग कहते थे हमे आशिक आवारा !
जब से टूटा दिल , लोग कहते है हम सुधर गए !!
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जद️️
खिलती हुई कलियों ,
को न मसलो !
चमन मे उदासी का ,
आलम छा जाएगा !!
मुडेर पर रखे चरागो ,
को हवा मत दो !
अधेरे की जद मे ,
आपका घर भी आ जाएगा !!
मैंने बेवफाई की या उसने ,
अब रहने भी दो !
जख्म कुरेदेगे तो सच ,
जुबां पे आ जाएगा !!
जुल्म होता है ,
तो सहन करो !
इंसाफ मागोगे तो ,
पसीना आ जाएगा !!
सही कहाँ आपने ,
सरकार है अदालत है वकील है !
पर इनसे मिलते मिलते ,
बुढापा आ जाएगा !!
अब वो साहबे हुकूमत है ,
तुम्हारे लगोटिया यार नही !
मिलना है तो जाकर मिलो ,
क्या सोचते हो तुम्हारे बुलाने पर वह आ जाएगा !!
शायर सत्येन्द्र प्रकाश सत्यम
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राहत इंदौरी
लो मै आ गया तेरे शहर मे ,
कुछ वक्त छाहँ लू वो शजर दे !!
ऐ खुदा मुझे जन्नत मे जगह दे !
यदि नही तो क्यों नही वजह दे !!
शायर सत्येन्द्र प्रकाश सत्यम
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भारत
वाह क्या खूब कारीगरी है ,
क्या खूब सजाया !
भारत है हम सभी का ,
सभी ने इसे बनाया है !!
शायर सत्येन्द्र प्रकाश सत्यम
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जिंदगी जहाँ पे ठहरी है
मज़हब की खाई गहरी है
खाई में जिन्दा लाशें हैं
लाशों की दुनिया बहरी है
वो खून है तो लाल है
है किसका ये बवाल है
इन्सानियत जब बँट गई
तब से उठा ये सवाल है
अलग अलग हैं खुदा यहाँ
हर सोच है जुदा यहाँ
हर शक्स जब बदगुमान है
किसकी लगेगी दुआ यहाँ
फिर आज पत्थर दिल हैं वो
पढ लिख के भी जाहिल है वो
ज़हन में तो सब साफ है
गुनाह में क्यूं शामिल हैं वो
फिर मच रहा क्यों शोर है
सब उंगलियां किस ओर हैं
क्या खुद में झांका है कभी
हर दिल में बैठा चोर है
©yamini_poetry
