है किसी बात का गुस्सा, बाहर निकाल
घुट के मर जाएगा किस्सा, बाहर निकाल
तुझे अंदर ही अंदर खा जाएगा एक दिन,
अपने अंदर से मेरा हिस्सा, बाहर निकाल
~शाबीर
©shabir_
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shabir_ 107w
एक मतला दो शेर
बसर - दृष्टि
बे-बसर - दृष्टिहीन
पिंदार - गर्व
@hindiwriters @mirakeeworld @rekhtaना किसी का घोंसला, ना मैं शजर ही बन सका
मैं समुद्री रेत था, मुझसे न घर ही बन सका
था अगर मैं ऐब तो, होती उमर है ऐब की,
ना असर ही बन सका, ना बे-असर ही बन सका,
सामने ही लुट गया, पिंदार मेरे इश्क़ का,
ना बसर ही बन सका, ना बे-बसर ही बन सका
~शाबीर
©shabir_ -
रात गहरी कभी तारो की छांव में मिलो,
तुम मुझसे कभी मेरे गांव में मिलो,
बात दिल की यहाँ कहने में आसानी होती है,
तुम मुझसे बनारस में मिलो, इस नाव में मिलो
~शाबीर
©shabir_ -
हमें इस ग़म के सहारे मत छोड़ो,
ज़ख्म को मरहम के सहारे मत छोड़ो,
तेरा लगाया हुआ पौधा तेरे बिन सूख जाएगा,
हमें मौसम के सहारे मत छोड़ो
~शाबीर
©shabir_ -
मैं बुरी ख़बर था तो लौट आया,
मैं बे-असर था तो लौट आया,
नज़र लग गयी थी ज़िन्दगी में उसके,
मैं बुरी नज़र था तो लौट आया,
पहली पसंद हूँ या आखिरी ख्वाहिश?
कुछ नहीं का डर था तो लौट आया,
दिल लग गया था उस एक घर से,
किसी और का घर था तो लौट आया,
बदल भी सकती थी ये कहानी,
मैं बे-सबर था तो लौट आया,
~शाबीर
©shabir_ -
" ग़म ग़म लगे सरखुशी न लगे,
उसे मुझ जैसी ख़ामोशी न लगे,
उसकी कसम तोड़ कर मैं जा नहीं सकता,
मेरी मौत उसे हादिसा लगे, खुदखुशी न लगे "
~शाबीर
©shabir_ -
shabir_ 110w
फ़र्द =इंसान
मुब्तिलाए =फँसा हुआ
दस्तार = पगड़ी
एक मतला दो शेर
मोहब्बत से नवाज़ें
@hindiwriters @mirakee @writersnetwork" फ़र्द से फ़र्द के ही सताए हुए,
क्या यही हैं ख़ुदा के बनाए हुए,
मज़हबी मज़हबी मज़हबी कर रहे,
ज़हनी बीमार हैं मुब्तिलाए हुए,
मायने हैं बताते ये दस्तार के,
औरतों पे हैं जो जुल्म ढाए हुए "
~शाबीर
©shabir_ -
" हादिसों से बच रहा था हादिसों में फँस गया,
मैं नशे से बच रहा था मयकशों में फँस गया,
इक तरफ़ क़ाफ़िर खड़ा था इक तरफ़ में था ख़ुदा,
छोड़ कर मज़हब का चोला आशिकों में फँस गया,
अलविदा कहना था मुझको, पिंज़रा भी था खुला,
सब परिन्दे उड़ गए मैं कायदों में फँस गया,
दब गए तहरीर मेरे दी गई बातें बदल,
ख़त मिरा तो बे-जुबां था साजिशों में फँस गया,
आप पहले आप पहले करते-करते रह गए,
हो गए शायर सभी मैं ख़िदमतों में फँस गया,
~शाबीर
©shabir_ -
"वो अपनी हर ग़ज़ल पर बारीश सा असर रखते हैं,
मैं ढूँढू फ़लक़ पर वो पल्लू पे क़मर रखते हैं,
निगहबानी तो नहीं इश्क़ में जिस्म पर निशां देना,
उनसे मिल आऊं, लोग गर्दन पर नज़र रखते हैं "
~शाबीर
©shabir_ -
" एक तस्वीर बनाता जा रहा हूँ,
उसे कपड़े पहनाता जा रहा हूँ,
कहीं आँख मेरी ठहरी हुई है,
अब मैं मुस्कुराता जा रहा हूँ,
अब वो पलकें झुका रही है,
मैं रंगों से सताता जा रहा हूँ,
ये पढ़कर वो सिहर रही है,
और मैं कोंची घुमाता जा रहा हूँ
वो मेरे रंग में रंगते जा रही है,
और मैं रंग चढ़ाता जा रहा हूँ "
~शाबीर
©shabir_
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naushadtm 106w
212 212 212 2
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रब की हमपे इनायत हुई है
फिर से देखो मुहब्बत हुई है
जबसे जाना इबादत को हमने
ज़िन्दगी सच ये जन्नत हुई है
देख उनको नदामत हुई है
बाद अरसे इनायत हुई है
कुछ शिक़ायत सियासत से होगी
वरना फिर क्यों बग़ावत हुई है
चैन हमको न था एक पल भी
मिलके उनसे ही राहत हुई है
है बुलाया मुझे मिलने उसने
उनको मेरी ज़रूरत हुई है
था वो साहिर कोई लगता हमको
दिल को जिससे मुहब्बत हुई है
©naushadtm -
इश्क़ में सिर्फ जीना सीखना पड़ता है जनाब ,
फ़ना होना ये ज़ालिम सीखा ही देता है l
©eshaandpen -
naushadtm 107w
2122 2122 2122 212
#mirakee #hindiwriters #urduwriters #hindilekhan #hindikavyasangam #Hindiurduwriters #shayari #osr #ash_k #satender #shej #anitya #4ank #aduttaread #hashJ #iambugs #piaa_choudhary @rituchaudhry @shabir_ @rani_shri @archana_tiwari_tanuja @malay_28 #life #love #zindagi #ggk #laughing_soul #apt #mirakeeworld #writerstolli #panchdootसाथ चलने का था वादा छोड़ हमको चल दिए
क्या निभाई यार ने अहद-ए-वफ़ा तुम देख लो
©naushadtm -
आईना मगरूर था, अपने गुरुर में;
अचानक मुझे देखा और चूर चूर हो गया।।
©nimishasrivastava -
ग़ज़ल
ज़िंदगी तेरा हमने साथ यूँ निभाया है
होटो पे हँसी दिल में दर्द को छिपाया है
ना मिली दवा मर्जे-ग़म की याँ कभी यूँ तो
दुनिया तेरे रंगो में लाख दिल लगाया है
दूर-दूर तक वो दश्त-ए-सराब जैसे थे
ख़्वाब जब भी कोई इन आँखों में बसाया है
नाज़ ये तेरे सारे कौन यूँ उठायेगा
हर सितम दुआ दे, तेरा गले लगाया है
बुझ न जाये उम्मीदों के चिराग़ भी, मौला !
तेज़ हैं हवायें पर इक दिया जलाया है
@succhiii
212 1222 212 1222 -
shivimishra 113w
जो आ जाए वो सामने मै भी दीदार ए यार कर लूँ
चख लूँ उसे आँखो से, और रोज़ा इफ़्तार कर लूँ
©shivimishra -
अदावते, बदनियति कब मंज़िल तक पहुँचाती हैं
आशियाँ जलाने से पहले सलाइयां ख़ुद ख़ाक हो जाती हैं
©shivimishra -
shivimishra 114w
कहते हैं सैलाब समुंदर के, कश्तियाँ डुबो देते हैं
आँखो के सैलाब मे फिर क्यों तेरी यादों के जहाज़ तैरते हैं?
©shivimishra -
succhiii 120w
वज्न 2122. 1212 22
पेश-ए -ख़िदमद है एक ग़ज़ल गौर फ़रमाइएगा 🙂
अयाँ - प्रकट
रवाँ- moving , active , प्रवाहमान
बद-गुमाँ - ग़लतफ़हमी , अविश्वास
ये मेरी एक पुरानी रचना है जिसे मैंने बहर में लिख कर कुछ बदलाव किए हैं ...❤️ग़ज़ल
मेरे अश्क़ो की जो ज़बाँ होती ।
मेरे लफ़्ज़ों में वो अयाँ होती ।
हर्फ़-दर-हर्फ़ जो लिखे मैंने ..
नज़रों से भी कभी बयाँ होती ।
जाने वाले को रोक पाते हम ..
गर न खामोशियाँ रवाँ होतीं ।
ग़म ये तेरा मिटा तो लेते हम ..
रूह में ग़र न वो निशाँ होती ।
हमजुबाँ ज़िंदगी तू गर होती..
बदगुमानी न दरमियाँ होती ।
दौर मिलने कभी बिछड़ने का ..
काश ना ख़त्म दास्ताँ होती ।
@succhiii -
lafze_aatish 115w
Wo tere lafzo ki khar si chuban lao kha se,
Dil pe lge hai jo chak dikhao kha se.
Har ek chak ab khoon risne lga hai,
Kon kon sa chak silawo kha se
पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो-चार,
ये शीशा ओ क़दह ओ कूज़ा ओ सुबू क्या है!
ख़ार :- काटे
चाक :- ज़ख्मचाक
वो तेरे लफज़ू की ख़ार सी चुभन लाऊ कहाँ से,
दिल पे लगे हैं जो चाक दिखाऊं कहाँ से.
हर ऐक चाक से अब खून रिसने लगा है,
कौन कौन सा चाक सिलाऊ कहां से.
"निःशब्द"
©lafze_aatish
