अंत में सब ठीक हो जाता है, तो मैं अंत तक नहीं पहुंचना चाहूंगा,
तुम्हें भूलने से सब ठीक हो जाए, तों मैं कभी ठीक होना नहीं चाहूंगा!
©somefeel
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somefeel 1d
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somefeel 2d
मोहब्बत का मुकमल ना होना भी लाज़मी था,
कही एक होने पर मोहब्बत कम हो जाती तो!
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©somefeel -
somefeel 2d
हर रोज बिछड़ना चाऊंगा मैं तुमसे,
मुझे आखरी मुलाकात से मोहब्बत हो गई है!
©somefeel -
somefeel 2d
तेरे शहर की गलियां आज भी उतनी ही प्यारी है,
मोहब्बत है काफ़ी है, तुम्हार होना जरूरी थोड़ी है!
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©somefeel -
प्रेम मुकमल तो प्रेमिका राधा है,
प्रेम तो मीरा का भी है पर आधा है,
प्रेम प्रतीक्षा है तो पश्चाताप भी,
यह अपने आप में वरदान और श्राप भी,
हमे प्रेम है किसी से इस बात खुशी है,
प्रेमिका किसी और की यह बात से दिल दुखी है,
सुख दुख पूरा आधा प्रेम को ऐसा नापा है,
प्रेम तो सिर्फ प्रेम है वह तो श्री कृष्ण का भी आधा है!
©somefeel -
somefeel 1w
तुम्हारा जाना सिर्फ जाना नहीं मेरे इस दिल का जनाजा था,
तेरे जाने के बाद हमने फिर से जीना छोड़ दिया!
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©somefeel -
मेरी तस्वीर दिख जाने पर तुम्हे मेरी याद आती है,
तुम्हारी याद आने पर में तुम्हारी तस्वीरे देखने लगता हूं!
©somefeel -
somefeel 1w
*बचपन में जब मार पड़ती थी सह लेते थे पर अब जब वह नाराज हो कर मौन हो जाते है तो बहुत तकलीफ होती है!
माता पिता की मार और डांट से ज्यादा
कठिन है उनके मौन को सहना!
©somefeel -
जो तस्वीरों में यादों का दावा करते है,
वह वास्तविकता में खो के आते है रिश्ते!
©somefeel -
somefeel 2w
जिन घरों की घड़ियां आगे चलती है,
उन्हे अक्सर जिंदगी में पीछे चलने की आदत होती है!
©somefeel
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psprem 1d
जिन्दगी की किताब को,जिंदगी भर नहीं पढ़ सका कोई।
कुछ पन्ने बिखर गए,कुछ रहे अधूरे न पूरे कर सका कोई।
अनुभव के कुछ सबक कड़वे कुछ मीठे भी रहे होगें।
किन्तु परंतु के चक्कर में,जिंदगी भर लगा रहा हर कोई।
©psprem -
gunjit_jain 5w
विधा- गीत
आधार छंद:
मुखड़ा- पदपादाकुलक (16 मात्रिक, प्रारंभ में द्विकल अनिवार्य त्रिकल वर्जित, दो-दो चरण समतुकांत )
अंतरा- चौपाई (16 मात्रिक, अंत दो वाचिक गुरु अनिवार्य, दो-दो चरण समतुकांत)
महावीर जयंती की शुभकामनाएंमहावीर
हो भक्ति भाव विस्तार तुम्हीं,
हे महावीर आधार तुम्हीं।
पंछी का कंपित कलरव हूँ,
मैं मुरझाया नव-पल्लव हूँ।
उर में जीवन-आशा भर दो,
सिंचित निज करुणा से कर दो।
नित आशा का संचार तुम्हीं,
हे महावीर आधार तुम्हीं।
सब कष्टों को हर लो ईश्वर,
सुख का निर्मल सागर भरकर।
इस दुनिया के मंगलकर्ता,
भक्तों के तुम हो दुखहर्ता।
जीवन का सुंदर सार तुम्हीं,
हे महावीर आधार तुम्हीं।
स्वामी तुमको दास पुकारे,
भक्तों के अब बनो सहारे।
तुम सत्य अहिंसा के दाता,
हर्षित हो, जो तुमको ध्याता।
जन-जन के पालनहार तुम्हीं,
हे महावीर आधार तुम्हीं।
©गुंजित जैन -
alkatripathi79 6w
#rachanaprati165
@anonymous_145
मेरा भ्रम.... मैं जीवित हूँ
मेरा भ्रम.... मैं ख़ुश हूँभ्रम
भ्रान्ति भ्रान्ति के भ्रम पालूँ
पालूँ मैं मन अपने मिथ्या
जब भ्रम हीं मुझे जिंदा रखें
ना चाहूँ सत्य की छैयाँ
©alkatripathi79 -
jigna_a 12w
आजकल वेबसिरिज़ में सच दिखाने के बहाने स्वैग, सेक्स और सिगरेट का अतिरेक हो रहा है। अभी एक बहुत अच्छी मूवी देखी A thrusday पर उसमें पुलिस अफसर बना अतुल कुलकर्णी एक सीन में हर डायलॉग के बाद सिगरेट जलाता है। हर युवा के अचेतन मानस में ये सिगरेट घर कर रही है। मैं यह नहीं कहती कि यह सबसे बड़ा ऐब है सबके अपने अपने ऐब है, पर जब सार्वजनिक माध्यम पे लाते हो तो जागरूक रहना अनिवार्य है। जिस व्यक्ति को भी कोई भी व्यसन हो वो कभी नहीं चाहेगा कि अगली पीढी उसका अनुकरण करे। बस एक विचार।
एक बात कतई समझ न आई,
बिन बात भी गाली घुसाई,
एक कश मारनेभर को,
दस बारह सिगरेट जलाई,
माना सिनेमा समाज का दर्पण,
पर इनका भी तो होता अनुकरण,
संदेश देने को अतिरेक क्यों?
ये बात मुझ मंदबुद्धि को समझ न आई।
©jigna_a -
alkatripathi79 13w
#rachanaprati151 @satender_tiwari
इंसानों की तरह अगर प्रकृति में आलस्य आ जाए तो??प्रकृति है अलसाई
नहीं चली पुरवाई
भवरें भी खामोश है
चिड़ियों की चहक कहाँ गई
कहाँ गुम सब शोर है
सागर की लहरे कहाँ गई
क्यों सरिता आज शांत है
अंधियारा है चहु ओर
फिर भी फूल क्यों है खिले हुए
पतझड़ तो बीत गया
क्यों कोंपले नहीं आई
पेड़ों के मंजर कहाँ गए
क्या प्रकृति भी है अलसाई
©alkatripathi79 -
My favourite
किसीका निर्भर करता है,
के आज रसोईघर से महक कैसी आई,
या कोई कहता है,
बहू ने आज चाय समय से नहीं बनाई,
कोई कहता क्यूँ छू लेती हो मेरा सामाँ,
जब पासवर्ड की तुमने समझ नहीं पाई,
समय के चलते गुलों में महकते लगाव ने,
बिस्तर की सिलवटों में शरणागति पाई,
पर बोलना मत ये सब सखी री,
कहेंगे नारीवाद के ढोल क्यों बजाती,
अरे! ढोल से याद आया,कोई अपनी ही कह रही थी,
ढोल सी बन गई है, कहकर भद्दा मुस्कुराई थी,
और मैं, मैं अब तिलमिलाती नहीं, ना झुंझलाती,
पेट पर पड़े निशान सबूत है मैं सर्जक हूँ, माँ हूँ,
और ढोल जैसी काया में मैं पाती गरिमा हूँ,
जब शिकायत करते तो लगता कि फर्ज़ निभाई थी,
सिलवटों में मैंने भी अठखेली जताई थी,
हाँ ढोल हो गई हूँ पर वैसे ना बजती हूँ,
मैं एक बंद मुट्ठी सी आप सबको जँचती हूँ,
पर आप सब का शुक्रिया,
मुझे आज़ाद करने के लिए,
ये तो चलता ही रहेगा,
चाय लाती हूँ अभी!!
©jigna_a -
anantsharma_ 102w
#rachanaprati41 @shruti_25904 @aka_ra_143 @tejasmita_tjjt @beleza_ @archana_000
#rachanaprati143 @happy81
सबसे पहले मैं @shruti_25904 जी का बहुत आभार व्यक्त करना चाहूंगा जो कि उन्होंने हमें #rachanaprati41 का कार्यभार सौंपा है। और उन सभी लेखकों को जिन्होंने #rachanaprati40 में अपना लेख दिया उनसे यह कहना चाहूंगा कि वाकई आप सबों की रचना सराहनीय और प्रसंसनीय थी , मैनें हरेक की रचनाएं पढ़ी।
और साथ हीं सभी का शुक्रिया करना चाहूंगा जो आप सबों ने हमारी रचना को इतना प्यार दिया।
अब समय है #rachanaprati की कड़ी को आगे बढ़ाने हुए एक नया विषय देने का,
तो आज के #rachanaprati41 का विषय है ( महादेव )
मैंनें इस विषय का चयन इस लिए किया क्योंकि वैसे भी अब सावन का समय आने वाला है और सावन का महीना विशेष कर माहादेव के लिए बहुत प्रचलित है, और यह बहुत पावन भी माना जाता है।
तो अब आप सबों से अनुरोध है इनपर बढ़ चढ़ कर अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कर,
आप सबों के रचनाओं का हमें इंतजार रहेगा।
आप सभी अपनी रचनाओं को दिनांक 15/7/21 प्रातः 00:10am बजे तक दे सकते हैं।
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विषय:-महादेव
-------------------------------◆महादेव◆
कालों के महाकाल हो
दुखियों के दिन-दयाल हो।
देवों में त्रिदेव हो
तुम हीं तो महादेव हो।
असुरों के संहारक हो
सृष्टि के तुम पालक हो।
भूतों के तुम नाथ हो
तुम ही तो भोलेनाथ हो।
गंगा के तुम धारक हो
चँद्रमा के कष्ट निवारक हो।
समुद्रमंथन के विष को धारण करने वाले
तुम ही तो विषधारक (नीलकण्ठ ) हो।
सती के प्रेम पुजारी हो
गणपति के पितृ प्यारे हो।
नन्दी तेरी सवारी है
तू हीं तो जटाधारी है।
सर्प है तेरे गले की माला
भभूतियों में तुम लिपटे हो।
शमशानों में तेरा वास हो
तुम्ही तो अघोरी नाथ हो।
देबों के महादेव हो
कालों के महाकाल हो।
जिसका कभी ना कोई अंत
तुम तो वही अनंत हो।।
©anantsharma_ -
ॐ नमः शिवाय
शिखा में बांधे गंगे जो
चंद्र मस्तक जिसके विराजे
चेहरे पर तेज़ अनुपम उनके
अधरों पर मुस्कान साजे
गले में सर्प कुण्डल लिए
हाथ जिसके डमरू बाजे
रक्षा कवच है जिनकी वाणी
उनका प्रेम गौरी को साजे
वो त्रिनेत्र, त्रिलोक पति
हरपल कैलाश विराजे
वंदन करुँ चरण उनके
नित्य उनके नाम जपुं
ना जाऊँ कही और ढूंढने
वो मेरे ह्रदय में विराजे
©alkatripathi79 -
ShivRam
Sagar kinare baithe Shri Ram,
Pareshan se, thak haar ke,
Milne ko aatur Maa sita se,
Par samaj na paye ki kya kare...
Banaya Shivling mitti aur ret se,
Japne lage shiv ke mantra,
Pukar Bhole ko shri Hari,
Mange hari ne divya yantra...
Kaise lejau vanar sena ko,
Mai sagar k us-paar,
Jaha aapke bhakt ravan ki,
Aasur sena hai apaar...
Dekh Shri Ram ko charano me,
Mahadev ka dhayan tut gaya,
Bhole chale Shri Ram ki aur,
Or trishul kailash me chhoth gaya...
Laga Narayan ko hriday se,
Mahadev vishnu se kahane lage,
Ki bhagwan tho aap khud hai prabhu,
Tho kyu aap mere aage jhuke...
He Ram aapke ek aadesh par,
Mai shiv mahakaal ban jauga,
Ravan k das ser kaat ke,
Mai aapko bhett chadauga...
Prabhu ye sagar bhi aaj,
Ravan k dar se kap raha,
Aapko marg na dena ka,
Ye nishchay ha than raha...
Ramban dikha de sagar ko jo,
Ye sare marg kholega,
Aare sagar ka har ek jev-jantu bhi,
Shri Ram ki jai bolega...
©yuvi7rawat -
शिवमय स्वरूप
देखो बिल्कुल चुप हूँ मैं
पर अंदर से आने वाली आवाज़े
या यूँ कहूँ शोर,
कानों को बीन्ध रहा है ये शोर
इस शोर की आवाज़ तो मेरी
आवाज़ से मिलती जुलती है
स्पष्ट कुछ नहीं सुनाई दे रहा
या मैं सुनना नहीं चाह रही
कुछ भी समझ नहीं आ रहा,
जैसे युद्ध सा हो रहा है भीतर,
मन में युद्ध, मन के ही विरुद्ध
पर ये युद्ध चाह कौन रहा है
मैं तो नहीं?
सारे प्रयास सारी विफलताएँ,
सभी दृश्य और अदृश्य संभावनाएं
सब चल रही हैं मस्तिष्क में
एक चलचित्र की भाँति,
पर स्पष्ट तो अभी भी कुछ नहीं,
कहने को बहुत कुछ है
पर किसी को कुछ नहीं कहना।
ऐसा होता है क्या ,
विचारों की उधेड़बुन में मन डूबता जा रहा है
घबरा कर आँखे मूंद ली,
और आँखों में जो रूप नज़र आया
वो महादेव आप का स्वरूप है।
और सब स्पष्ट हो गया।
©mamtapoet
